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Photograph: (the sootr)
Jaipur. राजस्थान में विधायक निधि में भ्रष्टाचार पर आधारित स्टिंग ऑपरेशन के बाद बीजेपी विधायक रेवंतराम डांगा और कांग्रेस विधायक अनीता जाटव की विधायकी पर संकट गहरा गया है। स्टिंग ऑपरेशन में यह साफ दिखाई दिया कि दोनों नेताओं ने विधायक निधि जारी करने के लिए अनुचित रूप से सौदेबाजी की।
इस संदर्भ में उनके पास कोई ठोस बचाव नहीं है। वहीं निर्दलीय विधायक ऋतु बनावत को संदेह का लाभ मिल सकता है, जिससे उनकी विधायकी पर कम खतरा नजर आ रहा है।
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जाटव और डांगा का बचाव कमजोर
जाटव और डांगा के खिलाफ ठोस सबूत मौजूद हैं। स्टिंग वीडियो में दोनों नेताओं को विधायक निधि के बदले रिश्वत की मांग करते हुए स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसके विपरीत बनावत की ओर से कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि उन्होंने किसी प्रकार की लेन-देन की हो। बनावत ने सीबीआई जांच की मांग की है, जो निरपराधी का व्यवहार है।
बनावत पर आरोपों का विरोध
बनावत पर आरोप लगाना गंभीर सवाल खड़ा करता है। उपलब्ध तथ्यों के आधार पर यह साफ है कि उन्होंने विधायक निधि की राशि जारी करने के लिए किसी प्रकार की मांग नहीं की थी। न तो कोई लिखित दस्तावेज है, ना कोई आदेश और ना ही कोई साक्ष्य है जो यह साबित करे कि उन्होंने राशि के बदले कुछ चाहा या दबाव बनाया। इस प्रकार उन्हें अभियुक्त बनाना कानूनी दृष्टिकोण से गलत प्रतीत होता है।
कानूनी दृष्टिकोण
कानून यह कहता है कि किसी को अभियुक्त बनाने के लिए यह साबित होना जरूरी है कि उसने स्वयं कोई गलत काम किया हो या कम से कम उस गलत काम में उसकी जानकारी या सहमति हो। इस मामले में बनावत के खिलाफ ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं है। इस मामले में कोई ऑडियो रिकॉर्डिंग, लिखित पत्र, आदेश या साक्ष्य नहीं मिले हैं। यदि कोई अन्य व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से बातचीत करता है, तो उसे विधायक की जिम्मेदारी नहीं माना जा सकता।
दोषी मानने से पहले प्रमाण की जरूरत
यह मामला इस कारण भी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान समय में किसी पर आरोप लगने से उसे दोषी मान लिया जाता है, जबकि सच यह है कि बिना किसी ठोस प्रमाण के आरोप केवल संदेह पर आधारित होते हैं। जब तक कोई आरोप और आदेश जैसे बुनियादी तथ्य साबित नहीं होते, तब तक किसी को अभियुक्त बनाना केवल संदेह पर आधारित होगा, न कि वास्तविक प्रमाण पर।
मामले का निष्कर्ष
इस मामले का निष्कर्ष स्पष्ट है। जब न तो कोई मांग साबित है, ना कोई आदेश और ना ही कोई ठोस साक्ष्य, तो बनावत को अभियुक्त बनाना न केवल जल्दबाजी होगी, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया की मूल भावना के खिलाफ भी होगा। बिना पर्याप्त साक्ष्य के किसी को दोषी ठहराना न्याय और लोकतंत्र की बुनियादी अपेक्षाओं के विपरीत है।
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खास बातें
- बीजेपी विधायक रेवंतराम डांगा और कांग्रेस विधायक अनीता जाटव की विधायकी पर संकट।
- निर्दलीय ऋतु बनावत को संदेह का लाभ मिल सकता है, उनके खिलाफ कोई ठोस प्रमाण नहीं।
- कानूनी दृष्टिकोण में बिना किसी ठोस प्रमाण के किसी को अभियुक्त बनाना न्याय के खिलाफ है।
- न्याय का सिद्धांत कहता है कि केवल संदेह पर आधारित आरोपों को नहीं माना जा सकता।
मुख्य बिंदु
- स्टिंग ऑपरेशन में डांगा और जाटव के खिलाफ ठोस साक्ष्य मौजूद हैं, जिससे उनकी विधायकी संकट में है।
- वहीं बनावत के खिलाफ कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। इसलिए उन्हें अभियुक्त बनाना कानूनी दृष्टिकोण से गलत है।
- आरोपों के बिना किसी को दोषी मानना केवल संदेह पर आधारित होगा और यह न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है।
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