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Photograph: (TheSootr)
Jaipur . राजस्थान कांग्रेस (Rajasthan Congress) का संगठन सृजन अभियान (Organization Creation Campaign) अब चर्चा का विषय बन गया है। यह प्रक्रिया, जो शुरू में उम्मीदों के साथ शुरू हुई थी, अब एक गंभीर राजनीतिक विवाद का रूप ले चुकी है। कांग्रेस के जिलाध्यक्ष चयन (Congress District President Selection) के इस अभियान में गुटबाजी और विरोध के स्वर स्पष्ट रूप से सुनाई देने लगे हैं। यह प्रक्रिया अब रायशुमारी से अधिक ‘रार’ (Chaos) बन गई है।
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कांग्रेस की जिलाध्यक्ष चयन प्रक्रिया: संवाद से दूरियां
कांग्रेस पार्टी की जिलाध्यक्ष चयन प्रक्रिया में अब केवल नेताओं के भाषणों और नारेबाजी की गूंज सुनाई देती है। एआइसीसी (AICC) के पर्यवेक्षक, जो इस प्रक्रिया में दिशा देने के लिए भेजे गए हैं, स्थानीय दिग्गज नेताओं को बोलने का मौका दे रहे हैं। इस प्रकार की स्थिति में, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के वर्चस्व के कारण संवाद की बजाय दूरी और कटुता खुलकर सामने आ रही है। अजमेर, कोटा और झुंझुनूं जैसे जिलों में तो यह स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो चुकी है कि नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन तक की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इन जिलों में कार्यकर्ताओं के बीच में स्पष्ट मतभेद और गुटबाजी के कारण स्थिति और भी जटिल हो रही है।
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जोधपुर में गहलोत का वर्चस्व
जोधपुर (Jodhpur) जिले में यह स्थिति और भी विशेष बन गई है। यहां के पार्टी कार्यकर्ता पर्यवेक्षकों से स्पष्ट रूप से कहते हैं कि "यहां तो अध्यक्ष का नाम पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Former CM Ashok Gehlot) ही तय करते हैं।" जोधपुर में यह चर्चा होने लगी है कि बड़े नेता मंच पर कब्ज़ा जमाए हुए हैं, और जब बड़े नेता ही चयन प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, तो सामान्य कार्यकर्ता अपनी राय कैसे रख सकता है? यह स्थिति कांग्रेस पार्टी की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास की कमी को स्पष्ट रूप से दिखाती है।
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पर्यवेक्षकों की भूमिका: दावा और वास्तविकता
कांग्रेस के पर्यवेक्षक दावा करते हैं कि वे व्यक्तिगत बातचीत के जरिए कार्यकर्ताओं से सुझाव ले रहे हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकांश चर्चाएं केवल पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच ही सीमित रहती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर रहा है, क्योंकि उनकी राय को सही तरीके से सुना नहीं जा रहा है।
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तीन जिलों के पर्यवेक्षकों की नियुक्तियों में बदलाव
इस पूरी प्रक्रिया के बीच, एआइसीसी (AICC) ने प्रदेश में नियुक्त 30 पर्यवेक्षकों में से तीन पर्यवेक्षकों की नियुक्ति में बदलाव किया है। यह बदलाव चित्तौड़गढ़, झालावाड़ और धौलपुर-करौली जिलों के पर्यवेक्षकों के लिए किया गया। इसे लेकर कांग्रेसजनों में तरह-तरह की चर्चाएं तेज हो गई हैं। कुछ लोग इसे प्रशासनिक कारणों से जोड़ रहे हैं, जबकि अन्य इसे कार्यशैली और असंतोष का परिणाम मान रहे हैं।
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क्या राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी है?
कांग्रेस पार्टी के अंदर गुटबाजी और राजनीतिक जटिलताओं का यह उदाहरण कहीं ना कहीं पार्टी की कमजोरी को दिखाता है। राजस्थान (Rajasthan) में कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के कारण कार्यकर्ताओं के बीच विश्वास की कमी और असंतोष पैदा हो रहा है। यह स्थिति पार्टी के संगठनात्मक ढांचे और नेताओं की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाती है। इस पूरे मुद्दे पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अपने दृष्टिकोण को बदलने और कार्यकर्ताओं की राय को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है, ताकि पार्टी का संगठनात्मक ढांचा मजबूत हो सके। कांग्रेस प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा और तमाम बड़े नेताओं को एक जाजम पर बैठ पार्टी के हित में विचार करना होगा।
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