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भारत के दवा बाजार को एक बार फिर से गंभीर सवालों का सामना करना पड़ रहा है। राजस्थान और मध्यप्रदेश में कफ सिरप के सेवन से बच्चों की मौत के मामले सामने आने के बाद यह मुद्दा देशभर में छा गया है। इन घटनाओं के बाद, जहां कुछ दवा कंपनियों को लेकर सवाल उठ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकारी अधिकारियों का रवैया भी काफी संदेहास्पद प्रतीत हो रहा है। इस लेख में हम इन घटनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे, और इसके परिणामों और जिम्मेदारों पर विचार करेंगे।
राजस्थान में सरकारी अस्पतालों से दी गई दवा पर सवाल उठे हैं, तो मध्यप्रदेश में ​जिन दवाओं को बच्चों की मौत का कारण माना जा रहा है, वे प्राइवेट प्रेक्टिस करने वाले चुनिंदा डॉक्टरों ने लिखी थी और ये दवाइयां उनके आसपास के इलाकों में ​ही मिलती थी।
राजस्थान 3 बच्चों की मौत
राजस्थान में कफ सिरप के सेवन से तीन बच्चों की मौत हो चुकी है। यह मामला तब सामने आया जब बच्चों ने डेक्सट्रोमेथोर्फन हाइड्रोब्रोमाइ कफ सिरप का सेवन किया और उनकी हालत बिगड़ गई। इस घटना के बाद, इस कफ सिरप के प्रभाव पर सवाल उठाए गए हैं और अब इसके सैंपल की जांच की जा रही है।
मध्यप्रदेश में नौ बच्चों की मौत
मध्यप्रदेश में कफ सिरप के सेवन से नौ बच्चों की मौत हो गई। यहां पर दो प्रमुख कफ सिरप, कोल्ड्रिफ (Coldrif) और नेक्सा डीएस (Nexa DS), पर सवाल उठाए गए हैं, और इनकी बिक्री पर रोक लगा दी गई है।
कफ सिरप से बच्चों की मौत का मामला गंभीर है। यह दवा कंपनियां की लापरवाही की तरफ तो ध्यान आकर्षित करता ही है, सरकारों की निष्क्रियता को भी उजागर करता है।
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दवा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की स्थिति
राजस्थान में केयसंस फार्मा की डेक्सट्रोमेथोर्फन हाइड्रोब्रोमाइड सिरप कीर जांच चल रही है, लेकिन पहले रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि यह सिरप चिकित्सकों ने नहीं, बल्कि बच्चों के परिजनों ने अपनी मर्जी से दी थी। इस रिपोर्ट ने दवा कंपनियों को बचाने के संकेत दिए हैं, जिससे मामले की गंभीरता पर सवाल उठ रहे हैं।
मध्यप्रदेश में डॉक्टरों का बचाव
मध्यप्रदेश में, डॉ. प्रवीण सोनी ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में वायरल बुखार का स्वरूप बदल चुका था। लोग स्वयं ही दवाइयों का सेवन करते थे, जिससे उनकी स्थिति बिगड़ गई और उन्हें चिकित्सकों के पास लाया गया।
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नकली दवाओं के मामले में कार्रवाई की ​जिम्मेदारी
भारत में नकली और असुरक्षित दवाओं की समस्या बढ़ती जा रही है, और इसके खिलाफ कार्रवाई के लिए फूड सेफ्टी एंड ड्रग कंट्रोलर डिपार्टमेंट जिम्मेदार है। इस विभाग द्वारा नियमित रूप से दवाइयों के सैंपल लेकर उनकी जांच की जाती है, और यदि कोई दोषी पाया जाता है तो ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 के तहत कड़ी सजा दी जाती है।
दवा कंपनियों के खिलाफ चलाए अभियान: राठौड़
इस बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व चिकित्सा मंत्री व नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कफ सिरफ से बच्चों की मौत के मामले में दोषी कम्पनियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग की है। राठौड़ ने कहा कि दवा कंपनी की गलतियों से बच्चों की मौत हुई है तो सरकार एक्शन लेना चाहिए। साथ ही सभी फार्मा कंपनियों की दवाओं की जांच करवाने का अभियान भी चलाए ताकि तय मापदंडों के विपरीत बनाई जा रही दवाईयां पकड़ी जा सके। ऐसी कम्पनियों के खिलाफ कार्यवाही की जाए।
अधिकारी ने एक्ट की परिभाषा ही बदल दीराजस्थान में एक अजीब स्थिति सामने आई, जब एक अधिकारी ने नकली दवाओं को बचाने के लिए ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 की परिभाषा बदल दी। इस बदलाव ने कई नकली दवाओं को "नकली" दवाओं की सूची से हटा दिया। ऐसा माना जा रहा है कि यह बदलाव 14-15 फार्मेसी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए माना जा रहा है। राजस्थान के एक अधिकारी ने ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट की व्याख्या में बदलाव किया, जिससे नकली दवाओं के आंकड़ों में हेरफेर किया गया। इस बदलाव ने अधिकारियों को विधानसभा को गलत जानकारी देने का मौका दिया। यह बदलाव निश्चित रूप से राज्य सरकार की जवाबदेही पर गंभीर सवाल उठाता है। क्या किया बदलावदरअसल, प्रदेश में नकली दवाओं को लेकर ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट,1940 बना हुआ है। इसमें स्पष्ट है कि किसी भी दवा में 3-4 या जितने भी सॉल्ट (रसायन) दर्शाए गए हैं, जांच में उनमें से एक भी नहीं मिलता है तो उस दवा को नकली ही माना जाएगा। लेकिन राजस्थान के ड्रग कंट्रोलर (द्वितीय) राजाराम शर्मा ने उनमें से कई नकली दवाओं के आगे टिप्पणी करते हुए उनको नकल दवा की सूची से हटा दिया। उसमें नई परिभाषा लिखी गई कि यदि कोई एक साल्ट शून्य भी है, तो उसे नकली दवा नहीं माना जाएगा। | |
कफ सिरप बनी भारत की बदनामी का कारण
भारत की दवाओं को लेकर पहले भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठ चुके हैं। दिसंबर 2022 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत में बनी कफ सिरप के कारण गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत की घटना को उठाया था। WHO के विश्लेषण के अनुसार, इन सिरपों में “डायथिलीन ग्लाइकॉल” और “एथिलीन ग्लाइकॉल” की अवांछनीय मात्रा थी, जो सामान्यत: औद्योगिक उपयोग के लिए बनाए जाते हैं। नेपाल और उज्बेकिस्तान में भी ऐसे मामले सामने आए थे।