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Photograph: (the sootr)
राजस्थान के झालावाड़ जिले के सामिया गांव के पास स्थित श्रीरामनगर महुडिया तिराहा के इच्छापूर्ण बालाजी महाराज मंदिर में एक अनोखा दृश्य देखने को मिला। यहां पूजे जाने वाले एक कबूतर की मृत्यु के बाद श्रद्धालुओं ने पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार उसका अंतिम संस्कार किया।
गुरुवार को आयोजित तेरहवीं में कबूतर की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के साथ भंडारा भी आयोजित किया गया। इस भंडारे में लगभग सात हजार लोग शामिल हुए और उन्होंने प्रसादी ग्रहण की।
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कबूतर की तेरहवीं पर विशेष आयोजन
क्षेत्र में यह आयोजन पहली बार हुआ। श्रद्धालुओं ने बताया कि कबूतर की मृत्यु एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में हुई थी। उसकी स्मृति को हमेशा बनाए रखने के लिए मंदिर परिसर में उसकी मूर्ति स्थापित की गई। गुरुवार को तेरहवीं के दिन पूजा-पाठ और हवन किया गया। इससे पूर्व बुधवार सुबह घाटा और रात में भजन संध्या आयोजित की गई।
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कबूतर की तेरहवीं पर गुरुवार को मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करने के साथ ही भंडारा भी हुआ। भंडारे में क्षेत्र के करीब सात हजार लोगों ने प्रसादी ग्रहण की। श्रद्धालु इसे कबूतर महाराज मानते थे। उनका मानना था कि कबूतर की उपस्थिति से बीमार व्यक्ति जल्दी स्वस्थ हो जाता था। श्रीरामनगर महुडिया तिराहा का यह अनूठा आयोजन इंसान और पशु-पक्षियों के बीच अटूट आस्था और प्रेम को दर्शाता है।
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कबूतर-श्रद्धालुओं के बीच अनोखा रिश्ता
मंदिर के पुजारी मुकेश वैष्णव बैरागी ने बताया कि यह कबूतर लगभग एक साल पहले मंदिर में आया और यहीं बस गया। खास बात यह थी कि जब कोई बीमार व्यक्ति मंदिर आता, तो यह कबूतर उसके पास बैठ जाता या सिर पर बैठता। इससे श्रद्धालुओं का विश्वास और प्रेम इस कबूतर के प्रति और बढ़ गया।
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श्रद्धालुओं के लिए भंडारा-सामाजिक सहभागिता
भंडारे में शामिल लोग : लगभग सात हजार
प्रसादी वितरण : सामूहिक
मूर्ति स्थापना : श्रद्धा और स्मृति के लिए