कोर्ट के आदेश के बावजूद बच्चों की शिक्षा खतरे में, कहीं जर्जर स्कूल तो कहीं तबेले में हो रही पढ़ाई

राजस्थान में जर्जर सरकारी स्कूलों की बढ़ती संख्या, सरकारी उदासीनता और खराब व्यवस्थाएं बच्चों की शिक्षा को गंभीर खतरे में डाल रही हैं। कोर्ट के आदेशों के बावजूद कोई सुनने वाला नहीं है।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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राजस्थान के जयपुर से कुछ ही दूरी पर स्थित रामपुरा कंवरपुरा गांव के सरकारी स्कूल की हालत किसी भी सामाजिक दृष्टिकोण से बेहद चिंताजनक है। इस स्कूल के भवन की स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि राजस्थान हाई कोर्ट ने इसके संचालन पर रोक लगा दी थी। 

हालांकि सरकार ने इस समस्या का समाधान करने के बजाय बच्चों को एक गाय के तबेले में पढ़ने के लिए मजबूर कर दिया। बच्चों को टीन शेड या पेड़ की छांव में बैठकर अपनी पढ़ाई करनी पड़ रही है। यह बेहद ही शर्मनाक स्थिति है, जब एक सरकारी स्कूल के बच्चे इस तरह की परिस्थितियों में अपनी शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर हों।

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आदेश के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं

हाई कोर्ट ने जर्जर स्कूलों में कक्षाएं चलाने पर सख्त रोक लगाई थी और राजस्थान सरकार को वैकल्पिक व्यवस्थाओं की तैयारी के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने इस मामले में सरकार से नियमित रिपोर्ट भी मांगी थी, लेकिन सरकार ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। वह केवल और समय मांग रही है। 

कोर्ट ने चेतावनी दी है कि जिन जर्जर स्कूलों में अभी भी कक्षाएं चल रही हैं, उनकी स्थिति और भी खतरनाक हो सकती है। इस प्रकार, शिक्षा विभाग की लापरवाही और प्रशासनिक विफलता बच्चों को गंभीर खतरे में डाल रही है।

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चाकसू में हालत और भी खराब

चाकसू के बीड़ सूरतरामपुरा में स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय भी जर्जर स्थिति में है। इसे भी बंद कर दिया गया था और अब यह स्कूल एक स्थानीय परिवार के घर के हॉल में चल रहा है। हॉल के एक हिस्से में रसोई है, जहां गैस सिलेंडर और बर्तन रखे जाते हैं, जबकि दूसरी तरफ बच्चे पढ़ाई कर रहे होते हैं। 

स्कूल का सारा सामान बक्सों में बंद पड़ा है और भवन की दीवार पर प्रवेश निषेध का चिन्ह है। बच्चे किसी रस्सी से बंधे हुए टीन के गेट से स्कूल में प्रवेश करते हैं। यह स्थिति सरकारी स्कूलों के बदहाल हालात को दर्शाती है, जो बच्चों के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।

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जर्जर भवनों की संख्या में भारी वृद्धि

राजस्थान में शिक्षा विभाग के सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य के 63,018 स्कूलों में से 5,667 भवन जर्जर हो चुके हैं। इनमें से 1,579 स्कूलों को पूरी तरह से जर्जर घोषित किया गया है। इसके अलावा 86,934 कक्षाओं और 17,109 शौचालयों की स्थिति भी अत्यधिक खस्ता है। बांसवाड़ा में सबसे ज्यादा 605 जर्जर भवन हैं, जबकि उदयपुर और जयपुर में भी इस समस्या का सामना किया जा रहा है।

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गरीब बच्चों की शिक्षा पर संकट

कई बच्चे सरकारी स्कूलों पर निर्भर हैं, जो न तो निजी स्कूलों में पढ़ने की स्थिति में हैं और ना ही दूर के स्कूलों तक जा सकते हैं। ऐसे ही एक छात्र दीपक के पिता की 2018 में मृत्यु हो चुकी है और उसकी मां को चलने में दिक्कत है। 

इस कारण वह सरकारी स्कूलों के अलावा अन्य जगहों पर पढ़ाई करने के लिए नहीं जा सकता। सरकारी स्कूलों की बदहाली के कारण इन बच्चों का भविष्य भी संकट में है, जो सीधे तौर पर शिक्षा की गुणवत्ता और विकास से जुड़ी हुई समस्या है।

FAQ

1. राजस्थान में जर्जर स्कूलों की समस्या क्या है?
राजस्थान में सरकारी स्कूलों की इमारतें जर्जर हो चुकी हैं और राज्य हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार ने इन स्कूलों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की है।
2. क्या राजस्थान सरकार ने इस समस्या का समाधान किया है?
नहीं, राजस्थान सरकार ने इस मुद्दे पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। हाई कोर्ट ने वैकल्पिक व्यवस्था की रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन कोई समाधान नहीं किया गया।
3. क्या बच्चों की शिक्षा पर जर्जर स्कूलों का प्रभाव पड़ रहा है?
जी हां, बच्चों को जर्जर स्कूलों में पढ़ाई के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिससे उनकी शिक्षा की गुणवत्ता और भविष्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।

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