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Photograph: (the sootr)
मुकेश शर्मा @ जयपुर
राजस्थान हाई कोर्ट ने चर्चित मराठी पत्रकार निखिल वागले के खिलाफ 29 साल पुराने आपराधिक अवमानना केस को एक लाख रुपए हर्जाना जमा करवाने की शर्त पर बंद करने के निर्देश दिए हैं। चीफ जस्टिस केआर श्रीराम और जस्टिस आनंद शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश तत्कालीन जिला जज जगपाल सिंह और राजस्थान ज्यूडिशियल एसोसिएशन की आपराधिक अवमानना याचिकाओं का निपटारा करते हुए दिए।
यह मामला नब्बे के दशक में जयपुर में बस्सी के पास भटेरी गांव में एक साथिन के साथ हुए बहुचर्चित गैंगरेप केस से जुड़ा है। उन्होंने इस मामले में जिला कोर्ट की ओर से दिए गए फैसले के खिलाफ लेख लिखा था। निखिल वागले ने अब इस मामले में हाईकोर्ट में बिना शर्त माफी मांगी थी, लेकिन कोर्ट ने उन्हें राजस्थान स्टेल लीगल सर्विय अथॉरिटी में एक महीने में एक लाख रुपए जमा करवाने के निर्देश दिए। साथ ही कोर्ट ने रुपए जमा नहीं करवाने पर मामले को अगले निर्देशों के लिए चार सप्ताह में सुनवाई के लिए कोर्ट में लिस्ट करने को कहा है।
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जज के खिलाफ लिखा था लेख
मराठी पत्रकार वागले के एडवोकेट केजे मेहता ने बताया कि 1992 में राजधानी जयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर बस्सी तहसील के भटेरी गांव में साथिन के रूप में काम कर रही एक महिला के साथ गैंगरेप की घटना हुई थी। इस बहुचर्चित मामले के पांच आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने 15 नवंबर, 1995 को दिए फैसले में बरी कर दिया था। वागले ने यह फैसला देने वाले डीजे के खिलाफ एक लेख लिखा था। इस लेख को जिला जज ने अवमानना माना और इसकी शिकायत हाई कोर्ट को भेजी थी। हाई कोर्ट ने इस पर निखिल वागले के खिलाफ प्रसंज्ञान लेकर 1996 में अवमानना मामला दर्ज कर लिया था।
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बाल विवाह रुकवाने से हुई दुश्मनी
पीड़िता महिला ने नौ महीने की बच्ची का बाल विवाह रुकवा दिया था। इससे गांव वाले उससे नाराज हो गए और उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया। पीड़िता का परिवार मिट्टी के बर्तन बनाता था। गांव वालों ने उससे यह बर्तन खरीदना बंद कर दिया। साथ ही दूध व अन्य सामान भी देना बंद कर दिया। उसे साथिन के काम से हटा दिया।
पीड़िता के अनुसार 22 सितंबर, 1992 की शाम को वह अपने पति के साथ खेत में काम कर रही थी। तभी गांव के पांच व्यक्तियों ने उस पर हमला कर दिया। इनमें एक व्यक्ति वह भी था, जिसके नवजात का बाल विवाह रुकवाया था। पांचों ने लाठियों से उसके पति को मारा। पति को पीटने के बाद आरोपियों ने साथिन के साथ गैंगरेप किया। पुलिस ने पीड़िता की एफआईआर दर्ज करने और मेडिकल जांच करवाने में बहुत परेशान किया। एक साल बाद मामला की जांच सीबीआई को देने के बाद अंतत: पांचों आरोपी गिरफ्तार हुए।
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पांच जज बदले थे ट्रायल में
ट्रायल के बाद 15 नवंबर, 1995 को ट्रायल कोर्ट ने पांचों आरोपियों को बरी कर दिया और पीड़िता की ओर से पेश सबूतों व उसके पति की गवाही को मानने से इनकार कर दिया। इस मामले की ट्रायल के दौरान पांच जज बदले गए और छठे जज जगमाल सिंह ने आरोपियों को बरी करने का फैसला दिया। भटेरी कांड के नाम से देशभर में चर्चित हुए इस केस में आरोपियों का पक्ष लेने पर तत्कालीन राजस्थान सरकार (Rajasthan Government) की जबर्दस्त आलोचना हुई थी।
आरोपियों के बरी होने पर तत्कालीन भाजपा विधायक कन्हैयालाल मीणा के नेतृत्व में रैली निकाली गई थी। भीड़ ने एक बार फिर पीड़िता के घर पर हमला कर उसे पीट दिया था। पीड़िता और उसके परिवार को लगातार प्रताड़ित और परेशान किया गया। उसके बच्चों और रिश्तेदारों ने भी उससे दूरी बनानी शुरू कर दी। साल 2000 में इस घटना पर आधारित फिल्म बवंडर ने पीड़िता और उसके परिवार के लिए हालात और खराब कर दिए थे। बताया जाता है कि उसके दोनों बेटों ने उससे सभी प्रकार के संबंध खत्म कर लिए।
पीड़िता के संघर्ष से आया सामाजिक बदलाव
समाज और सिस्टम के खिलाफ लगातार संघर्ष करने और अंत तक अपनी बात पर कायम रहने के कारण पीड़िता को नेशनल ओर इंटरनेशनल लेवल पर सम्मानित किया गया। 2002 में राजस्थान के तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत ने पीड़िता को मकान बनाने के लिए राशि और एक रिहायशी भूखंड के साथ ही उसके बेटे की पढ़ाई के लिए भी पैसा दिया था। देशभर में चर्चित इस मामले के बाद महिला संगठनों के दबाव और संघर्ष से सामाजिक रूप से कई बदलाव आए।
महिलाओं ने रेप जैसे जघन्य अपराध की पुलिस रिपोर्ट करवाना शुरू कर दिया। इस केस के चलते ही महिला संगठनों ने वर्क प्लेस पर होने वाले यौन अपराध के लिए नियोक्ता या एम्प्लॉयर की जिम्मेदारी तय करने की मांग की थी। इसके बाद 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइंस (Vishakha Guidelines) जारी कीं। इसके तहत वर्क प्लेस पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा के लिए नियम कायदे बनाए गए। वर्ष 2013 में संसद ने विशाखा जजमेंट की बुनियाद पर दफ्तरों में महिलाओं के संरक्षण के लिए एक कानून पारित किया।
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