टाइगर काॅरिडोर में भी सुरक्षित नहीं बाघ, शिकारियों ने कबूली कई वारदातें

राजस्थान के रणथम्भौर से निकलकर मध्यप्रदेश में बाघों के शिकार होने की घटना सामने आई है। शिकारियों ने तीन बाघों और तेंदुओं के शिकार की बात स्वीकारी है। शिकारियों के गिरोह की गिरफ्तारी के बाद, इन बाघों की पहचान और उनके रणथम्भौर से संबंध खोजा जा रहा है।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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राजस्थान और मध्यप्रदेश के बॉर्डर पर बाघों के शिकार की खबर ने वन्यजीव संरक्षण को लेकर चिंता में डाल दिया है। शिकारियों को सवाईमाधोपुर, श्योपुर और करहाल मार्ग पर घेराबंदी कर पुलिस और वन विभाग की संयुक्त टीम के द्वारा गिरफ्तार किए गए हैं। इस गिरफ्तारी के दौरान शिकारियों ने तीन तेंदुए और तीन बाघों के शिकार की बात कबूली है। शिकारियों के खिलाफ यह कार्रवाई राज्य टाइगर स्ट्राइक फोर्स, शिवपुरी, श्योपुर और रणथंभौर नेशनल पार्क की संयुक्त टीम द्वारा की गई। 

शिकारियों के गिरोह का खुलासा

गिरफ्तार किए गए शिकारियों में दौजी भील, सुनीता भील, राजाराम मोगया और अन्य शामिल हैं। इन शिकारियों ने पूछताछ में बताया कि वे लंबे समय से इन बाघों का शिकार कर रहे थे। फॉरेंसिक रिपोर्ट से इस बात की पुष्टि भी हो चुकी है कि इन बाघों का शिकार हुआ था। 

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रणथंभौर में आसान है बाघों का शिकार

रणथंभौर नेशनल पार्क से निकलकर कई बाघ-बाघिन मध्यप्रदेश के जंगलों में पहुंच चुके हैं। बाघों की यह खोज मध्यप्रदेश के कूनो और माधव नेशनल पार्क में की गई थी। इन बाघों की खोज के बीच कई बाघ-बाघिन लापता हैं, जिनमें बाघिन टी-79, टी-131, टी-138, टी-139 और टी-2401 शामिल हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ अजय दुबे के अनुसार, ये बाघ रणथम्भौर से निकलकर कूनो और माधव नेशनल पार्क की ओर जाते हैं, जिससे इन बाघों के शिकार का संबंध रणथम्भौर से हो सकता है। 

टाइगर काॅरिडोर में भी सुरक्षित नहीं बाघ

रणथम्भौर से कूनो और माधव नेशनल पार्क तक प्राकृतिक टाइगर काॅरिडोर है। इसमें कई बाघ और बाघिनों का मूवमेंट लगातार बना रहता है। राजस्थान और मध्यप्रदेश दोनों ओर के वन विभाग के अधिकारी लगातार इस काॅरिडोर पर नजर रखते है। इसके बाद भी शिकारी इस संरक्षित क्षेत्र को निशाना बनाकर बाघ और तेंदूओं का शिकार कर रहे है। 

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बाघों के अवशेषों की बंगलूरू में जांच

राजस्थान और मध्यप्रदेश के वन विभागों ने बाघों के शिकार की जांच शुरू कर दी है। शिकारियों के गिरोह से बरामद बाघों के अवशेषों को बंगलूरू के नेशनल इंस्टिटयूट ऑफ बॉयोलोजिकल साइंस में भेजा गया है ताकि बाघों की पहचान की जा सके। 

 

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