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Jaipur. राजस्थान में 5 साल का कार्यकाल पूरा होने के बावजूद ग्राम पंचायतों के चुनाव अटके हुए हैं, लेकिन राज्य सरकार ने चुनाव नहीं होने से प्रशासक बनाए पूर्व सरपंचों और पूर्व वार्ड पंचों को जमीनों के पट्टे बांटने का अधिकार देकर उन्हें दिवाली से पहले खुश कर दिया है।
सरकार ने इस संबंध में पंचायतीराज आयुक्त और सचिव जोगाराम ने सभी जिला परिषदों को पत्र भेज दिया है। इस फैसले को भाजपा सरकार का चुनावी दांव माना जा रहा है, मगर इस निर्णय को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि ग्राम पंचायतों में जमीनों के नियम विरुद्ध पट्टे देने के कई मामले पहले ही चल रहे हैं। इस फैसले के बाद पंचायतों में जमीनों के अनाप-शनाप पट्टे दिए जाएंगे।
पट्टा देने पर अकेले नहीं होगा फैसला
पंचायतीराज आयुक्त ने जिला परिषदों को लिखे पत्र में स्पष्ट किया है कि कार्यकाल पूरा कर चुकी ग्राम पंचायतों के सरपंच, पंच और वार्ड पंचों की कमेटी ही पट्टे दे सकेगी। पत्र में लिखा है कि राजस्थान पंचायती राज नियम-1996 के प्रावधानों के तहत जहां वार्ड पंच की कमेटी गठित किया जाना जरूरी है, वहां पर ऐसे सभी मामलों में प्रशासक की ओर से प्रशासकीय समिति के सदस्यों की कमेटी गठित करके ही पट्टा आवंटन किया जाएगा।
पहले जितने ही पावर और अधिकार
राजस्थान में 11 हजार 310 पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। जिन ग्राम पंचायतों का कार्यकाल पूरा हो चुका है, उनमें अभी पूर्व सरपंचों को प्रशासक नियुक्त कर रखा है। पूर्व उप-सरपंच और वार्ड पंचों को प्रशासकीय कमेटी का सदस्य बनाया है।
प्रशासक को प्रशासकीय कमेटी की बैठक बुलाकर काम करना होता है। राजस्थान पंचायती राज अधिनियम-1994 और राजस्थान पंचायती राज नियम-1996 में सरपंच को ही प्रशासनिक अधिकार और पॉवर हैं। लेकिन चुनाव नहीं होने के कारण पूर्व सरपंच, पंच और वार्ड पंच प्रशासक और प्रशासकीय कमेटी के जरिए इन अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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राजस्थान में पट्टे देने का अधिकार किसे दिया गया हैराजस्थान सरकार ने गांव और शहरों में जमीनों के पट्टे देने का अभियान चला रखा है। पंचायती राज विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि प्रदेश की अधिकांश ग्राम पंचायतों का कार्यकाल पूरा होने के बाद मौजूदा सरपंचों को ही प्रशासक के तौर पर लगाया हुआ है। सरकार ने पूर्व सरपंच, पंच और वार्ड पंच की कमेटी को ही जमीनों के पट्टे देने की पावर देकर प्रशासक पर अंकुश लगाया है। एक अन्य अधिकारी का कहना है कि इस फैसले से पूर्व पंच और वार्ड पंचों को भी खुश कर दिया है। यानी इन्हें भी पट्टे बांटने के फैसले में शामिल होने का अवसर मिलेगा। | |
कांग्रेस का आरोप, अंधाधुंध बटेंगे पट्टे
कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री जसवंत गुर्जर का कहना है कि सरकार के इस कदम से पंचायत चुनाव जीतने के लिए जमीनों के पट्टे जमकर बांटे जाएंगे। इस प्रक्रिया में मनमानी तथा नियमों के उल्लंघन से इनकार नहीं किया जा सकता। उनका आरोप है कि पंचायतों का कार्यकाल पूरा होने के एक साल बाद भी भाजपा सरकार जानबूझकर पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव नहीं करवा रही है। इससे संविधान के प्रति भाजपा की निष्ठा संदेह में है।
पूर्व सरपंच को प्रशासक लगाने का प्रावधान नहीं
राजस्थान हाईकोर्ट के एडवोकेट प्रेमचंद देवंदा का कहना है कि कार्यकाल पूरा कर चुकी पंचायतों को पट्टे देने की शक्ति तो दूर की बात है, इन्हें किसी प्रकार की वित्तीय शक्तियां ही नहीं देनी चाहिए थी। पंचायती राज कानून में पूर्व सरपंच को प्रशासक लगाने का प्रावधान ही नहीं है। इसलिए ही पंचायत सचिव को ही प्रशासक लगाते थे। भाजपा सरकार चुनाव जीतने के लिए भ्रष्टचार को बढ़ावा दे रही है।
राजस्थान में पंचायत चुनाव जनवरी में होने के आसार
प्रदेश में पंचायतीराज चुनाव अगले साल की शुरुआत में होने के असार हैं। प्रदेश की भाजपा सरकार की मंशा है कि पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव एकसाथ कराए जाएं। इस बारे में सरकार की कवायद भी चल रही है। विपक्षी दलों का आरोप है कि भाजपा सरकार पंचायत चुनावों से पहले प्रशासक के तौर पर कार्य कर रहे पूर्व सरपंच और पूर्व पंचों को पट्टे बांटने के अधिकार देकर उसका राजनीतिक फायदा लेना चाहती है।
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हाईकोर्ट जता चुका है आश्चर्यकार्यकाल पूरा नहीं होने के बाद भी ग्राम पंचायतों और स्थानीय निकायों के चुनाव नहीं करवाने पर हाईकोर्ट दो अलग मामलों में इसे संविधान का उल्लंघन बताते हुए आश्चर्य जता चुका है। अदालत ने कहा है कि राज्य चुनाव आयोग पंचायतों और स्थानीय निकायों का कार्यकाल पूरा होने पर अधिकतम छह महीने में चुनाव करवाने के लिए बाध्य है। अदालती टिप्पणियों के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनावी की प्रकिया शुरु भी कर दी थी। लेकिन, ओबीसी वार्ड तय नहीं होने के आधार पर सरकार की अपील पर हाईकोर्ट की डिविजन बैंच ने मामले में रोक लगा दी है। हालांकि संविधान के अनुसार पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बावजूद तय समय सीमा में चुनाव नहीं करवाने पर हाईकोर्ट ने गिरिराज देवंदा की जनहित याचिका पर फैसला सुरक्षित कर रखा है। | |