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Photograph: (TheSootr)
केंद्र और राज्य सरकारों ने 2016 में किसानों को फसल नुकसान के दौरान सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) शुरू की। इस योजना का उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और फसलों के नुकसान से बचाने के लिए बीमा कवरेज देना था। हालांकि, इस योजना का उद्देश्य किसानों को राहत पहुंचाना था, लेकिन राजस्थान में इस योजना ने कई पेचीदगियां उत्पन्न की हैं, जिनसे किसानों को अपेक्षित मुआवजा नहीं मिल पा रहा है, जबकि बीमा कंपनियों को इसका फायदा हो रहा है। छ​ह साल में ही राजस्थान में बीमा कंपनियों ने कम क्लेम की बदौलत 7,499 करोड़ का फायदा उठा लिया है।
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फसल बीमा योजना का उद्देश्य और असल परिणाम
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक आपदाओं और फसल में होने वाले नुकसान से वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना था। लेकिन राजस्थान में इस योजना के लागू होने के बाद से किसानों को मुआवजा के रूप में अपेक्षाकृत कम राशि मिली है। इसने बीमा कंपनियों को अधिक लाभ उठाने का अवसर दिया है। पिछले 6 वर्षों में किसानों और सरकार ने 28683.69 करोड़ रुपए की किस्तें जमा की हैं, लेकिन केवल 21184 करोड़ रुपए का ही क्लेम दिया गया है। इस हिसाब से बीमा कंपनियों को 7499 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ है।
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बीमा कंपनियों का मुनाफा : किसानों को मुआवजा नहीं मिला
यह आंकड़ा यह स्पष्ट करता है कि किस्तों के मुकाबले किसानों को मिलने वाले क्लेम की राशि बहुत कम रही है। बीमा कंपनियों ने किसानों से जो रकम ली, उसका बहुत बड़ा हिस्सा उनके पास रह गया, जिससे कंपनियों को हर साल औसतन 1500 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ। यह मुआवजे के नियमों की पेचीदगियों के कारण हुआ है, जिनमें अक्सर किसानों को उनका हक नहीं मिल पाता।
किसानों के लिए मुआवजे का नियम और बीमा कंपनियों के फायदे
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को मुआवजा केवल तभी दिया जाता है जब पूरे तहसील या पटवार क्षेत्र में फसल का नुकसान हो। इसका मतलब है कि अगर किसानों की फसल का कुछ हिस्सा ही प्रभावित हो, तो उन्हें मुआवजा नहीं मिलता। इसके अलावा, शॉर्ट सर्किट के कारण आग लगने से फसल के नुकसान पर भी मुआवजा नहीं मिलता है। इसी प्रकार, अगर फसलों को पशुओं ने नुकसान पहुंचाया हो या फसलों में बीमारी आ गई हो, तो उन मामलों में भी मुआवजा नहीं दिया जाता है।
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किसानों को मिलने वाला मुआवजा
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को फसल की क्षति का मुआवजा साल दर साल अलग-अलग मिलता है। 2019 से 2024 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट है कि बीमा कंपनियों ने जमा की गई राशि के मुकाबले किसानों को बहुत कम क्लेम दिया है। उदाहरण के लिए, 2019 में किसानों द्वारा 37,993.39 करोड़ रुपए की किस्त दी गई, जबकि कुल क्लेम केवल 3,23,719 करोड़ रुपए का मिला।
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वर्षवार बीमा भुगतान आंकड़े
वर्ष 2019 से 2024 तक की अवधि में कुल जमा की गई किस्त और किसानों को मिले क्लेम का विश्लेषण किया गया। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि मुआवजे की पेचीदगियों के कारण किसानों को कभी भी सही और समय पर मुआवजा नहीं मिला।
वर्ष | कृषक किश्त | राज्य सरकार किस्त | केंद्र का किस्त | कुल राशि | क्लेम | बीमितराशि |
---|---|---|---|---|---|---|
2019 | 37,993.39 | 1,49,890.99 | 1,49,890.99 | 3,37,775.37 | 3,23,719 | 16,43,257.21 |
2020 | 43,161.71 | 1,75,419.91 | 1,61,703.58 | 3,80,285.20 | 2,46,632 | 20,42,484.86 |
2021 | 38,566.61 | 1,67,471.33 | 1,53,413.12 | 3,59,451.06 | 3,87,820 | 18,30,025.24 |
2022 | 38,998.75 | 1,67,683.93 | 1,56,593.56 | 3,63,276.24 | 1,68,367 | 18,56,930.55 |
2023 | 45,370.45 | 1,15,060.07 | 1,15,060.07 | 2,75,490.59 | 1,81,783 | 21,43,723.66 |
2024 | 45,867.99 | 1,18,632.59 | 1,18,632.59 | 2,83,133.17 | 91,370 | 22,48,937.89 |
(राशि लाख रुपए में) (आंकड़े PMFBY वेबसाइट के अनुसार)
इस प्रकार, हर वर्ष किसानों के लिए जमा की गई राशि और मुआवजे के वितरण के बीच अंतर बढ़ता गया।
फसल बीमा की पेचीदगियां क्या हैं?
फसल बीमा के तहत मुआवजा प्राप्त करने की प्रक्रिया में कई पेचीदगियां हैं। मुआवजे का नियम केवल तब लागू होता है जब फसल का नुकसान तहसील या पूरे पटवार स्तर पर हो। इसके अलावा, शॉर्ट सर्किट से आग लगने के कारण होने वाले नुकसान को कवर नहीं किया जाता। यही नहीं, यदि फसल को किसी पशु ने नुकसान पहुंचाया हो या उसमें कोई बीमारी लग जाए, तो भी किसान मुआवजे का दावा नहीं कर सकते।
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फसल बीमा योजना में सुधार की आवश्यकता
राजस्थान में किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का क्लेम नहीं मिल पाने के कारण फसल बीमा योजना में सुधार की आवश्यकता महसूस हो रही है। सरकार को इस योजना के नियमों में बदलाव करना होगा ताकि किसानों को सही समय पर और सही राशि मिल सके। इसके लिए किसानों की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए एक नया ढांचा तैयार करना जरूरी होगा।