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Photograph: (the sootr)
राजस्थान हाई कोर्ट ने ग्राम पंचायतों में राज्य सरकार की ओर से प्रशासक के तौर पर लगाए गए पूर्व सरपंचों को हटाने के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी निर्वाचित प्रतिनिधि को बिना अवसर दिए हटाना लोकतंत्र की जड़ों पर प्रहार है। कोर्ट ने सरकार को जल्द से जल्द पंचायतों के चुनाव करवाने को भी कहा है। इस फैसले के बाद सरकार पर पंचायत चुनाव जल्द कराने का दबाव बढ़ गया है।
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कई प्रशासकों को हटाया
जनवरी, 2025 में पंचायती राज संस्थाओं का पांच साल का कार्यकाल खत्म हो गया था। नई पंचायतों के चुनाव समय पर नहीं हो सके। ऐसे में सरकार ने अस्थायी व्यवस्था के तहत पूर्व सरपंचों को ही प्रशासक बनाकर ग्राम पंचायतों का कामकाज सौंप दिया, लेकिन बाद में भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोप लगाते हुए कई प्रशासकों को हटा दिया गया।
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याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सरकार ने बिना सुनवाई और बिना जांच किए ही हटाने का आदेश दिया। वहीं सरकार का तर्क था कि प्रशासकों का पद कोई वैधानिक अधिकार नहीं है, यह केवल अस्थायी व्यवस्था थी, इसलिए उन्हें हटाने में किसी प्रक्रिया की जरूरत नहीं।
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कोर्ट ने यह कहा
जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने कहा कि धारा 38 (राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994) के तहत किसी भी सदस्य या प्रतिनिधि को हटाने से पहले सुनवाई और जांच अनिवार्य है। सिर्फ पोस्ट-डिसीजनल (बाद की औपचारिक सुनवाई) पर्याप्त नहीं है, बल्कि पूर्व सुनवाई जरूरी है। सरकार ने पूर्व निर्धारित मन बनाकर प्रशासकों को हटाया और बाद में चार्जशीट थमाई, जो कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी को सुनवाई से पहले ही दोषी मान लेना लोकतंत्र और न्याय की मूल आत्मा के विपरीत है।
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चुनाव नहीं कराने से लोकतंत्र पंगु
अदालत ने कहा है कि अनंतकाल से जनता की आवाज को भगवान की आवाज माना जाता है। ग्राम पंचायतें गांव के स्तर पर मूल प्रशासक के रूप में काम करती हैं। अदालत ने पंचायत चुनावों में हो रही देरी पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 243-ई और अधिनियम की धारा 17 के तहत पंचायतों का चुनाव हर पांच साल में अनिवार्य है।
अधिकतम छह माह के भीतर चुनाव होना चाहिए, लेकिन राजस्थान सरकार ने अब तक चुनाव नहीं कराए, जिससे स्थानीय लोकतंत्र पंगु हो गया है। लगातार टालमटोल से पंचायत स्तर पर शासन और विकास कार्य ठप पड़े हैं। कोर्ट ने मुख्य सचिव, राज्य निर्वाचन आयोग और चुनाव आयोग को आदेश दिया कि पंचायत चुनाव जल्द से जल्द कराए जाएं।
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