कांग्रेस में 77 सालों में एससी-एसटी-माइनॉरिटी से प्रदेशाध्यक्ष नहीं, परंपरागत वोट बैंक के बाद भी नहीं मिला मौका

राजस्थान कांग्रेस में 77 सालों में एससी-एसटी और माइनॉरिटी से कोई प्रदेशाध्यक्ष नहीं बन सका है। बावजूद इसके इन वर्गों का कांग्रेस को परंपरागत समर्थन रहा है। सवाल उठता है कि क्यों कांग्रेस पार्टी ने इन वर्गों को प्रदेशाध्यक्ष के पद पर नहीं चुना?

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान कांग्रेस का इतिहास एससी-एसटी और माइनॉरिटी वर्ग के लिए महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन ये वर्ग कभी भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद तक नहीं पहुंच पाए। इस पर लंबे समय से चर्चाएं होती रही हैं। यह सवाल उठता है कि क्यों कांग्रेस पार्टी ने इन वर्गों को प्रदेशाध्यक्ष के पद पर नहीं चुना, जबकि यह वर्ग पार्टी का परंपरागत वोट बैंक रहा है।

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इतिहास और प्रदेशाध्यक्ष का पद

1948 से लेकर अब तक राजस्थान कांग्रेस में कुल 29 प्रदेश अध्यक्ष बन चुके हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इनमें से एक भी एससी-एसटी या माइनॉरिटी वर्ग का व्यक्ति इस पद पर नहीं बैठ पाया। इसके बावजूद एससी और माइनॉरिटी वर्ग से कई मुख्यमंत्री राजस्थान में बन चुके हैं, जैसे जगन्नाथ पहाड़िया (एससी) और बरकतुल्लाह खान (माइनॉरिटी)।

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कार्यकारी अध्यक्ष ही बन पाए

राजस्थान कांग्रेस में एससी और माइनॉरिटी वर्ग से कुछ कार्यकारी अध्यक्ष रहे हैं, जैसे एससी वर्ग से परसराम मोरदिया और माइनॉरिटी वर्ग से अबरार अहमद। हालांकि यह पद स्थायी रूप से अध्यक्ष बनने से कहीं नीचे माना जाता है। पूर्व राज्यसभा सांसद लक्ष्मी कुमारी चुंडावत 1971 में राजस्थान कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। उनके बाद कई अन्य नेता भी प्रदेश अध्यक्ष बने, लेकिन इन वर्गों से कोई अध्यक्ष नहीं बना।

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इस तरह रहे कांग्रेस के पदाधिकारी

राजस्थान कांग्रेस में 1948 से लेकर अब तक 17 अध्यक्ष सामान्य वर्ग से बने हैं। इनमें गोकुल भाई भट्ट, माणिक्य लाल वर्मा, जय नारायण व्यास, मथुरा दास माथुर और अन्य प्रमुख नेता शामिल हैं। इसके बावजूद एससी, एसटी और माइनॉरिटी वर्ग को कभी प्रदेश अध्यक्ष का पद नहीं मिला।

क्या कभी बनेगा प्रदेश अध्यक्ष?

कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष और अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष आबिद कागजी का कहना है कि राजस्थान में अल्पसंख्यक वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहिए। उनका मानना है कि राजस्थान में मुस्लिम आबादी 11 फीसदी से अधिक है और यह पूरी तरह से कांग्रेस को समर्थन देती है। इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी के भीतर हलचल भी है और अब पार्टी को यह विचार करना चाहिए कि इस वर्ग को सर्वोच्च पद पर अवसर दिया जाए।

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एससी वर्ग का परंपरागत समर्थन

कांग्रेस पार्टी के एससी विभाग के प्रदेश उपाध्यक्ष चिरंजीवी वर्मा का कहना है कि एससी वर्ग हमेशा कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहा है। एससी वर्ग से कई विधायक और सांसद कांग्रेस पार्टी से चुने गए हैं। कांग्रेस ने राज्य में एससी वर्ग से मुख्यमंत्री भी बनाए, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष की बात अभी तक नहीं आई।

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फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए

विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस को अब अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। पार्टी को यह देखना चाहिए कि क्यों आज तक एससी-एसटी और माइनॉरिटी वर्ग को संगठन के सर्वोच्च पद पर प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। अगर कांग्रेस को अपना परंपरागत वोट बैंक बनाए रखना है, तो पार्टी को इन वर्गों के लिए भी सोचने की जरूरत है।

मुख्य बिंदु

  • राजस्थान कांग्रेस में अब तक एससी-एसटी और माइनॉरिटी वर्ग से कोई प्रदेश अध्यक्ष नहीं बना।
  • इन वर्गों के प्रतिनिधित्व की बढ़ी हुई मांग के बावजूद पार्टी में यह पद कभी इन्हें नहीं दिया गया।
  • कांग्रेस को अपनी कार्यशैली पर पुनर्विचार कर एससी-एसटी और माइनॉरिटी वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के मुद्दे पर सोचना चाहिए।
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