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Photograph: (the sootr)
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (NIA) जयपुर ने पिछले चार सालों से प्राचीन भारतीय चिकित्सा पर काम करना शुरू किया है, जिसमें 100 दुर्लभ आयुर्वेदिक पांडुलिपियों की खोज की गई है। इन पांडुलिपियों को डिजिटल रूप में सहेजने और अध्ययन करने की प्रक्रिया चल रही है। आयुष मंत्रालय ने 2000 में NIA को पांडुलिपि विज्ञान के लिए राष्ट्रीय नोडल एजेंसी घोषित किया था, ताकि प्राचीन आयुर्वेदिक ज्ञान को संरक्षित किया जा सके।
पांडुलिपियों का महत्व और अध्ययन के तरीके
ये पांडुलिपियां प्राचीन समय के उपचार के तरीके और निदान के बारे में अहम जानकारी प्रदान करती हैं। इनमें भावप्रकाश, रस तरंगिणी और पालकाप्य संहिता जैसी पांडुलिपियां शामिल हैं, जो उस समय के वैद्यों द्वारा लिखे गए चिकित्सा दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। इन पांडुलिपियों से यह भी पता चलता है कि उस समय के वैद्य नाड़ी, नेत्र, जिह्वा, मुख, मूत्र और जीवनशैली जैसी नैदानिक परीक्षाएं करते थे। ये प्राचीन विधियां आज के आधुनिक चिकित्सा परीक्षणों से पूरी तरह अलग थीं, जो ज्यादातर प्रयोगशाला परीक्षणों पर निर्भर हैं।
पांडुलिपियों का महत्व और उनके विभिन्न पहलू
इन पांडुलिपियों में एक महत्वपूर्ण पांडुलिपि प्याज के औषधीय गुणों पर आधारित है, जो आयुर्वेद में उसके उपयोग को दर्शाती है। रावण द्वारा लिखी एक अन्य पांडुलिपि में प्राचीन आसवन विधियों से अर्क (डिस्टिलेट्स) तैयार करने का तरीका बताया गया है। इन पांडुलिपियों से पता चलता है कि कैसे वैद्यों ने विभिन्न बीमारियों, उपचारों और स्थानीय वनस्पतियों का दस्तावेजीकरण किया।
पांडुलिपियों से प्राप्त ज्ञान के क्षेत्र
बालतंत्र पांडुलिपि में बच्चों की बीमारियों, महिलाओं के स्वास्थ्य, पुरुषों के स्वास्थ्य, बांझपन और गर्भावस्था के बारे में जानकारी दी गई है। एक अन्य पांडुलिपि मदनमदन मंजरी, संतानोत्पत्ति और कामुकता को बढ़ाने के बारे में बताती है। इन पांडुलिपियों में पुरुषों के प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए योगों का उल्लेख भी किया गया है।
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धातु चिकित्सा और शरीर रचना विज्ञान
रसप्रदीप पांडुलिपि में सोना, चांदी, तांबा, लोहा और रत्न जैसी शुद्ध धातुओं का उपयोग करके दवाइयां तैयार करने का तरीका बताया गया है। इसके अलावा, शरीरंगादी-नत्नाव रूपा-निर्णय पांडुलिपि में शरीर के अंगों और शरीर रचना विज्ञान का वर्णन है, जो आयुर्वेदिक चिकित्सा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
एनआईए की चुनौतियां और प्रयास
एनआईए के आयुर्वेद पांडुलिपि विभाग के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. असित कुमार पांजा बताते हैं कि आयुर्वेदिक पांडुलिपियों को प्राप्त करना आसान नहीं होता। इनमें से अधिकांश परिवार पांडुलिपियों को साझा करने में हिचकिचाते हैं। कई लोग इन्हें पवित्र मानते हैं और गलत इस्तेमाल से बचाना चाहते हैं। एनआईए पांडुलिपि विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। इससे आयुर्वेद के उपचार में मदद मिलेगी।
पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण और सुरक्षा
एनआईए पांडुलिपियों को सहेजने, ट्रांसक्रिप्ट करने और डिजिटलीकरण के प्रयासों में जुटा हुआ है। इसके लिए वे विश्वास बनाकर, गोपनीयता सुनिश्चित करके और पावती देकर पांडुलिपियों को सुरक्षित रूप से संरक्षित करते हैं। इन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण करने के बाद जब आवश्यक होता है, तो मूल प्रतियां परिवारों को वापस कर दी जाती हैं।
एनआईए की पांडुलिपि खोज में सहयोग
एनआईए प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों से जुड़ी पांडुलिपियों की खोज के लिए विभिन्न संगठनों और पारंपरिक आयुर्वेदिक केंद्रों के साथ सहयोग करता है। यह गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पारंपरिक पांडुलिपियों का पता लगाने के लिए क्षेत्रीय निर्देशिकाओं, मंदिर रिकॉर्ड और सामाजिक नेटवर्क का उपयोग करता है। क्या पांडुलिपि डिजिटलीकरण होने से आयुर्वेद के उपचार की पहुंच आम आदमी तक बढ़ पाएगी?
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