बाड़मेर की चट्टानों में मिला रेयर अर्थ का खजाना, इलेक्ट्रिक कार और न्यूक्लियर पावर में बन सकेंगे आत्मनिर्भर

राजस्थान के बाड़मेर जिले में मिले रेयर अर्थ तत्व भारत को अगले 5-8 वर्षों में आत्मनिर्भर बना सकते हैं। खासकर इलेक्ट्रिक कार और न्यूक्लियर पावर के लिए। थार के रेगिस्तान में छिपे इस खजाने से भारत कई क्षेत्रों में बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकता है।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Barmer. राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित सिवाना रिंग कॉम्प्लेक्स को दुनिया के सबसे समृद्ध खजानों में से एक माना जा रहा है। यहां की चट्टानों में इलेक्ट्रिक कार, मोबाइल फोन, रॉकेट और न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट्स जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के लिए आवश्यक कच्चा माल छिपा हुआ है। यह खजाना खास तौर पर रेयर अर्थ एलीमेंट्स से भरपूर है, जो भारत को इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बना सकता है।

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रेयर अर्थ तत्वों का अद्वितीय घनत्व

सिवाना में मिलने वाले रेयर अर्थ एलिमेंट्स का घनत्व अन्य स्थानों के मुकाबले 100 गुना अधिक है। यहां नियोबियम और जिरकोनियम जैसे तत्व पाए जाते हैं, जो इलेक्ट्रिक कार, मोबाइल, रॉकेट और न्यूक्लियर पावर जैसे तकनीकी उपकरणों में इस्तेमाल होते हैं। अगर इस पर तेजी से काम किया जाए, तो अगले 5 से 8 वर्षों में भारत रेयर अर्थ के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सकता है।

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सिवाना के खजाने की खोज

भारत के प्रमुख संस्थानों द्वारा किए गए नए शोध में बताया गया कि सिवाना में मिलने वाले REE का औसत घनत्व अन्य जगहों से कहीं अधिक है। जहां अन्य क्षेत्रों में REE का घनत्व 100 से 200 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) होता है, वहीं सिवाना में यह घनत्व करीब 100 गुना अधिक है। सिवाना में नियोबियम का घनत्व 246 से 1681 पीपीएम और जिरकोनियम का घनत्व 800 से 12,000 पीपीएम तक पाया गया है।

भारत के लिए महत्वपूर्ण लाभ

भारत का उद्देश्य रेयर अर्थ तत्त्वों और सुपर मैग्नेट्स में आत्मनिर्भरता हासिल करना है। चीन ने इन तत्वों के निर्यात पर नियंत्रण किया है, जिससे दुनिया भर में इनकी आपूर्ति को लेकर चिंता बढ़ी है। इस संदर्भ में भारत ने रेयर अर्थ तत्वों के खनन और अनुसंधान में तेजी लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यदि इन प्रयासों को गति दी जाए तो भारत अगले कुछ वर्षों में इन तत्वों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकता है।

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सिवाना रिंग का ऐतिहासिक महत्व

सिवाना रिंग कॉम्प्लेक्स के इलाके में करीब 70 से 80 करोड़ वर्ष पुराने ज्वालामुखी के हिस्से पाए गए हैं, जिनसे ये चट्टानें बनीं हैं। इस क्षेत्र की विशेषता यह है कि यहां न केवल रेयर अर्थ तत्व, बल्कि कुछ विशेष धातुएं भी मौजूद हैं। 

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यह खजाना कैसे बना?

यह खजाना ज्वालामुखी से निकले लावा और मैग्मा के ठोस हो जाने के बाद पृथ्वी की सतह तक पहुंचा। इस प्रक्रिया में कई गैसें और पानी की परतें शामिल हैं, जो इन तत्वों को जमा करने में मदद करती हैं। यह खजाना पृथ्वी के मैंटल से लगभग 35 से 3000 किमी की गहराई से ज्वालामुखी द्वारा उभरकर आया है।

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भारत में रेयर अर्थ के महत्व

रेयर अर्थ तत्वों का उपयोग न केवल इलेक्ट्रिक कार और मोबाइल जैसे उत्पादों में होता है, बल्कि यह न्यूक्लियर पावर जैसी उन्नत तकनीकों के लिए भी आवश्यक हैं। इन तत्वों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता से भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा और तकनीकी विकास में महत्वपूर्ण लाभ हो सकता है।

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