भारत का पहला हाई स्पीड टेस्टिंग ट्रैक: कार्य में देरी और हो रहा है ट्रायल प्रभावित

राजस्थान में उच्च गति टेस्टिंग ट्रैक का काम अधूरा, दिल्ली-मुंबई रूट पर ट्रायल प्रभावित, 200 किमी प्रति घंटा की गति से ट्रेन संचालन के लिए महत्वपूर्ण ट्रैक निर्माण में देरी।

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Gyan Chand Patni
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मरुप्रदेश राजस्थान के जयपुर और जोधपुर के बीच बन रहे देश के पहले वर्ल्ड क्लास हाई स्पीड टेस्टिंग ट्रैक का काम अब तक अधूरा पड़ा है। इसके कारण ट्रेनों की टेस्टिंग का कार्य अब भी दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग के कोटा रेल मंडल में हो रही है।

गौरतलब है कि यह देश के व्यस्ततम रेलमार्गों में से एक है। इस कारण रेल यातायात प्रभावित हो रहा है। भारतीय रेलवे के पास अब तक कोई भी विश्व स्तरीय टेस्टिंग ट्रैक नहीं है। इस वजह से तेज रफ्तार ट्रेनों की टेस्टिंग में परेशानी हो रही है।  

वर्ल्ड क्लास टेस्टिंग ट्रैक की क्या है योजना

वंदे भारत, बुलेट ट्रेन जैसी तेज रफ्तार ट्रेनों के ट्रायल के लिए भारत में चुनिंदा और प्राकृतिक दृष्टि से अनुकूल ट्रैक का इस्तेमाल किया जाता है। इसे देखते हुए भारतीय रेलवे ने एक विश्व स्तरीय टेस्टिंग ट्रैक बनाने का निर्णय लिया।

5 वर्ष बाद भी योजना अधूरी क्यों

अनुसंधान, अभिकल्प और मानक संगठन (आरडीएसओ) द्वारा 2020 में जयपुर-जोधपुर रेलमार्ग पर 64 किलोमीटर लंबे हाई स्पीड टेस्टिंग ट्रैक का निर्माण कार्य शुरू किया गया था। यह 200 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से ट्रेनों का संचालन करने में सक्षम होगा। मुश्किल यह है कि पांच साल बीत जाने के बावजूद यह योजना पूरी नहीं हो पाई है। ट्रैक का 80 प्रतिशत कार्य पूरा होने के बावजूद, कुछ हिस्सों में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिलने के कारण यह काम अटका हुआ है। वंदे भारत ट्रेन ट्रायल और बुलेट ट्रेन ट्रायल के लिए यह ट्रेक शीघ्र पूरा होना जरूरी है। 

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वर्ल्ड क्लास टेस्टिंग ट्रैक की क्या है विशेषता

यह ट्रैक अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया की तर्ज  पर विकसित किया जा रहा है। इस ट्रैक पर 23 किलोमीटर लंबी मुख्य लाइन बनाई जा रही है, जिसमें से गुढ़ा साल्ट में 13 किलोमीटर का हाई स्पीड लूप और नावां में 3 किलोमीटर का क्विक टेस्टिंग लूप शामिल है। इसके अलावा, मिठड़ी में 20 किलोमीटर का कर्व टेस्टिंग लूप भी बनाया जाएगा। आठ स्टेशन, मेजर ब्रिज, छोटे-बड़े पुल, अंडरब्रिज और ओवरब्रिज का निर्माण इस ट्रैक पर किया जा रहा है।

क्या हो रही है समस्या

नई ट्रेनों और वैगन के परीक्षण के दौरान अक्सर यातायात को रोकना पड़ता है। कोटा जैसे व्यस्ततम मार्ग पर यह समस्या बार-बार हो रही है। यदि यह ट्रैक चालू हो जाए, तो न केवल नए इंजनों और कोचों का परीक्षण आसान होगा। यहां बुलेट ट्रेन के कोचों का परीक्षण भी किया जा सकेगा।

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मिशन रफ्तार प्रोजेक्ट 

ट्रेनों के भारी आवागमन को देखते हुए दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पर साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक के मिशन रफ्तार प्रोजेक्ट का काम अंतिम चरण में है। प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद इस रेलमार्ग पर ट्रेनों की गति 180 किलोमीटर प्रति घंटे तक बढ़ा सकेगी, जिससे समय की बचत होगी और अन्य ट्रेनों के संचालन में भी सुधार होगा।

FAQ

1. हाई स्पीड टेस्टिंग ट्रैक के निर्माण में देरी क्यों हो रही है?
हाई स्पीड टेस्टिंग ट्रैक का निर्माण कार्य 80 प्रतिशत पूरा हो चुका है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी नहीं मिलने के कारण कुछ हिस्सों में काम रुक गया है।
2. वर्ल्ड क्लास टेस्टिंग ट्रैक की प्रमुख क्या विशेषताएं हैं?
यह ट्रैक 64 किलोमीटर लंबा है और इसमें 23 किलोमीटर की मुख्य लाइन, 13 किलोमीटर का हाई स्पीड लूप, 3 किलोमीटर का क्विक टेस्टिंग लूप और 20 किलोमीटर का कर्व टेस्टिंग लूप भी शामिल है।
3. मिशन रफ्तार प्रोजेक्ट का क्या उद्देश्य है?
दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पर ट्रेनों की गति बढ़ाकर 180 किमी प्रति घंटे तक लाना मिशन रफ्तार प्रोजेक्ट का उद्देश्य है।

 

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