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Photograph: (the sootr)
राजस्थान के अलवर जिले में स्थित एक कलाकार परिवार ने सांझी आर्ट को एक नई पहचान दिलाई है। कलाकार राम सोनी और उनके परिवार का योगदान सांझी आर्ट को जीवंत बनाए रखने में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
यह कला प्राचीन परंपरा से जुड़ी हुई है, जिसमें कागज पर बारीक नक्काशी कर भगवान की लीलाओं और चित्रों को उकेरा जाता है। राम सोनी के द्वारा तैयार की गई गोल्डन वर्क से सजी श्रीनाथजी की सांझी कलाकृति ने न केवल अलवर, बल्कि पूरे देश में धूम मचाई है। यह कलाकृति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट दी गई थी और उन्हें यह बहुत पसंद आई।
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राम सोनी की कला को मिली सराहना
राम सोनी ने बताया कि उनके परिवार ने कई सालों पहले अलवर में सांझी आर्ट की शुरुआत की थी। धीरे-धीरे इस कला ने नई ऊंचाइयों को छुआ है। राम सोनी की गोल्डन वर्क से तैयार श्रीनाथजी की सांझी कलाकृति को हाल ही में अलवर में आयोजित हस्तशिल्प प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया। प्रदर्शनी में इस कलाकृति को लोगों ने बेहद सराहा और इसे एक अद्भुत कला के रूप में देखा। इस कला के कारण अलवर में सांझी आर्ट को पहचान मिली है।
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प्राचीन सांझी आर्ट का सफर और बदलाव
सांझी आर्ट की शुरुआत 1910 में राम सोनी के परिवार के द्वारा मेहंदी के छापे से हुई थी, जिसे पूरे भारत में बहुत प्रसिद्धि मिली। इसके बाद इस कला में निरंतर सुधार और बदलाव होते रहे। पहले नेचर से जुड़े चित्र उकेरे जाते थे और अब इसमें किसी भी प्रकार की कलाकृति को उकेरा जा सकता है। समय के साथ सांझी आर्ट ने नया रूप लिया है और अब इसे आधुनिकता के साथ जोड़ने की कोशिशें हो रही हैं।
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धैर्य और एकाग्रता की आवश्यकता
राम सोनी के अनुसार, सांझी आर्ट में सबसे अधिक धैर्य और एकाग्रता की आवश्यकता होती है। यह एक बहुत ही शांतिपूर्ण और समय-साध्य कला है, जिसे अच्छे परिणाम के लिए पूरी तरह से समर्पित होकर किया जाता है। उन्होंने बताया कि श्रीनाथजी की गोल्डन वर्क से तैयार कलाकृति को बनाने में लगभग 40 दिन का समय लगा। इस दौरान पेपर पर गोल्ड वर्क किया गया और फिर उस पर कलाकृति उकेरी गई।
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अलवर की कलाकृति विदेशों तक पहुंची
राम सोनी की कला अब केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पहचान बना चुकी है। दिल्ली मंत्रालय और सेंट्रल कॉटेज द्वारा तैयार की गई कलाकृतियां विदेशों के मेहमानों को भेंट दी जाती हैं। जापान, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, भूटान, नेपाल और अमेरिका जैसे देशों में भारतीय संस्कृति का यह हिस्सा लोगों को भेंट किया गया है। इससे यह भी साबित होता है कि सांझी आर्ट की सुंदरता और इसकी पहचान वैश्विक स्तर पर फैल चुकी है।