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राजस्थान में पर्यावरणीय संरक्षण और जनहित से जुड़े मामलों में अदालतों के आदेशों की पालना में लगातार ढिलाई और लापरवाही देखी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राज्य सरकार को कई बार पर्यावरणीय संरक्षण से संबंधित सख्त निर्देश दिए हैं, लेकिन अफसरशाही के कारण इन निर्देशों की पालन में हमेशा ढिलाई ही देखने को मिली है।
यहां तक कि जयपुर के सांगानेर क्षेत्र में स्थित रंगाई-छपाई कारखानों के जहरीले पानी के निपटारे के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए थे, लेकिन उस आदेश के कई साल बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। इसके अलावा, अवैध खनन, ओरण भूमि की सुरक्षा और थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने जैसे मुद्दों पर प्रशासनिक लापरवाही बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि कुछ मामलों में न्यायालय को सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसी से जांच करवानी पड़ी है। दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में वरिष्ठ पत्रकार शैलेंद्र अग्रवाल ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया है।
पर्यावरणीय मुद्दों पर अदालती आदेशों की अवहेलना
राजस्थान में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी ने बार-बार सख्त निर्देश दिए हैं, लेकिन राज्य सरकार की ढिलाई के कारण इन आदेशों का पालन नहीं हो पाया है। सबसे बड़ा उदाहरण है सांगानेर के रंगाई-छपाई कारखानों का जहरीला पानी। यहां के कारखानों द्वारा रसायनयुक्त पानी द्रव्यवती नदी में छोड़ने की शिकायतें हैं। इससे नदी और आसपास की कृषि भूमि के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
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सीईटीपी (Common Effluent Treatment Plant) संकट
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि कारखानों का जहरीला पानी द्रव्यवती नदी में न डाला जाए, इसके लिए एक सीईटीपी (कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगाया जाए। हालांकि, कई कारखाने इस प्लांट से नहीं जुड़ पाए हैं, जिससे इस प्लांट को बंद करने की स्थिति बन गई है। नतीजतन, कारखानों का रसायनयुक्त पानी नदी में ही छोड़ा जा रहा है, जो पर्यावरण और भूजल को नुकसान पहुंचा रहा है।
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अवैध खनन और बजरी की समस्या
राजस्थान के कई हिस्सों में बजरी खनन के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की प्रक्रिया सुस्त है, जिससे अवैध खनन की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। टोंक, बूंदी और सवाई माधोपुर जैसे जिलों में अवैध खनन के मामले सामने आ रहे हैं। इन जिलों में बजरी की कीमतों पर भी कोई नियंत्रण नहीं है, जिससे लोग मनमानी दरों पर बजरी खरीदने के लिए मजबूर हैं। यह स्थिति कानून के पूरी तरह से विफल होने की ओर इशारा करती है।
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अवैध बजरी खनन पर सीबीआई जांच
राज्य में अवैध खनन की बढ़ती समस्या को देखते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी है। अवैध खनन और बजरी की कालाबाजारी से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है, और यह पूरी तरह से अव्यवस्थित है। इस पर सरकार को सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।
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ओरण भूमि की सुरक्षा: अधूरी मैपिंग और अतिक्रमण की समस्या
सुप्रीम कोर्ट ने ओरण भूमि को सुरक्षित करने के लिए दिशा-निर्देश दिए थे, लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। ओरण भूमि की मैपिंग का कार्य भी अधूरा है। अभी तक सिर्फ 41 जिलों में से 15 जिलों का रिकॉर्ड मिल पाया है। इससे ओरण भूमि की सुरक्षा और अतिक्रमण को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा सके हैं। यह समस्या धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की भूमि से जुड़ी है, जिसके कारण लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं।
थानों में सीसीटीवी की स्थिति: पारदर्शिता की कमी
सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल पहले आदेश दिया था कि सभी थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं, ताकि हिरासत में रखे गए लोगों के अधिकारों का उल्लंघन न हो। हालांकि, ज्यादातर पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे तो लग गए हैं, लेकिन इन कैमरों की मॉनिटरिंग और रिकॉर्डिंग को लेकर कोई प्रभावी प्रणाली अब तक लागू नहीं की गई है। इससे पुलिस थानों में पारदर्शिता की कमी बनी हुई है, और यह नागरिक अधिकारों की सुरक्षा में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
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अवमानना याचिका: प्रशासन की लापरवाही पर कोर्ट की सख्ती
राजस्थान में अदालतों के आदेशों की अवहेलना बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि कई मामलों में याचिकाकर्ता को अदालत से आदेश के बाद भी बार-बार न्याय की प्राप्ति के लिए दरवाजे खटखटाने पड़ रहे हैं। यह स्थिति प्रशासनिक लापरवाही और न्यायिक आदेशों की अवमानना का संकेत देती है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश, सुनील अंबवानी का मानना है कि यही गैप प्रशासन की लापरवाही के कारण उत्पन्न हो रहा है।
अवमानना याचिकाओं में बढ़ोतरी
राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2025 तक राजस्थान के 25 हाईकोर्ट में से 22 में अवमानना की 1.43 लाख याचिकाएं लंबित हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि राजस्थान में पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर कोर्ट के आदेशों की अनदेखी लगातार हो बढ़ रही है, और इस पर कार्रवाई की आवश्यकता है।