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Photograph: (the sootr)
Jaipur. राजस्थान में मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार होने की अटकलें लगातार चल रही हैं। संभावना यह है कि अंता उपचुनाव के बाद यह फेरबदल और विस्तार होगा। फेरबदल में कुछ मंत्रियों की कुर्सी जा सकती है, तो कुछ को प्रमोशन मिलेगा।
किरोड़ी ने फिर जाहिर की अनिच्छा
वहीं कुछ नए चेहरों को मौका देने के साथ ही जातीय व क्षेत्रीय असंतुलन को भी साधा जाएगा। अंता उपचुनाव की वोटिंग से एक दिन पहले राजस्थान के कैबिनेट मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने एक बार फिर मंत्री पद पर बने रहने की अनिच्छा जाहिर की है। वह पहले भी कई बार इस तरह की इच्छा जता चुके हैं।
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लगातार बने हुए हैं सु​र्खियों में
किरोड़ी लगातार सुर्खियों में बने रहने वाले नेता हैं। कभी पूर्वी राजस्थान में आदिवासी मीणा समुदाय के एकछत्र नेता रहने वाले किरोड़ीलाल ने पूरे पांच साल पिछली गहलोत सरकार की नाक में दम किए रखा था। उनकी सक्रियता के कारण स्थिति यह रही कि पूरी भाजपा एक ओर थी और वह अकेले एक ओर।
सरकार को भी असहज होना पड़ा
इस दौरान उनके पार्टी के कुछ नेताओं से मतभेद भी सामने आते रहे, लेकिन सरकार गठन के बाद उनके तेवर बिल्कुल ही उखड़े हुए हैं। वह अपनी ही सरकार में कैबिनेट मंत्री रहते हुए भी कई मौकों पर विपक्ष की भूमिका निभाते दिखते हैं। उनके बयानों से कई बार भजनलाल सरकार को भी असहज होना पड़ा है।
दौसा उपचुनाव ने बदली गणित
दौसा किरोड़ी का गृह जिला होने के साथ ही उनका गढ़ माना जाता रहा है। दौसा में पिछले साल हुए उपचुनाव में उन्होंने अपने छोटे भाई जगमोहन मीणा को भाजपा का टिकट दिलवाया था, लेकिन कांटे की टक्कर में उनके भाई और भाजपा उम्मीदवार चुनाव हार गए थे। इससे व्यथित होकर किरोड़ी ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
अनमने ढंग से संभाला मंत्रीपद
हालांकि किरोड़ी का यह इस्तीफा कभी स्वीकार नहीं हुआ। महीनों तक चले असमंजस के बाद आखिरकार आलाकमान के कहने पर किरोड़ी ने मंत्री के रूप में काम करना शुरू किया। इस दौरान भी वह अपनी चिर-परिचित शैली में ही काम करते दिख रहे हैं। हालांकि एक तथ्य यह भी है कि वह कभी मंत्रीपद पर बने रहना नहीं चाहते थे। यह भी कह सकते हैं कि वे बेमन से काम कर रहे हैं।
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आखिर चाहते क्या हैं किरोड़ी
किरोड़ी भाजपा के लिए पिछले कई सालों से एक पहेली की तरह रहे हैं। कोई भी नहीं बता सकता कि वह कब क्या करेंगे और किस मुद्दे पर क्या स्टैंड लेंगे। हाल ही में उन्होंने एक बार फिर मंत्री पद पर रहने के प्रति अनिच्छा जाहिर करके असमंजस और ​अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है। उन्होंने कहा है कि हो सकता है कि अगले साल उन्हें पार्टी नियमों के अनुसार मंत्री पद छोड़ना पड़े। वह मंत्री पद पर बने रहने की बहुत ज्यादा इच्छा भी नहीं रखते हैं।
मन की कोई नहीं जानता
दरअसल किरोड़ी भाजपा में मोदी युग की शुरुआत के साथ ही 75 साल के नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजने की नीति की ओर से इशारा कर रहे थे। उन्होंने अपने विभाग के कार्यों को तेजी से आगे बढ़ाने, मंत्रिमंडल में फेरबदल या विस्तार करना पार्टी और मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होने, ज्यादा दिलचस्पी नहीं होने, पार्टी निर्णय को स्वीकार करने और मंत्रिमंडल में नए लोगों और युवाओं को अवसर देने की बातें भी कही हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर किरोड़ी चाहते क्या हैं?
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अब बदल गई है राजनीति
वरिष्ठ पत्रकार सुधांशु मिश्र का कहना है कि राजनीति अब बदल गई है। अब कौन सीएम होगा और कौन मंत्री, यह भी आलाकमान ही तय कर रहा है। विशेषकर भाजपा शासित राज्यों में यही तरीका अपनाया जा रहा है। यहां तक कि किसे कौनसा विभाग मिलेगा, यह भी अब आलाकमान ही तय कर रहा है।
अस्तित्व बनाए रखने की कवायद
हर पार्टी आलाकमान का अपनी राज्य सरकारों और मंत्रियों के संबंध में फीडबैक लेने का अलग-अलग तरीके होते हैं। कुछ सालों से ब्यूरोक्रेसी से फीडबैक लेने का सिलसिला चला है। अब मंत्रिमंडल फेरबदल या विस्तार में ब्यूरोक्रेसी का फीडबैक भी काम कर रहा है।
यह राजनीति और राजनीतिज्ञों के कमजोर होने का नतीजा और कारण दोनों है। दो किस्म के राजनीतिज्ञ होते हैं। एक वे जो बदलते हालात के अनुरूप ढल जाते हैं। दूसरे पुराने ढर्रे पर चलने वाले। ऐसे में हर राजनेता को समय के अनुरूप अस्तित्व बनाए रखना जरूरी है। इसलिए लगता यही है कि किरोड़ी भी बदलती राजनीति में अस्तित्व बनाए रखने की कोशिश कर रहे हों।
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