संगठन सृजन अभियान : जयपुर कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर ठनी, पायलट खेमे को छोड़ने वाले को अध्यक्ष बनवाने के लिए अड़े गहलोत

राजस्थान कांग्रेस में जयपुर शहर अध्यक्ष को लेकर दिग्गजों में ठनी। पायलट खेमे को छोड़ने वाले को अध्यक्ष बनवाने के लिए अड़ गए गहलोत। वहीं डोटासरा के उम्मीदवार को रोकने में एकजुट हुए बाकी नेता। इसके चलते नहीं हो पा रही अध्यक्ष की घोषणा।

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Mukesh Sharma
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान कांग्रेस में न तो गुटबाजी नई बात है और ना ही एक-दूसरे को राजनीतिक नुकसान पहुंचाने की नेताओं की कारगुजारियां नई हैं। हालांकि सभी नेता पार्टी के भीतर अपने विरोधियों को निपटाते है, लेकिन पूर्व सीएम अशोक गहलोत तो पार्टी के भीतर अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने और देर-सबेर अपना समर्थक बनाने की कला में पारंगत होने के लिए ही जाने जाते हैं। ठिकाने लगाने की इसी कलाबाजी के कारण जयपुर शहर के अध्यक्ष को लेकर दिग्गज नेताओं में ठन गई है। 

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संगठन सृजन अभियान की निकली हवा

दरअसल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने पार्टी संगठन को मजबूत बनाने के लिए जिला अध्यक्षों को मजबूती देने का अभियान छेड़ दिया। इसके लिए बड़े नेताओं को किनारे कर कार्यकर्ताओं की रायशुमारी से ही जिला अध्यक्षों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की। इस प्रक्रिया को संगठन सृजन अभियान नाम दिया गया। 

सभी चाह रहे अपने समर्थक 

इस बात की पूरी संभावना पहले ही थी कि चाहे जो हो, बड़े नेता जिला अध्यक्ष जैसे पद पर अपने समर्थकों का ही कब्जा चाहेंगे। हालात यह हुए कि कभी कांग्रेस वर्किंग कमेटी में राहुल गांधी के साथ रहे पूर्व सांसद व विधायक रघुवीर मीणा उदयपुर के जिला अध्यक्ष बने हैं। कमोबेश ऐसे ही हालात बाकी जिलों में भी रहे, जहां सभी बड़े नेता अपने-अपने समर्थकों को जिला अध्यक्ष बनाने में सफल रहे हैं। 

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पांच जिलों में अटकी नियुक्ति

अधिकांश राज्यों में संभवत: पहली बार जिला अध्यक्षों की नियुक्तियों का अभियान समय पर पूरा हुआ। राजस्थान में कांग्रेस संगठन के 50 जिले हैं और 45 जिलों में अध्यक्ष नियुक्त हो चुके हैं। जयपुर सहित बारां, झालावाड़, राजसमंद व प्रतापगढ़ में जिला अध्यक्षों की नियुक्तियां अटकी हुई हैं।

बारां व झालावाड़ में नियुक्ति नहीं होने का कारण अंता उपचुनाव के कारण रायशुमारी की प्रक्रिया नहीं होना रहा, जबकि बाकी तीन जिलों में बड़े नेताओं में अपनी पसंद के अध्यक्ष बनवाने को लेकर मामला अटका हुआ है। 

सुनील की आड़ में गहलोत का संदेश

सबसे ज्यादा रोचक मामला जयपुर शहर के अध्यक्ष पद को लेकर है। यहां कभी सचिन पायलट के समर्थक रहे सुनील शर्मा अध्यक्ष बनने की दौड़ में शामिल हैं, लेकिन उन्हें अध्यक्ष बनाने के लिए पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने पूरी ताकत लगा रखी है। वहीं पायलट किसी भी कीमत पर सुनील शर्मा को जयपुर जैसे महत्वपूर्ण जिले का अध्यक्ष नहीं बनने देना चाहते।

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जयपुर कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर ठनी

इसमें पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष साथ मिल रहा है, क्योंकि डोटासरा पुष्पेंद्र भारद्वाज को अध्यक्ष बनाने पर अड़े हुए है। गहलोत को संदेश देने की राजनीति करने में मा​हिर माना जाता है। ऐसे में सुनील शर्मा को अध्यक्ष बनाने में उनकी मंशा सिर्फ यह संदेश देना ही है कि कोई उन्हें चुका हुआ मानने की भूल ना करे। वैसे भी राजस्थान में कांग्रेस सरकार जाने के बाद गहलोत जितनी सक्रियता किसी नेता की नहीं है। 

पायलट समर्थक पहुंचा कैसे गहलोत कैंप में

सुनील शर्मा पूर्व जयपुर शहर कांग्रेस अध्यक्ष दिवंगत सुरेश शर्मा के भाई हैं और कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ऐतिहासिक करारी हार के बाद राहुल गांधी ने 2014 में सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर भेजा था। इस दौरान तब तक सत्ता व पार्टी में भागीदारी से ​वंचित सैकड़ों कांग्रेस कार्यकर्ता पायलट से जुड़े थे, उनमें सुनील शर्मा भी थे।

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नहीं चली सुनील शर्मा की

सुनील शर्मा 2018 में हवामहल विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा चुनाव का टिकट मांग रहे थे। पायलट ने उनके लिए भरपूर कोशिश भी की थी, लेकिन सफल नहीं हुए और गहलोत समर्थक महेश जोशी टिकट लाने में सफल रहे थे। पायलट ने शर्मा को लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाने का आश्चवासन दिया था, लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 में दिवंगत अहमद पटेल ने ज्योति खंडेलवाल को टिकट दिलवा दिया, तो कोई कुछ नहीं कर सका। 

मोहभंग की शुरुआत

इसके बाद ही सुनील शर्मा का पायलट से मोहभंग शुरू हो गया था और उन्होंने गहलोत कैंप से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दी थीं। गहलोत वैसे भी तब तक सीएम बन चुके थे। 2020 में पायलट कैंप की असफल बगावत से भी स्थितियां और राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गए थे। इसके बाद जयपुर शहर में नया अध्यक्ष बनाने की मुहिम शुरू हुई, तो सुनील शर्मा और पुष्पेंद्र भारद्वाज दोनों ने दावा किया। 

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बाजी मार गए तिवाड़ी

लंबी खींचतान में जब कोई फैसला नहीं हुआ, तो अशोक गहलोत ने आरआर तिवाड़ी को अध्यक्ष बनवा दिया। इसके बाद चाहे पुष्पेंद्र भारद्वाज हो या सुनील शर्मा, दोनों ने ही अशोक गहलोत के सामने समर्पण कर दिया। हालांकि भारद्वाज डोटासरा के ज्यादा नजदीक हैं, लेकिन गहलोत से भी उनके मधुर संबंध हैं। 

पहले विधानसभा, फिर लोकसभा में खेल

साल 2023 में विधानसभा चुनाव के दौरान पुष्पेंद्र दूसरी बार सांगानेर विधानसभा क्षेत्र से टिकट लाने में सफल रहे थे। सुनील शर्मा ने भी पुन: हवामहल विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांगा और चुनाव लड़ने की तैयारियां भी शुुरू कर दी थीं, लेकिन पायलट ने उन्हें टिकट नहीं मिलने दिया।

गहलोत के हस्तक्षेप से टिकट जिलाध्यक्ष तिवाड़ी को टिकट मिला, लेकिन वह मामूली अंतर से चुनाव हार गए। इसके बाद गहलोत 2024 के लोकसभा चुनाव में सुनील शर्मा को जयपुर लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिलवाने में कामयाब रहे। 

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पायलट ने रचा खेल

इसके बाद शशि थरूर ने कांग्रेस विरोधी संस्था जयपुर डायलॉग्स के साथ उनके जुड़ाव का मामला उठा दिया। इससे मीडिया में कंट्रोवर्सी हो गई। हालांकि सुनील शर्मा ने भी थरूर के जयपुर डायलॉग्स के कार्यक्रम में आने की जानकारी साझा की थी।

इस कंट्रोवर्सी के कारण सुनील शर्मा ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। कहा जाता है कि यह पूरा खेल भी सचिन पायलट ने ही रचा था अन्यथा केरल में चुनाव लड़ने वाले थरूर को क्या पता था ​कि जयपुर लोकसभा से कांग्रेस ने किसे टिकट दिया है! 

किसके हाथ लगेगी बाजी? 

अब बताया जा रहा है कि पायलट ही किसी भी कीमत पर सुनील शर्मा को जयपुर शहर कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनने दे रहे हैं, लेकिन गहलोत भी हर हाल में उन्हें ही अध्यक्ष बनाने पर तुले हुए हैं। अब यह समय बताएगा कि बाजी किसके हाथ लगती है या फिर दोनों की लड़ाई में आरआर तिवाड़ी फिर से बाजी मार ले जाते हैं।

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