/sootr/media/media_files/2025/10/12/punarvas-2025-10-12-13-48-17.jpg)
Udaipur.राजस्थान में पिछले एक साल में बाल संरक्षण की स्थिति बेहद चिंताजनक हो गई है। राज्य के 60 से अधिक बालगृह बंद हो चुके हैं। लगभग 1500 बच्चों को को पुनर्वास के नाम पर रिश्तेदारों या परिचितों को सौंप दिया गया, लेकिन यह सुनिश्चित नहीं किया गया कि क्या ये लोग बच्चों की उचित देखभाल करने के योग्य हैं या नहीं।
यह स्थिति बाल अधिकारों के संकट को दर्शाती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन बच्चों का अब क्या होगा? क्या ये पुनर्वास है या केवल परित्याग? केंद्र सरकार के मिशन वात्सल्य के तहत बाल संरक्षण गृहों को मॉडल के रूप में विकसित करने की दिशा में काम किया जा रहा था, लेकिन राजस्थान में इन घरों के बंद होने से यह सब प्रश्नों के घेरे में आ गया है। बालगृह के बच्चों का पुनर्वास आवश्यक है, लेकिन इस काम में खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए।
कानूनी प्रावधानों की अनदेखी
किशोर न्याय बच्चों की देख-रेख एवं संरक्षण अधिनियम 2015 के तहत प्रत्येक जिले में बाल गृह, शिशु गृह, आश्रय गृह और संप्रेषण गृह का संचालन अनिवार्य किया गया है। इन गृहों में बच्चों को संरक्षण देने के लिए बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड के आदेश पर कार्यवाही की जाती है। लेकिन इन घरों के बंद होने से राज्य सरकार की नीति पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।
ये खबरें भी पढ़ें
राजस्थान में परियोजनाओं की कछुआ चाल : फिर कैसे होगा राज्य का विकास, अब तो जागो सरकार
राजस्थान एसआई भर्ती 2021 में शामिल कैंडिडेट्स को 2025 की भर्ती में मिलेगी आयुसीमा में छूट
राजस्थान में बंद बालगृहों की संख्या और उनके प्रभाव
इन दिनों चर्चा में हैं। राजस्थान के बालगृह राजस्थान में पिछले साल 60 से अधिक बालगृह बंद हो गए। इनमें से कई प्रमुख बालगृह जैसे उदयपुर जिले में संचालित 18 बालगृह, जिसमें 1 शिशुगृह, 4 आश्रय गृह, 4 बालिका गृह और 9 बालगृह शामिल थे, अब पूरी तरह से बंद हो चुके हैं। इनमें 129 बालिकाएं, 390 बालक, 90 बच्चे और 12 नवजात बच्चे थे। सवाल यह है कि इन बच्चों की अब किसके पास देखभाल हो रही है? क्या इन बच्चों को सुरक्षित वातावरण मिल पा रहा है?
बच्चों का भविष्य क्या होगा
राज्य में बाल अधिकार विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं के अनुसार, इन बंद हुए बालगृहों के कारण वंचित और निराश्रित बच्चों का भविष्य अंधेरे में डूबा हुआ है। डॉ. शैलेन्द्र पंड्या, बाल अधिकार विशेषज्ञ और राजस्थान बाल आयोग के पूर्व सदस्य का कहना है कि सरकार को इन बच्चों के पुनर्वास के लिए शीघ्र कदम उठाने चाहिए, ताकि इनका भविष्य सुरक्षित हो सके।
ये खबरें भी पढ़ें
राजस्थान में हथियारों की तस्करी का बड़ा खुलासा : मध्य प्रदेश से हो रही है तस्करी, छह गिरफ्तार
बच्चों का पुनर्वास या परित्याग
जब बालगृह बंद हो गए, तो बच्चों को कहां भेजा गया और किनके पास सौंपा गया, इस बारे में सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी। बाल संरक्षण आयोग और विभिन्न एनजीओ इस मुद्दे को उठा चुके हैं, लेकिन इसका समाधान नहीं हो पाया है। राजस्थान राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य ध्रुव कुमार कविया का कहना है कि इन बच्चों के पुनर्वास के बारे में सरकार को और गंभीरता से काम करना चाहिए।
बाल अधिकारों पर संकट
राजस्थान में बाल संरक्षण और बाल अधिकारों की स्थिति पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। यदि इन बच्चों को सही देखभाल और संरक्षण नहीं मिलता है, तो यह बाल श्रम, शोषण और अन्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। राज्य और केंद्र सरकारों को मिलकर इस मुद्दे का समाधान खोजना होगा।
इस मामले से जुड़े कुछ सवालअगर बच्चों के परिवार मौजूद थे, तो इतने वर्षों तक इन्हें अनाथ क्यों माना गया? पुनर्वास के नाम पर बच्चों को कहां और किनके पास भेजा गया? यदि परिवार थे तो इन बालगृहों को वर्षों तक अनुदान क्यों मिलता रहा?
| |
बाल संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए
आवश्यक उपायों का पालन: सरकार को बाल कल्याण के लिए सही कदम उठाने चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों का पुनर्वास पूरी तरह से वैध और सुरक्षित हो। बालगृहों को फिर से खोला जाए और बच्चों की देखभाल की सख्त निगरानी की जाए। केंद्र सरकार के मिशन वात्सल्य के तहत, राजस्थान में बालगृहों का मॉडल विकसित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चों को सुरक्षित और सुरक्षित माहौल मिले।