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Photograph: (The Sootr)
राजस्थान ने फार्मास्यूटिकल (Pharmaceutical) उद्योग में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं और देश के फार्मा बाजार में 6% हिस्सेदारी रखता है। 2024 की आईबीईएफ (IBEF) रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान का फार्मा मार्केट 10,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जिसमें 5,000 करोड़ रुपये का निर्यात भी शामिल है। राजस्थान के 7 प्रमुख फार्मा क्लस्टर- जयपुर, अलवर, बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा और सीकर देश के फार्मास्यूटिकल उत्पादन में एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इन क्लस्टरों में स्थित कंपनियां मुख्य रूप से जेनेरिक दवाओं, वैक्सीन्स और बायोसिमिलर (Biosimilars) के उत्पादन में लगी हुई हैं। हालांकि, आयात निर्भरता और नियामक जटिलताओं ने वृद्धि को 6-8% तक सीमित रखा।
राजस्थान फार्मा उद्योग का निर्यात कहां होता है?
राजस्थान फार्मा उत्पादन का निर्यात विभिन्न देशों में होता है। मुख्य रूप से, यूएसए (40%), यूरोप (25%), अफ्रीका (20%), और एशिया (10%) को दवाएं निर्यात की जाती हैं। प्रमुख निर्यात गंतव्य यूएस (2 बिलियन डॉलर), यूके (300 मिलियन डॉलर), और दक्षिण अफ्रीका (250 मिलियन डॉलर) हैं।
राजस्थान सरकार ने फार्मा उद्योग के विकास के लिए कई पहल की हैं। राइजिंग राजस्थान 2024 के अंतर्गत, 7 फार्मा क्लस्टर के लिए 2,000 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया गया है। इसके अलावा, पीएलआई (Production Linked Incentive) स्कीम के तहत 500 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई है, जिससे 10 नई यूनिट्स की शुरुआत हुई है।
चीन, जर्मनी और यूएसए से कच्चे माल का आयात
राजस्थान में फार्मा उद्योग में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल (API) मुख्य रूप से चीन, जर्मनी और यूएसए से आयात किया जाता है। 66% API चीन से, 20% जर्मनी से और 10% USA से आयात होता है। हालांकि, राज्य में केवल 10% API का उत्पादन होता है, जो मुख्य रूप से भिवाड़ी और जयपुर में होता है।
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राजस्थान फार्मा हब कौन से हैं?राजस्थान में फार्मा उद्योग के केंद्र जयपुर, अलवर, बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा और सीकर हैं। इन शहरों में स्थित फार्मा कंपनियां विभिन्न प्रकार की दवाएं, जैसे कि एंटी-इन्फेक्टिव, कार्डियोवास्कुलर, एंटी-डायबिटिक और कैंसर की दवाएं बनाती हैं। जयपुर (वीकेआई और सीतापुरा): फार्मा उद्योग का प्रमुख हबजयपुर में विश्वकर्मा औद्योगिक क्षेत्र (वीकेआई) और सीतापुरा जैसे प्रमुख हब हैं, जहां 50 से अधिक फार्मा कंपनियां स्थापित हैं। इन कंपनियों में प्रमुख रूप से राजस्थान ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (RDPPL) जैसी कंपनियां शामिल हैं, जो टैबलेट, कैप्सूल और ओरल रीहाइड्रेशन सॉल्ट (ORS) का उत्पादन करती हैं। अलवर (भिवाड़ी): एंटी-बायोटिक्स और एंटी-डायबिटिक दवाओं का उत्पादनअलवर का भिवाड़ी क्षेत्र भी फार्मा उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां 30 से अधिक फार्मा कंपनियां स्थित हैं, जो पेनिसिलिन और नॉन-पेनिसिलिन आधारित दवाओं का उत्पादन करती हैं। ये दवाएं मुख्य रूप से एंटी-बायोटिक्स, एंटी-डायबिटिक और एंटी-इन्फेक्टिव दवाओं पर केंद्रित हैं। बीकानेर और जोधपुर: एंटी-इन्फेक्टिव और कार्डियोवास्कुलर दवाएंबीकानेर और जोधपुर में भी फार्मा कंपनियां स्थापित हैं, जो मुख्य रूप से एंटी-इन्फेक्टिव और कार्डियोवास्कुलर दवाओं का उत्पादन करती हैं। इन शहरों में लगभग 20-25 कंपनियां इस उद्योग से जुड़ी हुई हैं। उदयपुर और कोटा: वैक्सीन्स और बायोसिमिलर पर ध्यानउदयपुर और कोटा में फार्मा कंपनियां वैक्सीन्स और बायोसिमिलर पर ध्यान केंद्रित करती हैं। इन शहरों में 15-20 कंपनियां हैं, जो इस क्षेत्र में शोध और उत्पादन कर रही हैं। सीकर: छोटे पैमाने पर जेनेरिक दवाएंसीकर में छोटी फार्मा इकाइयां जेनेरिक दवाओं का उत्पादन करती हैं। यह क्षेत्र भी फार्मा उद्योग में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। | |
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राजस्थान फार्मा क्लस्टर में चुनौतियां और समाधान क्या हैं?
आयात निर्भरता और आपूर्ति श्रृंखला जोखिम
राजस्थान के फार्मा उद्योग की सबसे बड़ी चुनौती आयात निर्भरता है। 66% API चीन से आयात होता है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला में जोखिम बढ़ जाता है। यह स्थिति किसी भी प्रकार की वैश्विक संकट या व्यापारिक मंदी के दौरान उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
बुनियादी ढांचे की कमी
भिवाड़ी और वीकेआई जैसे प्रमुख हबों में बिजली और पानी की कमी एक बड़ी समस्या है। इन क्षेत्रों में बिजली की लागत 7-8 रुपये प्रति यूनिट है, जो उद्योग के लिए महंगी पड़ती है। इससे उत्पादन की लागत में वृद्धि होती है और प्रतिस्पर्धा में कमी आती है।
नियामक देरी
कई छोटे निर्माताओं को नियामक प्रक्रिया के तहत दवाओं के लाइसेंस प्राप्त करने में देरी का सामना करना पड़ता है। ड्रग लाइसेंस प्रक्रिया को 6-12 महीने के बीच समय लगता है, जो छोटे निर्माताओं के लिए एक चुनौती बनता है।
निवेश की कमी
राजस्थान के फार्मा क्षेत्र में MSME (Micro, Small, and Medium Enterprises) को तकनीकी उन्नयन और शोध के लिए पूंजी की कमी होती है। इस कारण से, राज्य के फार्मा उद्योग में विकास धीमा हो रहा है।
प्रतिस्पर्धा
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के मुकाबले राजस्थान में केवल 20 एफडीए/ईएमए अनुमोदित संयंत्र हैं, जबकि इन राज्यों में 131 संयंत्र हैं। यह कमी राज्य के उद्योगों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने का कारण बन रही है।
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राजस्थान में फार्मा उद्योग के विकास के लिए आवश्यक कदम
स्थानीय एपीआई उत्पादन
राजस्थान के फार्मा उद्योग में एक महत्वपूर्ण सुधार की आवश्यकता है, और वह है स्थानीय API उत्पादन को बढ़ावा देना। भिवाड़ी और जयपुर में API पार्क की स्थापना से राज्य की आयात निर्भरता को कम किया जा सकता है।
बुनियादी ढांचे में सुधार
सौर ऊर्जा (142 गीगावाट क्षमता) का उपयोग करके बिजली की लागत को कम किया जा सकता है। इसके अलावा, पानी की आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए जल प्रबंधन प्रणालियों में सुधार की आवश्यकता है।
आर एंड डी निवेश
राजस्थान में बायोटेक और बायोसिमिलर पर शोध के लिए एनआईपीईआर जयपुर में एक केंद्र स्थापित किया जा सकता है। इससे राज्य के फार्मा उद्योग को नई तकनीकियों और उत्पादों के लिए एक ठोस आधार मिलेगा।
नियामक सुधार
राज्य में ड्रग लाइसेंस प्रक्रिया को 6-8 सप्ताह में पूरा करने के लिए सुधार की आवश्यकता है, ताकि फार्मा कंपनियों को किसी प्रकार की बाधाओं का सामना न करना पड़े।
राजस्थान में फार्मा उद्योग का उत्पादन, निर्यात और राजस्व
वर्ष | उत्पादन (करोड़ रु.) | निर्यात (करोड़ रु.) | कुल राजस्व (करोड़ रु.) | प्रमुख जिले |
---|---|---|---|---|
2020 | 6,500 | 3,000 | 7,500 | जयपुर, अलवर |
2021 | 7,000 | 3,500 | 8,000 | जयपुर, बीकानेर |
2022 | 8,000 | 4,000 | 9,000 | जोधपुर, उदयपुर |
2023 | 9,000 | 4,500 | 9,500 | कोटा, सीकर |
2024 | 10,000 | 5,000 | 10,000 | जयपुर, भिवाड़ी |
स्रोत: आईबीईएफ और राजस्थान उद्योग विभाग 2024
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