सरिस्का अभयारण्य में जवान हो रहे 6 मेल टाइगर को लगेंगे रेडियो कॉलर, हर मूवमेंट पर रहेगी नजर

सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघों की निगरानी के लिए रेडियो कॉलर लगाने का प्रस्ताव। इन बाघों के मूवमेंट पर कड़ी निगरानी रखने के लिए यह कदम उठाया गया है

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Nitin Kumar Bhal
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Sariska

Photograph: (The Sootr)

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सुनील जैन
राजस्थान (Rajasthan) के मशहूर टाइगर रिजर्व सरिस्का (Sariska Tiger Reserve) में वयस्क होते जा रहे बाघों को रेडियो कॉलर लगाया जाएगा। ये बाघ सरिस्का के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं, क्योंकि 2 साल का होने के बाद ये टाइगर अपनी टेरिटरी बनाते हैं। वे कभी अपनी टेरिटरी बनाने के लिए सरिस्का जंगल से बाहर भी चले जाते हैं। अब इन पर निगरानी रखने के लिए रेडियो कॉलर लगाए जाने का प्रस्ताव है।  

सरिस्का में छह टाइगर को लगेंगे रेडियो कॉलर

नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) की स्वीकृति के उपरांत इन बाघों के रेडियो कॉलर लगाए जाएंगे। कई मेल टाइगर सरिस्का का जंगल छोड़कर सवाईमाधोपुर ,दौसा, हरियाणा और जयपुर तक पहुंच गए थे। इनमें से कई बाघों का पता भी नहीं लगा है। अब उनकी निगरानी बहुत जरूरी हो गई है। रेडियो कॉलर लगाए जाने के बाद उनके हर मूवमेंट पर नजर रहेगी। अभी नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी से स्वीकृति मांगी गई है। पहले चरण में 6 मेल टाइगर को रेडियो कॉलर लगाए जाने का प्रस्ताव है।

टाइगर की निगरानी के लिए रेडियो कॉलर जरूरी

सरिस्का के उपवन संरक्षक अभिमन्यु सहारण ने बताया कि छह मेल टाइगर्स की उम्र 16 से 20 माह है। चार महीने बाद वे अपनी मां से अलग रहकर टेरिटरी बनाएंगे। इनकी निगरानी जरूरी है। रेडियो कॉलर लगाए जाने का प्रस्ताव एनटीसीए को भेज दिया गया है।

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बाघ एसटी 2303 पहुंच गया था हरियाणा

अगस्त 2024 में बाघ एसटी 2303 सरिस्का से निकलते हुए कोटकासिम और भिवाड़ी के रास्ते हरियाणा के झाबुआ बीड में पहुंच गया था। करीब 3 महीने यहां रहने के बाद इसका बड़ी मुश्किल से रेस्क्यू कर उसे रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व फॉरेस्ट में शिफ्ट किया गया, जहां टेरिटोरियल फाइट में उसकी मौत हो गई थी। इस समय एस टी 2305 भी बाहर निकल गया। एक महीना तक उसका कोई पता नहीं चला। बाद में जानकारी आया कि वह जयपुर ग्रामीण क्षेत्र में दिखाई दिया है। अब अजबगढ़ रेंज में उसका मोमेंट बताया जा रहा है।

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रोजाना 200 किलोमीटर तक मूवमेंट

अधिकारियों का कहना है कि वयस्क होते ये बाघ एक ही दिन में 150 से 200 किलो मीटर तक मूवमेंट कर लेते हैं। कई बार ये आबादी क्षेत्र में पहुंच जाते हैं। मानव डिस्टरवेंस के चलते हिंसक भी हो सकते हैं। वर्ष 2008 के बाद जितने भी टाइगर बाहर से ले गए थे वह सभी रेडियो कॉलर के साथ जंगल में छोड़े गए थे। कुछ टाइगर्स का रेडियो कॉलर खराब भी हो गया था। बाद में इसे बदला भी गया, लेकिन सरिस्का में आकर उनकी संतान उत्पत्ति के बाद रेडियो कॉलर नहीं लगाए गए। 

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रेडियो कॉलर क्या होता है और यह कैसे काम करता है?

रेडियो कॉलर एक उपकरण है जिसे जानवरों के गले में बांधकर ट्रांसमीटर लगाया जाता है, जो रेडियो तरंगें भेजता है।

  • कैसे काम करता है रेडियो कॉलर:

    1. ट्रांसमीटर:

      • कॉलर में एक छोटा ट्रांसमीटर होता है, जो एक विशिष्ट आवृत्ति पर रेडियो तरंगें उत्सर्जित करता है।

    2. सिग्नल:

      • ये तरंगें हवा में फैलती हैं।

    3. रिसीवर:

      • रिसीवर (जो व्यक्ति या उपग्रह हो सकता है) इन सिग्नलों को प्राप्त करता है।

    4. ट्रैकिंग:

      • रिसीवर सिग्नलों की दिशा और ताकत का उपयोग करके जानवर की स्थिति का पता लगाता है।

  • रेडियो कॉलर का उपयोग:

    • रेडियो कॉलर का उपयोग विभिन्न जानवरों की निगरानी के लिए किया जाता है, जैसे भेड़िये, चीते, हाथी आदि।

    • यह शोधकर्ताओं को जानवरों के व्यवहार, प्रवास, और आवास उपयोग का अध्ययन करने में मदद करता है।

  • रेडियो कॉलर के प्रकार:

    1. वीएचएफ (VHF) रेडियो कॉलर:

      • छोटे और हल्के होते हैं, कम दूरी तक सिग्नल भेजते हैं।

    2. जीपीएस (GPS) रेडियो कॉलर:

      • जीपीएस तकनीक का उपयोग करके सटीक स्थान डेटा प्रदान करते हैं।

    3. सैटेलाइट रेडियो कॉलर:

      • उपग्रहों के माध्यम से लंबी दूरी तक सिग्नल भेजते हैं, जो दूर-दराज क्षेत्रों में जानवरों की निगरानी में मदद करते हैं।

  • रेडियो कॉलर के फायदे:

    • जानवरों के व्यवहार और आवास उपयोग का अध्ययन करने में मदद करता है।

    • जानवरों की आबादी और उनके फैलाव पर निगरानी रखने में मदद करता है।

    • शोधकर्ताओं को जानवरों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए योजना बनाने में मदद करता है।

    • कुछ मामलों में, रेडियो कॉलर जानवरों को शिकारियों से बचाने में मदद कर सकता है।

  • रेडियो कॉलर के नुकसान:

    • कॉलर जानवरों को चोट पहुंचा सकता है या संक्रमण का कारण बन सकता है।

    • रेडियो कॉलर का उपयोग महंगा हो सकता है।

    • कुछ जानवरों में कॉलर के कारण तनाव या व्यवहार परिवर्तन हो सकता है।

 

 

सरिस्का में टाइगर को मानसून के बाद लगेगा रेडियो कॉलर 

 बाघों को मानसून में रेडियो कॉलर लगाना बहुत बड़ी चुनौती है। इसलिए माना जा रहा है कि अगर एनटीसीए द्वारा स्वीकृति मिलती है तो मानसून के बाद रेडियो कॉलर लगाया जाएगा। मानसून में टाइगर ऊपरी हिस्से में रहते हैं।

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क्या सरिस्का में पहले भी बाघों को रेडियो कॉलर लगाए गए हैं?

वर्ष 2008 के बाद, जितने भी बाघों को बाहर से लाकर सरिस्का में छोड़ा गया था, उन सभी बाघों को रेडियो कॉलर (Radio Collar) के साथ जंगल में छोड़ा गया था। कुछ बाघों का कॉलर खराब हो गया था, जिन्हें बाद में बदलना पड़ा था। लेकिन सरिस्का में आने के बाद इन बाघों की संतान के लिए कॉलर नहीं लगाए गए थे।

 

सरिस्का में अब 48 टाइगर

वर्तमान में सरिस्का टाइगर रिजर्व में 48 बाघ हैं, जिनमें 11 मेल बाघ (Male Tigers), 18 फीमेल बाघ (Female Tigers) और 19 शावक (Cubs) शामिल हैं। इन बाघों में से एक बाघ ST 2402 का रेडियो कॉलर अभी भी लगा हुआ है। यह बाघ जनवरी में दौसा बांदीकुई (Dausa Bandikui) क्षेत्र में पहुंच गया था, जहां वन विभाग की टीम पर उसने हमला किया था। बाद में उसे ट्रेंकुलाइज कर रेडियो कॉलर लगाया गया और फिर सरिस्का में छोड़ा गया।

 

FAQ

1. सरिस्का में बाघों पर रेडियो कॉलर क्यों लगाए जा रहे हैं?
सरिस्का के बाघों की निगरानी बढ़ाने और उनके मूवमेंट को ट्रैक करने के लिए रेडियो कॉलर लगाए जा रहे हैं, ताकि इन बाघों की सुरक्षा और मानव-बाघ संघर्ष को रोका जा सके।
2. सरिस्का में बाघों को रेडियो कॉलर लगाने से क्या फायदा होगा?
रेडियो कॉलर लगाने से बाघों की दिशा, मूवमेंट और गतिविधियों की सटीक जानकारी मिल सकेगी, जिससे वन विभाग उनके ऊपर सही निगरानी रख सकेगा और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।
3. सरिस्का में बाघों की कुल संख्या कितनी है?
वर्तमान में सरिस्का टाइगर रिजर्व में 48 बाघ हैं, जिनमें 11 मेल बाघ, 18 फीमेल बाघ, और 19 शावक शामिल हैं।

 

 

 

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