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भारत की प्रशासनिक सेवाओं में कई ऐसे अधिकारी हुए हैं जिन्होंने न केवल अपनी कार्यकुशलता बल्कि अपने व्यक्तित्व, विचारधारा और समाज के प्रति दृष्टिकोण से एक मिसाल कायम की है। इन्हीं में से एक हैं आईएएस राघवेंद्र सिंहजिन्होंने कठिनाइयों, चुनौतियों और अवसरों को गले लगाते हुए उन्हें अपनी ताकत बनाया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
राघवेन्द्र सिंह का जन्म उत्तरप्रदेश के मल्हारगंज में हुआ। साधारण परिवार में जन्म लेने वाले राघवेन्द्र ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई भी यहीं से की। गोरखपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने भौतिकी में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली (जेएनयू) से राजनीति विज्ञान में एम.ए. और एमफिल की डिग्रियाँ हासिल कीं। उनकी पत्नी भी आईएएस अधिकारी हैं। परिवार से मिले सहयोग और खुद की मेहनत ने उनके करियर की नींव मजबूत की।
आसान नहीं थी यूपीएससी की राह
जेएनयू में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने यूपीएससी (UPSC) की तैयारी शुरू की। हिंदी माध्यम से आने के कारण शुरुआती सफर आसान नहीं था। लेकिन राघवेन्द्र ने उन्होंने इस चुनौती को अवसर में बदला। 2012 में उनका चयन आईपीएस में हुआ, परंतु वे यहीं रुकने वाले नहीं थे। अगले ही वर्ष 2013 में उन्होंने 12वीं रैंक हासिल की और आईएएस बने। शुरुआत में उन्हें बिहार कैडर मिला, लेकिन 2020 में उनका कैडर बदलकर मध्य प्रदेश कर दिया गया। वे कहते हैं—यूपीएससी की तैयारी केवल परीक्षा पास करने का साधन नहीं है, यह इंसान को मानसिक रूप से मजबूत बनाती है और जीवन की चुनौतियों से लड़ने की शक्ति देती है। लेकिन इसके लिए धैर्य और तत्परता की जरूरत्त होती है।
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साहित्य से लगाव: लेखक के रूप में पहचान
आईएएस राघवेंद्र सिंह सिर्फ एक प्रशासनिक अधिकारी नहीं, बल्कि संवेदनशील लेखक भी हैं। हाल ही में उन्होंने ‘615 पूर्वांचल हॉस्टल’ नामक उपन्यास लिखा है, जो जेएनयू में बिताए उनके छात्र जीवन पर आधारित है। उनका कहना है- अफसर होने के नाते जो बातें मैं बोल नहीं पाता, उन्हें अपनी कहानियों के जरिए कह पाता हूँ। उनकी इस किताब को लोग खूब पसंद कर रहे है।
यह किताब जेएनयू के कैंपस, हॉस्टल जीवन, सीनियर-जूनियर संबंध, शैक्षणिक खोज और प्रेम जैसी अनुभूतियों को जीवंत रूप में प्रस्तुत करती है। किताब का नाम ‘615 पूर्वांचल हॉस्टल’ उस बस से जुड़ा है जो जेएनयू को दिल्ली से जोड़ती है और जिसने अनगिनत युवाओं की ज़िंदगी को गढ़ा है।
धैर्य और मेहनत ही सफलता की कुंजी
आईएएस राघवेंद्र सिंह का मानना है कि धैर्य और मेहनत के बिना सफलता संभव नहीं। वे कहते हैं—यूपीएससी सिर्फ़ एक परीक्षा नहीं बल्कि आत्म-अनुशासन और धैर्य का सफर है। यह तैयारी इंसान को ऐसा बना देती है कि वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में बैठकर खाली नहीं रह सकता। उनके अनुसार, सफलता और असफलता परीक्षा के दो पहलू हैं। असली ज़रूरत है अपनी ताकत और कमज़ोरियों को पहचानकर सही दिशा में मेहनत करने की। मेहनत, सही स्ट्रेटेजी के साथ यह परीक्षा पास की जा सकती है।
पढ़ाई और गाने के हैं शौकीन
राघवेंद्र सिंह को पढ़ने का गहरा शौक है। वे विशेषकर आर्थिक विषयों पर पढ़ते हैं ताकि उन्हें प्रशासनिक निर्णयों में लागू कर सकें। इसके अलावा उन्हें गाने सुनने का भी शौक है। लेखकों में उन्हें प्रेमचंद, धर्मवीर भारती, अज्ञेय और विनोद कुमार शुक्ल पसंद हैं। कवियों में निराला और दिनकर उनके प्रिय हैं।
सावधानी से करें सोशल मीडिया का इस्तेमाल
आज के दौर में जहाँ सोशल मीडिया युवाओं की सोच पर गहरा असर डालता है, वहीं राघवेंद्र सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। उनका मानना है कि सोशल मीडिया को एक साधन की तरह इस्तेमाल करें, न कि ऐसा माध्यम जो आपके फैसलों को नियंत्रित करे।
पिता रहे सबसे बड़ी प्रेरणा
राघवेंद्र सिंह कहते हैं कि सफलता की खबर सुनकर हमेशा शांत रहने वाले उनके पिता की आंखों में पहली बार खुशी के आंसू आए। यह उनके लिए जीवन का सबसे यादगार पल था। उनका मानना है कि हर बच्चे की सफलता में पिता की भूमिका सबसे अहम होती है।
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करियर एक नज़र
नाम: राघवेंद्र सिंह
जन्मस्थान: मल्हारगंज, उत्तरप्रदेश
एजुकेशन: एमए, एम फिल
बैच: 2014
केडर: मध्यप्रदेश
पदस्थापना
आईएएस राघवेंद्र सिंह वर्तमान में आगर मालवा के कलेक्टर हैं। इसके पहले वो अलीरजपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। 2020 में मध्य प्रदेश केडर मिलने के पहले वो बिहार केडर में थे। जहां वो मोतीगंज, भागलपुर और बक्सर में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
आईएएस राघवेंद्र सिंह की कहानी संघर्ष, समर्पण और संवेदनशीलता का संगम है। एक तरफ वे एक कुशल प्रशासक हैं, तो दूसरी ओर संवेदनशील लेखक भी। उनकी सोच, उनके काम और उनकी लेखनी यह साबित करती है कि अगर संकल्प दृढ़ हो और मेहनत सच्ची हो, तो सफलता मिलना तय है।
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