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Photograph: (the sootr)
आम दिनों में घर की मुंडेर पर कौवों की कांव-कांव लोगों को भले ही पसंद न आए, लेकिन श्राद्ध पक्ष में इन्हीं कौवों की प्रतीक्षा हर कोई करता है, लेकिन राजस्थान के जोधपुर (Jodhpur) के हिंगोटी गांव के लोगों को कौवे सहज उपलब्ध होते हैं।
तूंगा-महादेवपुरा मार्ग स्थित हिंगोटी ग्राम्य वन में हजारों कौवे हैं। ग्रामीणों का दावा है कि यहां दस हजार से अधिक कौवे हर दिन एकत्र होते हैं। पर्यावरण प्रेमियों के अथक प्रयासों से हिंगोटी ग्राम्य वन कौवों और अन्य पक्षियों का सुरक्षित आवास बन चुका है।
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पूरा प्रबंधन जनसहयोग से
पर्यावरण प्रेमी शिवशंकर प्रजापति ने बताया कि यहां का पूरा प्रबंधन जनसहयोग से चलता है। स्थानीय लोग चुग्गा और पानी लेकर आते हैं, चरुण्डियों की सफाई करते हैं और पक्षियों की देखभाल करते हैं। वहीं रामभजन गुर्जर पेड़ों की रखवाली नि:शुल्क करते हैं। श्राद्ध पक्ष और अमावस्या तिथि पर यहां मेले जैसा माहौल बन जाता है।
हर दिन सुबह कौवों के लिए दावत
जोधपुर शहर में एक ऐसा घर है, जहां हर दिन सुबह कौवों के लिए दावत होती है। जहां वे बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। शोभावतों की ढाणी के पास मरुधर केसरी नगर निवासी रेलवे से सेवानिवृत्त प्रवीण पंवार के घर सुबह कौवों का जमघट लगता है। यह क्रम सर्दी, गर्मी और बरसात हर मौसम में चलता है। सुबह-शाम दूध में भीगी आटे की रोटी और दो से तीन किलो बेसन के गाठिया और दो किलो पनीर खिलाया जाता है।
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सुबह चार बजे से सेवा शुरू
प्रवीण और उनकी पत्नी दुर्गा पंवार सुबह चार बजे उठकर कौवों के लिए आटा गूंथ कर रोटी बनाते हैं, उसको दूध में भिगोते हैं और अलग-अलग थाली में रखते हैं। 70 वर्षीय प्रवीण पंवार बताते हैं कि करीब 15 साल पहले वे मसूरिया से मरुधर केसरी नगर अपने नए घर में आए थे। श्राद्ध के दौरान पितरों के प्रति श्रद्धा में घर के बाहर छत पर खाना रखा तो शुरू में आठ-दस कौवे आए। बाद में धीरे-धीरे यह संख्या सैंकडों में पहुंच गई।
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दिनभर लगा रहता है आना-जाना
इसके बाद कौवों की भूख को देखकर प्रवीण पंवार ने इस क्रम को नियमित करने का ठान लिया। प्रवीण पंवार के घर के बाहर रोजाना सुबह 6 बजे कौवों को भोजन देने का सिलसिला शुरू होता है। कौवे सुबह 5 बजे ही आस-पास के बिजली तार और घरों की छतों पर आकर बैठ जाते हैं। इसी तरह से शाम को साढ़े पांच से छह बजे के बीच इनको दोबारा भोजन दिया जाता है। वहीं दिनभर इनका खाने के लिए आना-जाना लगा रहता है।