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Photograph: (the sootr)
मुकेश शर्मा @ जयपुर
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस में आने वाले समय में फेरबदल हो सकता है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि फेरबदल में ग्राम पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों का तो ध्यान में रखा जाएगा, लेकिन आलाकमान यह फेरबदल अगले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भी करेगा।
असल में कांग्रेस आलाकमान खासकर पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी राजस्थान में पीढ़ीगत नेतृत्व को बदलने का मन बना चुके हैं। उनका मानना है कि यदि राज्यों में अब अपेक्षाकृत युवा नेतृत्व को कमान सौंपकर बदले हुए माहौल के अनुरूप नहीं तैयार नहीं किया गया, तो आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाजपा से मुकाबला आसान नहीं होगा।
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पहले होना था, लेकिन अब
पहले राजस्थान कांग्रेस में फेरबदल जून के महीने तक होना तय था। सब कुछ लगभग तय भी हो चुका था, लेकिन मई के अंतिम सप्ताह में बाड़मेर में कांग्रेस की जयहिंद रैली से पूर्व सीएम अशोक गहलोत और बायतू विधायक व मध्यप्रदेश में पार्टी प्रभारी हरीश चौधरी के बीच तल्खी से फेरबदल टल गया।
बताया जाता है कि अशोक गहलोत कांग्रेस से निष्कासित पूर्व मंत्री अमीन खां और मेवाराम जैन को जयहिंद रैली वाले दिन ही कांग्रेस में वापस लाने की तैयारी कर चुके थे, लेकिन हरीश चौधरी ने राजस्थान कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा से इसका कड़ा विरोध जताकर दोनों निष्कासित नेताओं की वापसी रुकवा दी थी। गहलोत और हरीश चौधरी के बीच रैली के दौरान मंच पर ही तल्खी स्पष्ट दिखाई दी थी। हालांकि अभी दो दिन पहले अमीन खां की कांग्रेस में वापसी हो गई है। फिलहाल हरीश चौधरी की इस पर कोई विपरीत प्रतिक्रिया नहीं आई है।
बड़ी जिम्मेदारी मिलने के संकेत, लेकिन
कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि आलाकमान ने पार्टी को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए जरूरी फेरबदल करने का मन बना लिया है। यह अलग बात है कि यह किसी ना किसी कारण से टल रहा है। फेरबदल में बायतू विधायक हरीश चौधरी को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलना तय थी, लेकिन अमीन खां व मेवाराम जैन की वापसी के मुद्दे पर उनके विरोध ने समीकरण बिगाड़ दिए थे।
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अब फिर पक्ष में बने समीकरण
सूत्रों का कहना है कि अगर सब कुछ सही रहा, तो इस साल दिवाली के आस-पास हरीश चौधरी को राजस्थान में कांग्रेस की जिम्मेदारी मिलना तय है। बताया जा रहा है कि अशोक गहलोत और हरीश चौधरी के बीच फिर से कुछ मामलों में समझ स्थापित हुई है। अमीन खां की वापसी इसका साफ संकेत है। इसके साथ ही उप-राष्ट्रपति रहे जगदीप धनखड़ के साथ हुए बर्ताव ने हरीश चौधरी के पक्ष में एक बार फिर से समीकरण बना दिए हैं।
कांग्रेस किसी भी कीमत पर जाट समुदाय की भाजपा से हुई नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाना चाहती है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर जाट समुदाय के स्थान पर इसी समुदाय के नेता को ही बैठाने से जातीय समीकरण नहीं बिगड़ेंगे। हरीश चौधरी को सचिन पायलट का भी पूरा साथ मिला हुआ है। हालांकि पायलट ने राजस्थान में पार्टी की अंदरूनी समीकरणों में दखल देने से खुद को अलग रखा है। वह भविष्य के हिसाब से राजनीति कर रहे हैं।
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बदलने तो निष्क्रिय पदाधिकारी भी थे, लेकिन
दूसरी ओर, राजस्थान कांग्रेस में सक्रिय कुछ नेताओं के अनुसार तीन महीने पहले निष्क्रिय पार्टी पदाधिकारियों को हटाकर नए पदाधिकारी बनाने का भी फैसला हुआ था। पार्टी के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने इस संबंध में जोर-शोर से घोषणा भी की थी, लेकिन अब तक शायद ही किसी पदाधिकारी को हटाकर नए को मौका दिया हो। ऐसे में जब तक कांग्रेस में कोई काम हो नहीं जाए, तब तक सिर्फ बातें ही की जा सकती हैं।
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