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Photograph: (the sootr)
राजस्थान की सत्ता तक पहुंचने का रास्ता मेवाड़ होकर जाता है और इस सच को कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल अच्छी तरह समझते हैं। यही कारण है कि 2028 में सत्ता वापसी की कोशिश कर रही कांग्रेस ने इन दिनों मेवाड़ क्षेत्र पर पूरा ध्यान केंद्रित किया है।
यह क्षेत्र लंबे समय तक कांग्रेस के लिए जीत का आधार रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में भाजपा ने यहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। अब भाजपा मेवाड़ में अपनी स्थिति और भी मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जिससे क्षेत्रीय राजनीति में यह जंग और भी दिलचस्प हो गई है।
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कांग्रेस का मेवाड़ पर फोकस
कांग्रेस मेवाड़ में खोई हुई जमीन को फिर से पाने के लिए सक्रिय दिख रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कन्हैयालाल हत्याकांड को बड़ा मुद्दा बनाकर भाजपा को घेरने का अभियान चलाया है। उनके उदयपुर दौरों से कांग्रेस को नई ऊर्जा मिलती दिख रही है। उधर, सचिन पायलट ने भी इस बार अपना जन्मदिन सांवलिया सेठ मंदिर में मनाकर मेवाड़ में अपनी सियासी जड़ें मजबूत करने का संकेत दिया। इससे यह साफ है कि कांग्रेस मेवाड़ में अपनी सियासी स्थिति को फिर से स्थापित करने के लिए पूरी ताकत लगा रही है।
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कांग्रेस को मेवाड़ में चेहरों की कमी
हालांकि कांग्रेस के पास इस संभाग में बड़े और प्रभावी नेताओं की कमी साफ तौर पर दिख रही है। गहलोत के अलावा यहां कोई और नेता निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में नहीं है। डॉ. सीपी जोशी, रघुवीर मीणा, धीरज गुर्जर, रामलाल जाट, उदयलाल आंजना और अर्जुन बामनिया जैसे नेताओं की स्थिति कमजोर नजर आ रही है। कुछ नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया है, जबकि कांग्रेस के पुराने गढ़ मेवाड़ में स्थिति काफी नाजुक हो गई है।
कांग्रेस और बाप का गठबंधन
कांग्रेस की कमजोरी के एक कारण को बाप (भारतीय आदिवासी पार्टी) से गठबंधन भी माना जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस गठबंधन ने कांग्रेस के हाथ ढीले किए हैं और भारतीय आदिवासी पार्टी को मेवाड़ में मजबूत स्थिति दी है। भाजपा ने इस क्षेत्र में अपनी स्थिति इतनी मजबूत कर ली है कि कांग्रेस के लिए यहां अपना प्रभाव वापस पाना मुश्किल होता जा रहा है।
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भाजपा अंगद के पांव की तरह
भाजपा का मेवाड़ क्षेत्र में मजबूत आधार है। भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर जिलों में भाजपा का नियंत्रण स्थापित है और यहां पार्टी ने अंगद के पांव की तरह अपनी स्थिति मजबूत कर रखी है। भाजपा की नीतियों और नेतृत्व को देखते हुए कांग्रेस के लिए यहां अपनी जमीन खोजना आसान नहीं होगा। मेवाड़ में भाजपा का दबदबा खत्म करने के लिए कांग्रेस को अपनी रणनीतियों में बदलाव करना पड़ेगा।
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आने वाले समय में भविष्य क्या होगा?
मेवाड़ में भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही सियासी कोशिशों का परिणाम आने वाले समय में सामने आएगा। जहां भाजपा अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखना चाहती है, वहीं कांग्रेस भी सत्ता में वापसी के लिए नए तरीके अपना रही है। यह देखने वाली बात होगी कि 2028 के चुनावों में मेवाड़ किस पार्टी के हाथों में जाता है और किसे सत्ता की कुंजी मिलती है।