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Photograph: (TheSootr)
हाल ही में शिक्षकों ने सेवारत शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को अनिवार्य बनाने के उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ विरोध शुरू कर दिया है। इस फैसले के अनुसार, अब कक्षा 8 तक पढ़ाने वाले सभी सेवारत शिक्षकों को टीईटी (TET) उत्तीर्ण करना अनिवार्य है, चाहे उनकी नियुक्ति की तिथि कुछ भी रही हो। पहले, जिन शिक्षकों के रिटायरमेंट में 5 साल या उससे कम समय बाकी थे, उन्हें इस परीक्षा से छूट दी गई थी।
सोमवार को अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के आह्वान पर राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय ने इस फैसले के खिलाफ सभी जिलों में विरोध प्रदर्शन किए और जिला कलेक्टरों को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपे। इस फैसले के खिलाफ शिक्षकों का गुस्सा और चिंता बढ़ गई है, क्योंकि इसे उनके लिए असमान और असंवेदनशील माना जा रहा है।
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टीईटी की अनिवार्यता पर राजस्थान शिक्षक संघ का विरोध
राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय के प्रदेश अध्यक्ष रमेश चंद्र पुष्करणा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय शिक्षा प्रणाली के लिए हानिकारक हो सकता है। उनका मानना है कि यह निर्णय आरटीई अधिनियम 2009 (RTE Act 2009) और एनसीटीई की अधिसूचना 23 अगस्त, 2010 (NCTE Notification 23 August 2010) का उल्लंघन करता है। उनके अनुसार, ये दोनों दस्तावेज शिक्षकों के लिए दो श्रेणियों का निर्धारण करते थे।
पहली श्रेणी में वे शिक्षक शामिल थे जो 2010 से पहले नियुक्त हुए थे, जिनसे टीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य नहीं था। दूसरी श्रेणी में वे शिक्षक थे जो 2010 के बाद नियुक्त हुए थे, जिनके लिए टीईटी को एक निश्चित समय सीमा में उत्तीर्ण करना आवश्यक था। लेकिन उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने इस भेदभाव को नकार दिया है, जिससे राजस्थान के शिक्षकों में असंतोष फैल गया है।
राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय के प्रदेश अध्यक्ष रमेश चंद्र पुष्करणा ने कहा कि आरटीई अधिनियम 2009 एवं एनसीटीई की अधिसूचना 23 अगस्त, 2010 के अनुसार दो अलग-अलग श्रेणियां मान्य थीं। एक 2010 से पूर्व नियुक्त शिक्षक, जिन्हें योग्य माना और टीईटी से छूट दी थी। दूसरा वर्ग जो 2010 के बाद नियुक्त शिक्षक, जिन्हें एक निश्चित अवधि में टीईटी उत्तीर्ण करना आवश्यक था। लेकिन न्यायालय के निर्णय ने इस भेद को अनदेखा कर दिया है।
टीईटी से जुड़ी छूट और उसकी प्रभावी स्थिति
रमेश चंद्र पुष्करणा ने बताया कि पहले टीईटी (TET) से संबंधित जो छूट दी गई थी, वह वैध और न्यायपूर्ण थी, क्योंकि इसका उद्देश्य शिक्षकों की योग्यता का मूल्यांकन करना था। 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को यह छूट दी गई थी, क्योंकि उन्हें टीईटी पास करने की आवश्यकता नहीं थी।
अब, अदालत के फैसले के बाद, पुरानी श्रेणी के शिक्षकों को भी टीईटी उत्तीर्ण करना होगा, जिसके कारण उनका पेशेवर जीवन असुरक्षित हो सकता है। इसके अलावा, यह निर्णय कई शिक्षकों को अवसाद और मानसिक तनाव में डाल सकता है, क्योंकि वे लंबे समय से शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत हैं और अब उन्हें एक अनिवार्य परीक्षा पास करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
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टीईटी के लिए नए दिशानिर्देश: बदलाव और परिणाम
टीईटी (TET) के तहत शिक्षा जगत में किए गए बदलावों से यह बात स्पष्ट हो रही है कि सरकार और न्यायपालिका का उद्देश्य शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार करना है। हालांकि, शिक्षकों का मानना है कि यह फैसला असमर्थनीय है क्योंकि इसने उनके लिए पिछले वर्षों में किए गए कार्यों का मूल्यांकन करने का कोई मौका नहीं दिया है।
टीईटी की अनिवार्यता से उन शिक्षकों की सेवा में असुरक्षा का वातावरण बन सकता है, जो लंबे समय से शिक्षा क्षेत्र में हैं और जिनके पास पहले से पर्याप्त अनुभव और योग्यता है। इसके परिणामस्वरूप, कई अनुभवी शिक्षक टीईटी (TET) परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो सकते हैं और यह उनके करियर के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
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क्या यह कदम शिक्षकों के लिए लाभकारी है?
राजस्थान में शिक्षकों का यह विरोध इसलिए बढ़ा है क्योंकि उनका मानना है कि इस फैसले से सिर्फ पुराने और अनुभवी शिक्षकों की नौकरी पर खतरा पैदा हो सकता है। 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को अब टीईटी (TET) परीक्षा के लिए तैयार होने का दबाव डाला जा रहा है। इससे उनका पेशेवर जीवन प्रभावित हो सकता है।
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शिक्षकों की सेवा असुरक्षा और उसके नकारात्मक परिणाम
कई वर्षों से शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत शिक्षकों की सेवा में असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। खासकर उन शिक्षकों के लिए जिन्होंने लंबी सेवा दी है और जिनका अनुभव इस समय के हिसाब से बहुत मूल्यवान है। इसीलिए राजस्थान में टीईटी का विरोध हो रहा है।
राजस्थान शिक्षक संघ राष्ट्रीय के नेताओं ने भी इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि इससे शिक्षकों में निराशा और मानसिक दबाव बढ़ेगा। एक तरफ जहां सरकार और न्यायपालिका का उद्देश्य शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार करना है, वहीं दूसरी तरफ यह कदम उनके लिए आत्मविश्वास की कमी और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है।
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टीईटी अनिवार्यता के समाधान पर शिक्षक संघ का सुझाव
शिक्षक संघ ने सुझाव दिया है कि सरकार को एक ऐसा मार्ग निकालना चाहिए, जो इन शिक्षकों की योग्यता का मूल्यांकन करे, न कि सिर्फ एक परीक्षा के माध्यम से। उनके अनुसार, लंबे समय तक सेवा देने वाले शिक्षकों को अनिवार्य रूप से टीईटी (TET) उत्तीर्ण करने का आदेश देने के बजाय, उनके पिछले कार्य अनुभव और शिक्षा में योगदान को महत्व देना चाहिए।