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दक्षिण एशिया की जीवनरेखा गंगा इन दिनों हजार साल के सबसे बड़े संकट से जूझ रही है। एक नए अध्ययन ने यह खुलासा किया है कि गंगा नदी पिछले 1300 वर्षों में अभूतपूर्व दर से सूख रही है।
यह परिवर्तन मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है। thesootr Prime में आज इसी समस्या के बारे में विस्तार से बात करेंगे।
संकट में गंगा नदी
भारत की पहचान, संस्कृति और आस्था का पर्याय मानी जाने वाली गंगा नदी आज एक ऐसे संकट से जूझ रही है, जिसे समझना और सुलझाना बेहद जरूरी है।
सदियों से गंगा को "मां" का दर्जा दिया गया है। लेकिन अब वैज्ञानिक शोध यह स्पष्ट कर रहे हैं कि गंगा नदी का प्रवाह पिछले 1300 साल के इतिहास में पहले कभी इतना कमजोर नहीं हुआ था, जितना कि अब है।
गंगा, जिसे करोड़ों लोग न केवल धार्मिक दृष्टि से पूजते हैं, बल्कि अपने जीवन-यापन का आधार भी मानते हैं, आज जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के दबाव में लगातार सूख रही है। एक नई स्टडी ने हाल ही में इस संकट पर गंभीर चेतावनी दी है।
गंगा नदी का परिचय
लंबाई: लगभग 2,525 किलोमीटर
जलग्रहण क्षेत्र: लगभग 8,61,404 वर्ग किलोमीटर
भारत के 5 राज्यों से होकर गुजरती है
लगभग 60 करोड़ लोगों की जीवनरेखा
अध्ययन से बड़ा खुलासा
आईआईटी गांधीनगर और एरिज़ोना यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर गंगा नदी की ‘हाइड्रोलॉजिकल हिस्ट्री’ यानी जल प्रवाह के पिछले रिकॉर्ड का पुनर्निर्माण किया। इस शोध से सामने आया कि वर्ष 1990 के बाद से गंगा के जल प्रवाह में तेजी से गिरावट आई है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह गिरावट मात्र प्राकृतिक विविधता का परिणाम नहीं है, बल्कि इसमें मानवजनित कारक (land use changes, groundwater usage) और वैश्विक जलवायु परिवर्तन की बड़ी भूमिका है।
अध्ययन के मुताबिक, यह 1300 वर्षों में दर्ज की गई सबसे बड़ी गिरावट है। यानी, आज गंगा नदी का संकट किसी सामान्य उतार-चढ़ाव की वजह से नहीं, बल्कि मानव हस्तक्षेप और पृथ्वी की बदलती जलवायु का साफ संकेत है।
क्यों सूख रही है गंगा
इस प्रश्न का उत्तर कई परतों में छिपा है। गंगा का घटता जल प्रवाह अचानक नहीं आया, इसके पीछे कई आपस में जुड़े कारण हैं-
कमजोर मानसून: मानसून भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे अहम मौसमी बदलाव है।
जहां पहले वर्षा स्थिर और भरोसेमंद होती थी, वहीं अब मानसून कमजोर पड़ता जा रहा है। कम बारिश का सीधा असर गंगा जैसी नदियों पर देखा जा रहा है।
मानव-निर्मित परिवर्तन: बढ़ता शहरीकरण, कृषि भूमि का विस्तार और भूजल का अत्यधिक दोहन गंगा की धाराओं को कमज़ोर कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन: हिंद महासागर का तेज़ी से गरम होना मानसून की लय को बिगाड़ रहा है। वहीं, एयरोसोल प्रदूषण बादलों की संरचना और बरसात की मात्रा को प्रभावित कर रहा है।
इतिहास जो सबक देता है
अध्ययन में गंगा के प्रवाह का रिकॉर्ड वर्ष 700 ईस्वी से तुलना के लिए खंगाला गया। यह पता चला कि 18वीं शताब्दी में बंगाल अकाल जैसे ऐतिहासिक घटनाक्रम गंगा बेसिन में लंबे सूखे से जुड़े थे।
लेकिन 2004 से 2010 तक जो सूखा पड़ा, वह 1300 साल में सबसे भीषण था। इतना भयानक संकट लिखित इतिहास से लेकर मौजूदा विज्ञान तक में पहले कभी दर्ज नहीं हुआ था।
किसानों, मछुआरों और समाज पर असर
गंगा नदी का जल सिर्फ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व नहीं रखता, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। गंगा के किनारे खेती करने वाले लाखों किसान बारिश और नदी के पानी पर निर्भर हैं। नदी के कमजोर पड़ने से-
धान, गेंहू जैसे फसलों की पैदावार घटेगी।
मछुआरों की आमदनी बुरी तरह प्रभावित होगी।
ग्रामीण इलाकों में पीने योग्य जल संकट बढ़ जाएगा।
पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाएगा।
गंगा का संकट सीधे तौर पर भारत की खाद्य सुरक्षा, जल आपूर्ति और पर्यावरण को प्रभावित करने वाला है।
IIT रुड़की ने भी किया है शोधIIT रुड़की के शोधकर्ताओं ने गंगा नदी के ग्रीष्मकालीन प्रवाह (गर्मियों में) का अध्ययन किया है। इस शोध के अनुसार गंगा में गर्मियों के दौरान जो जल प्रवाह होता है, वह हिमालयी हिमनदों के पिघलने से कम, बल्कि मुख्य रूप से भूजल (Groundwater) की वजह से होता है। भूजल गंगा के मध्य भाग में जलस्तर को लगभग 120% तक बढ़ाता है। यह अध्ययन गंगा के जल स्रोतों की समझ में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाता है और गंगा संरक्षण के लिए स्थायी जल प्रबंधन की जरूरत पर जोर देता है। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि गंगा नदी का गर्मीयों में करीब 58% पानी वाष्पीकरण के कारण समाप्त हो जाता है, जो जल संसाधन प्रबंधन के लिए एक चिंताजनक तथ्य है। |
भविष्य की चेतावनी और जलवायु मॉडल की नाकामी
अध्ययन ने यह भी दिखाया कि मौजूदा जलवायु मॉडल गंगा के तेजी से सूखते प्रवाह को सही तरीके से पकड़ नहीं पा रहे। ये मॉडल भविष्य की बारिश और गीले मौसम की स्थिति का अनुमान तो लगाते हैं, लेकिन हालिया “लॉन्ग-टर्म ड्राई ट्रेंड” यानी सूखते रुझान को समझने में विफल हैं।
इसका मतलब है कि नीति-निर्माताओं और सरकार को जलवायु मॉडल पर पूरी तरह निर्भर रहने के बजाय, वास्तविक अध्ययन और मानवजनित बदलावों को ध्यान में रखते हुए जल प्रबंधन नीतियां बनानी चाहिए।
अब क्या करना होगा?
स्टडी के निष्कर्ष साफ कहते हैं कि गंगा बेसिन की आबादी दुनिया के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। अगर अभी कदम नहीं उठाए गए तो—
जल आपूर्ति की समस्या गहराएगी।
कृषि उत्पादन घटेगा।
करोड़ों लोगों की आजीविका खतरे में पड़ेगी।
गंगा का प्रवाह स्थायी रूप से कमजोर हो जाएगा।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके लिए दो स्तर पर काम जरूरी है:
प्राकृतिक संरक्षण – जंगल, जलस्रोतों की रक्षा, वर्षा जल संचयन और साफ-सफाई जैसी बुनियादी गतिविधियां।
मानव प्रयास – रिसाइक्लिंग, भूजल का नियंत्रित दोहन, प्रदूषण घटाना और सतत विकास आधारित नीति।
गंगा का भविष्य, यानी हमारा भविष्य
गंगा का सवाल सिर्फ एक नदी का सवाल नहीं है। यह भारत की संस्कृति, आस्था, खेती, अर्थव्यवस्था और करोड़ों लोगों के जीवन का सवाल है। अगर गंगा सूखती है, तो इसका सीधा असर हर भारतीय पर पड़ेगा।
आज गंगा के सामने जो संकट है, वह भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक चेतावनी है कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ कितना महंगा साबित हो सकता है। गंगा (गंगा की सफाई) का अस्तित्व बचाना हमारे लिए अस्तित्व का ही प्रश्न है।
Reference:
IIT Gandhinagar Research
University of Arizona Study
PNAS (Proceedings of the National Academy of Sciences)
The Hindu