/sootr/media/media_files/2025/05/18/ccd0WtqPA0IeI8JPKP5f.jpg)
Laila Kabir Photograph: (thesootr.com)
राजनीति में सिर्फ उठाने- गिराने की साजिशें ही नहीं रची जातीं, कभी- कभार लव- स्टोरीज भी परवान चढ़ती हैं। ऑक्सफोर्ड से शिक्षित विद्वान महिला Laila kabir का निधन हो गया। हिंदी के मीडिया में उनके मरने की सूचना खबर के लायक न थी, मगर उनका होना जॉर्ज फर्नांडिज़ के दौर में राजनीति की रूमानियत होने जैसा था। लैला कबीर की जिंदगी किसी सुपरहिट फिल्म से कम न थी। ऐसी फिल्म, जिसमें रोमांस था। संघर्ष था। सौतन थी। त्याग और बलिदान भी था…
पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिज़ और उनकी जीवन संगिनी लैला कबीर की कहानी भारतीय राजनीति से कहीं अधिक है। एक ऐसी प्रेम कहानी, जिसमें जीवन के हर उतार-चढ़ाव को प्यार और समझदारी से जिया गया। हाल ही में 15 मई 2025 को, लंबे संघर्ष के बाद Laila kabir ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह 88 वर्ष की थीं और लगभग दो साल पहले उन्हें कैंसर का पता चला था। जॉर्ज का देहांत 2019 में ही हो चुका था, लेकिन उनकी प्रेम कथा ने समय की सीमा को पार कर एक अमर मिसाल कायम की है। जॉर्ज फर्नांडिज़ प्रेम कहानी
प्रतिष्ठित परिवार में जन्मी लैला और उनका वैश्विक दृष्टिकोण
Laila kabir का जन्म एक ऐसे प्रतिष्ठित और शिक्षित परिवार में हुआ, जिसने उनकी सोच को व्यापक और संवेदनशील बनाया। उनके पिता हुमायूं कबीर ने नेहरू सरकार में शिक्षा मंत्री का पद संभाला था। वे खुद राजनीति और समाज में प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद, लैला अपने देश लौट आईं और सामाजिक कार्यों में जुट गईं। जहां उन्होंने महिलाओं और बच्चों के लिए आवाज़ उठाई।
दोनों का जीवन एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न पृष्ठभूमि का था — लैला मुस्लिम पिता और बंगाली हिंदू मां की बेटी थीं, तो जॉर्ज कर्नाटक के एक कैथोलिक परिवार से। फिर भी उनकी आत्माएं इतनी गहराई से जुड़ी थीं कि जीवन के दो अलग किनारे, एक साथ एक ही नाव में सलीके से चल पाए।
/sootr/media/media_files/2025/05/18/pup0pRaBbDJyawW6BfDv.jpg)
पहली मुलाकात: एक फेयरवेल फ्लाइट और दिल की पहली धड़कन
1971 की एक खुशनुमा सुबह, कोलकाता एयरपोर्ट पर सांसद जॉर्ज फर्नांडिज़ दिल्ली जाने वाली फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे। इसी फ्लाइट में साथ में बैठी थीं Laila kabir , जो रेड क्रॉस में असिस्टेंट डायरेक्टर थीं।
पहली नजर की मुलाकात में दोनों के बीच एक अनोखा आकर्षण हुआ। बातचीत के बीच, दोनों के दिलों ने एक-दूसरे को महसूस किया, और दिल्ली पहुंचते-पहुंचते इस नई दोस्ती ने गहराई पकड़ ली।
सिर्फ तीन महीनों की यह प्यारी दोस्ती जुलाई 1971 में शादी के खूबसूरत बंधन में बदल गई, जब दोनों ने अपनी जिंदगी को साथ बिताने का वादा किया।
प्यार की परीक्षा: इमरजेंसी का दौर और दूरियां
1974 में उनके घर बेटे शॉन का आगमन हुआ, जिसने उनके रिश्ते को और मजबूत किया। लेकिन 1975 में जब देश पर इमरजेंसी लगी, तो जॉर्ज ने देश के लिए अंडरग्राउंड होने का फैसला किया। इसी बीच, लैला अपने छोटे बेटे के साथ अमेरिका चली गईं, लेकिन उनके दिलों के बीच का नाता टूट नहीं पाया। लैला ने दूर से ही जॉर्ज का साहस बढ़ाया, उनकी सुरक्षा के लिए चिंतित रहीं और इमरजेंसी के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई।
1977 में जेल से चुनाव लड़ कर जॉर्ज की जीत ने उनके संघर्षों को सार्थक किया, और इस दौरान भी लैला ने कभी पीछे हटकर साथ नहीं छोड़ा।
क्यों नाराज हो गई थी उनकी मित्र मंडली?
Laila kabir और George Fernandes ने 22 जुलाई 1971 को शादी की थी। उस वक्त लैला भारतीय रेड क्रॉस में सहायक निदेशक के पद पर थीं। जॉर्ज ने पहले शादी न करने की कसम खाई थी, इसलिए जब उन्होंने लैला के साथ सगाई की घोषणा की, तो उनके अविवाहित दोस्तों की मंडली में नाराजगी फैल गई थी। इसके बावजूद दोनों ने अपने फैसले पर अडिग रहते हुए शादी कर ली। जॉर्ज फर्नांडीस का निधन 2019 में हुआ था।
/sootr/media/media_files/2025/05/18/jaya-jetli-george-fernandes-324015.jpg)
जटिल रिश्ते और 25 साल का अलगाव, पर तलाक नहीं
1984 के बाद, कुछ व्यक्तिगत मतभेदों के चलते लैला और जॉर्ज ने अलग रहने का फैसला किया। मगर इस लंबे समय तक साथ न रहने के बावजूद, उन्होंने कभी तलाक़ का रास्ता नहीं अपनाया। दोनों ने एक-दूसरे के राजनीतिक सफर में सहयोग देना जारी रखा। लैला ने बिहार में जॉर्ज के चुनाव प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाई और कभी भी सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के खिलाफ कोई नकारात्मक बात नहीं कही। उनका यह रिश्ता दुनिया को दिखाता है कि प्यार में मजबूती का मतलब हमेशा साथ रहना नहीं होता, बल्कि सम्मान और समझदारी से एक-दूसरे के लिए खड़े रहना भी है।
जॉर्ज का राजनीतिक सफर और जया जेटली का प्रभाव
जॉर्ज ने बिहार के मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा और वहां की जनता ने उन्हें खूब सम्मान दिया। लैला ने भी वहां जाकर चुनाव प्रचार किया और उनकी जीत में अहम भूमिका निभाई। बाद में जब जॉर्ज को उद्योग मंत्री बनाया गया, तब उनकी मुलाकात Jaya Jetli से हुई, जो उस वक्त के उद्योग सचिव की पत्नी थीं। धीरे-धीरे जया का जॉर्ज के निजी जीवन में प्रभाव बढ़ने लगा और लैला का उनसे संबंध कमजोर होने लगा। लैला ने 1984 में दिल्ली में शोक के समय घर छोड़ दिया, लेकिन कभी भी उन्होंने तलाक नहीं लिया।
/sootr/media/media_files/2025/05/18/jaya-jetli-george-fernandes-859663.jpg)
पुनर्मिलन: बेटे की मिन्नत और फिर से साथ
2009 में, जब जॉर्ज की याददाश्त कमजोर होने लगी और वे अकेले पड़ गए, तब उनके बेटे शॉन के आग्रह पर लैला वापस आईं। उन्होंने न केवल पति की देखभाल की, बल्कि उनके अंतिम दिनों को सम्मान और स्नेह से संजोया। वे एक सच्ची जीवनसंगिनी की तरह जॉर्ज के साथ रहीं, जब तक 2019 में उनका देहांत हुआ।
लैला कबीर की कहानी हमें क्या सिखाती है?
लैला और जॉर्ज की कहानी यह दिखाती है कि सच्चा प्यार और सम्मान सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मतभेदों से ऊपर होता है। जब जीवन के तूफान आते हैं, तब भी रिश्तों की जड़ों को मजबूत बनाए रखना ही असली समर्पण और समझदारी है। लैला कबीर न केवल जॉर्ज की पत्नी, बल्कि उनकी सबसे बड़ी समर्थक और साथी थीं, जिन्होंने अपने प्यार को सदाबहार बना रखा।
FAQ
ये खबरें भी पढ़ें:
धर्मांतरण का खेल : प्रार्थना सभा में कहा, बदल लो धर्म ठीक हो जाएगी बीमारी
नरेंद्र मोदी किराए की कार से अटल जी की सभा के लिए जुटाते थे भीड़
तुम मुझे 11 सांसद दो, मैं तुम्हें छत्तीसगढ़ दूंगा : अटल बिहारी वाजपेयी
विदा होते ही दुल्हन ने दूल्हे के सामने रखी शर्त, भाई-बहन की तरह रहना पड़ेगा, जानें क्यों...
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, दोस्तों, परिवारजनों के साथ 🤝 शेयर करें 📢🔄
🤝💬👫👨👩👧👦