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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान (Rajasthan) में हर साल की तरह इस बार भी आषाढ़ वायु धारिणी पूर्णिमा के मौके पर राजधानी जयपुर (Jaipur) में पारंपरिक और वैज्ञानिक विधियों से वायु परीक्षण किया गया। यह परीक्षण वर्षा की स्थिति, कृषि उत्पादन और जलस्रोतों की स्थिति का पूर्वानुमान करने के लिए किया गया था। जंतर-मंतर से लेकर विज्ञान केंद्र तक अनुभवी ज्योतिषाचार्यों, पंचांगकर्ताओं और विद्वानों ने वायु की दिशा और गति का विश्लेषण किया, जिसके परिणाम उत्साहजनक रहे।
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जंतर-मंतर पर ध्वजा परीक्षण से वर्षा के संकेत
राजधानी के ऐतिहासिक जंतर मंतर पर 110 फीट ऊंचे सम्राट यंत्र पर ज्योतिषाचार्यों और पंचांगकर्ताओं ने सूर्यास्त के समय ध्वजा की दिशा का अध्ययन किया। इस विधि से वायु प्रवाह का विश्लेषण किया गया। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार वर्ष संवत्सर का नाम 'सिद्धार्थ' होने के कारण बादल जल से परिपूर्ण रहेंगे और वर्षा अच्छी होगी। इससे अन्न-धान्य की प्रचुरता और राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ जनहितकारी कार्यों में वृद्धि के योग बनते हैं। इस मौके पर प्रो. डॉ. विनोद शास्त्री, डॉ. विनोद कुमार शर्मा, डॉ. लता श्रीमाली सहित कई दैवज्ञ और विद्वान मौजूद थे।
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विज्ञान केंद्र में 298वां वायु परीक्षण
शास्त्री नगर स्थित क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र में भी अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान द्वारा 298वां वायु परीक्षण किया गया। इस परीक्षण के संयोजक डॉ. रवि शर्मा के अनुसार, यहां भी वायु का प्रवाह पश्चिम दिशा में पाया गया, जो भरपूर जलवृष्टि और बेहतर कृषि उत्पादन के संकेत देता है। हालांकि, इस दौरान जल प्रकोप की आशंका भी व्यक्त की गई है। पं. चंद्रशेखर शर्मा के मुताबिक 'समय का वाहन अश्व (घोड़ा)' होने से प्राकृतिक आपदाओं जैसे तूफान, ओलावृष्टि और भूस्खलन की संभावना बनी रहती है। वहीं 'समय का वास धोबी के घर' में होने से जलस्रोतों के परिपूर्ण रहने और अच्छी वर्षा के संकेत मिलते हैं।
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चार स्तंभों का तुलनात्मक निष्कर्ष
विभिन्न जलवायु और कृषि से संबंधित स्तंभों का तुलनात्मक निष्कर्ष इस प्रकार था:
जल स्तंभ (Water Column): 85.35% – वर्षा की स्थिति श्रेष्ठ
तृण स्तंभ (Grass Column): 100% – चारे की उपलब्धता उत्तम
वायु स्तंभ (Air Column): 10.72% – वायु में न्यूनता
अन्न स्तंभ (Food Column): 21.67% – अन्न उत्पादन में संभावित रोग-प्रकोप
इस निष्कर्ष से संकेत मिलता है कि इस बार श्रावण मास और चातुर्मास में वर्षा की स्थिति अच्छी रहेगी, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि और जलस्रोतों की स्थिति भी बेहतर हो सकती है।
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आषाढ़ वायु धारिणी पूर्णिमा परीक्षण के बारे में जानें
आषाढ़ पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) के दिन, जिसे वायु धारिणी पूर्णिमा भी कहा जाता है, वायु परीक्षण एक पारंपरिक विधि है, जिसका उद्देश्य वर्षा का पूर्वानुमान करना होता है। इस दिन, सूर्यास्त के समय, हवा की दिशा और गति का निरीक्षण किया जाता है, और इसे आने वाले मौसम तथा फसलों के बारे में एक संकेत माना जाता है।
विधि
सूर्यास्त के समय, हवा की दिशा और गति का निरीक्षण किया जाता है। खासतौर पर, हवा की दिशा को पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व की ओर बहने के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा, वायु की गति का भी अनुमान लगाया जाता है।
महत्व
माना जाता है कि वायु की दिशा और गति वर्षा के स्वरूप और फसलों की वृद्धि को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, यदि हवा पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है, तो इसे अच्छी वर्षा का संकेत माना जाता है। कुछ क्षेत्रों में वायु परीक्षण के लिए पारंपरिक यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जैसे सम्राट यंत्र।