सिजोफ्रेनिया से पीड़ित महिला की शादी 12 साल बाद शून्य घोषित, एक बार भी नहीं बने शारीरिक संबंध

राजस्थान हाई कोर्ट ने सिजोफ्रेनिया से पीड़ित महिला की शादी को 12 साल बाद शून्य घोषित कर दिया। कोर्ट ने बीमारी छिपाने को धोखाधड़ी माना। वहीं पति ने कहा कि कभी भी शारीरिक संबंध नहीं बने।

author-image
Amit Baijnath Garg
New Update
rajasthan high court

Photograph: (the sootr)

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

राजस्थान हाई कोर्ट ने एक महिला की शादी को शून्य घोषित कर दिया है। महिला सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) नामक मानसिक बीमारी (Mental Illness) से पीड़ित थी और उसकी बीमारी की जानकारी विवाह से पहले उसके पति और परिवार से छुपाई गई थी। कोर्ट ने इसे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(ब) के तहत धोखाधड़ी का मामला मानते हुए यह निर्णय लिया।

राजस्थान हाई कोर्ट लापता बच्चियों के मामले में पुलिस की नाकामी पर सख्त, कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल

क्या है सिजोफ्रेनिया?

सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक विकार है, जो अस्थायी मानसिक अवसाद से कहीं अधिक जटिल होता है। यह विकार व्यक्ति को सामान्य जीवन जीने से रोक सकता है और खासकर वैवाहिक जीवन में बड़ी कठिनाइयां पैदा कर सकता है। कोर्ट ने इसे गंभीर मनोवैज्ञानिक विकार माना, जो शादी के पहले छुपाना गलत था।

विवाह से पहले बीमारी छिपाना धोखाधड़ी

इस मामले में याचिका दायर करने वाले पति ने अदालत को बताया कि उनकी शादी 2013 में हुई थी, लेकिन शादी के बाद उनकी पत्नी का व्यवहार असामान्य था। जब उन्होंने अपनी पत्नी के सामान में एक मनोचिकित्सक की पर्ची पाई, जिसमें सिजोफ्रेनिया का इलाज चलने का उल्लेख था, तो पति ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि पत्नी की मानसिक बीमारी के कारण उनके बीच शारीरिक संबंध नहीं बन सके।

राजस्थान हाई कोर्ट ने 1992 अजमेर ब्लैकमेल कांड में चार आरोपियों की उम्रकैद की सजा स्थगित की

पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया

पत्नी ने अदालत में यह दावा किया कि वह सिजोफ्रेनिया से पीड़ित नहीं है, बल्कि वह शादी के कुछ दिन पहले अपनी मां और बहन की दुर्घटना से हुए मानसिक दबाव के कारण डिप्रेशन में थी। इसके बावजूद फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन बाद में हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों के बीच हुई शादी को शून्य घोषित कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने पलटा राजस्थान हाई कोर्ट का आदेश, पॉक्सो के दोषी की सजा बरकरार

विवाह विच्छेद और शून्य विवाह में अंतर

विवाह विच्छेद (Divorce) और शून्य विवाह के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है। विवाह विच्छेद में माना जाता है कि विवाह वैध था, लेकिन अब उसे समाप्त किया गया है। इसके बाद भी भरण-पोषण और अन्य वैवाहिक अधिकार जारी रहते हैं। वहीं शून्य विवाह में यह माना जाता है कि विवाह कभी हुआ ही नहीं था, जिससे भरण-पोषण का दायित्व समाप्त हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने 53 वर्षीय दोषी को भेजा बाल सुधार गृह, राजस्थान हाई कोर्ट का फैसला पलटा

न्यायालय का निर्णय और इसके प्रभाव

राजस्थान हाई कोर्ट का यह निर्णय एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि किसी भी विवाह में पारदर्शिता और सच्चाई बहुत महत्वपूर्ण है। जब एक पक्ष विवाह से पहले अपने मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में झूठ बोलता है, तो इसे धोखाधड़ी माना जाता है और इसे कानूनी रूप से शून्य घोषित किया जा सकता है।

FAQ

1. क्या सिजोफ्रेनिया के कारण विवाह को शून्य घोषित किया जा सकता है?
हां, यदि विवाह से पहले किसी मानसिक बीमारी की जानकारी छुपाई जाती है और यह शादी को प्रभावित करती है, तो इसे धोखाधड़ी मानते हुए शादी को शून्य घोषित किया जा सकता है।
2. शून्य विवाह और तलाक में क्या अंतर है?
शून्य विवाह में यह माना जाता है कि विवाह कभी हुआ ही नहीं था, जबकि तलाक में विवाह वैध होता है, लेकिन उसे समाप्त कर दिया जाता है।
3. इस केस का प्रभाव अन्य विवाहों पर क्या पड़ेगा?
यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि किसी भी मानसिक बीमारी या शारीरिक विकार को विवाह से पहले छुपाना धोखाधड़ी हो सकता है, और ऐसी स्थिति में विवाह को शून्य घोषित किया जा सकता है।

thesootr links

सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃🤝💬👩‍👦👨‍👩‍👧‍👧‍👩

राजस्थान राजस्थान हाई कोर्ट divorce धोखाधड़ी हिंदू विवाह अधिनियम mental illness Schizophrenia शून्य विवाह