भारत का हर 10वां बच्चा मोटापे का शिकार, यूनिसेफ की रिपोर्ट में नई चेतावनी

भारत में मोटापा एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बन चुका है। इसमें हर 10वां बच्चा प्रभावित है। यूनिसेफ की रिपोर्ट 2025 में इस बढ़ते संकट की चिंता जताई गई है। पढ़ें क्या हैं इसके कारण और समाधान।

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जहां कभी मोटापे को सम्पन्नता का प्रतीक समझा जाता था, अब यह गंभीर बीमारी बन चुका है। क्या आप जानते हैं कि अब भारत का हर 10वां बच्चा मोटापे का शिकार है? यह खुलासा यूनिसेफ रिपोर्ट 2025 (Child Nutrition Report 2025) में हुआ है। Thesootr Prime में आज हम इसी के बारे में विस्तार से बात करेंगे। विशेषज्ञों ने साफ कहा कि अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में मोटापा भारत की सबसे बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बन जाएगा।

मोटापा: सम्पन्नता से बीमारी तक

11 सितंबर को दिल्ली में आयोजित यूनिसेफ की कॉन्फ्रेंस में खुलासा हुआ कि-

दुनिया भर में हर 10 में से 1 बच्चा, यानी लगभग 18.8 करोड़ बच्चे आज मोटापे से ग्रस्त हैं।

पहली बार, मोटापे की दर ने बच्चों में अल्पपोषण (अल्प वजन) को पीछे छोड़ दिया है।

दक्षिण एशिया, जहां साल 2000 में बच्चों में अधिक वजन का प्रचलन सबसे कम था, वहीं 2022 तक यह दर पांच गुना बढ़ चुकी है।
इस वैश्विक संकट में भारत भी तेजी से जुड़ रहा है।

भारत में मोटापे का बढ़ता बोझ

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) और अन्य अध्ययनों से मिले आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं:

पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में अधिक वजन और मोटापा 127% बढ़ा, 2005-06 में 1.5% से बढ़कर 2019-21 में 3.4% तक।

किशोर लड़कियों में 125% और किशोर लड़कों में 288% की वृद्धि दर्ज की गई।

वयस्क महिलाओं में मोटापा 91% और पुरुषों में 146% तक बढ़ गया।

अनुमान है कि 2030 तक भारत में 2.7 करोड़ से अधिक बच्चे और किशोर मोटापे से पीड़ित होंगे, जो वैश्विक बोझ का लगभग 11% होगा।

केस स्टडी 1:

मध्य प्रदेश के ग्रामीण आदिवासी ब्लॉकों में बदलाव

रीवा और मंडला जिलों के जनजातीय बहुल इलाकों में ICMR-Regional Medical Research Centre की 2022–23 की रिपोर्ट में यह सामने आया कि पहले जहां, चिंता कुपोषण और अल्प वजन की थी, अब लगभग 9–11% बच्चों में मोटापे के लक्षण दिखने लगे हैं।

इसका कारण सरकारी योजनाओं (PM-POSHAN, ICDS) से मिलने वाली उच्च कैलोरी, लेकिन कम पोषण वाली खाद्य वस्तुएं (जैसे पका हुआ चावल, आलू और तेल आधारित भोजन) और बाजार में सस्ते पकौड़े, नमकीन, पैकेज्ड स्नैक्स की आसान उपलब्धता है।

बच्चों की पारंपरिक दौड़-खेल और श्रम आधारित दिनचर्या को अब मोबाइल और टीवी स्क्रीन ने काफी हद तक पीछे छोड़ दिया है।

निष्कर्ष:यह बदलाव दिखाता है कि भारत के ग्रामीण और कमजोर वर्गों में भी “अल्प पोषण से अधिक पोषण” (कुपोषण से मोटापा) की ओर संक्रमण शुरू हो चुका है।

केस स्टडी 2:

दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में मोटापा

दिल्ली पब्लिक स्कूलों और कुछ नामी प्राइवेट संस्थानों में 2023 में इंडियन पेडियाट्रिक एसोसिएशन द्वारा किए गए सर्वे में पाया गया कि
6 से 14 साल के बच्चों में करीब 28% बच्चे अधिक वजन या मोटापा से ग्रस्त हैं।

इन बच्चों की दिनचर्या में औसतन 4 से 5 घंटे स्क्रीन टाइम और केवल 30–40 मिनट शारीरिक गतिविधि शामिल है।

बच्चों के टिफिन और लंच में बर्गर, चिप्स, कोल्ड ड्रिंक, पैकेज्ड फूड प्रमुख थे, जबकि सब्जियों और पारंपरिक भोजन की हिस्सेदारी 20% से भी कम रही।

निष्कर्ष:शहरी मध्यमवर्गीय परिवारों में आसान विकल्प, फास्ट फूड, और कमी होती आउटडोर एक्टिविटी मोटापे का बड़ा कारण बने हैं।

क्यों बढ़ रहा है मोटापा?

यूनिसेफ रिपोर्ट और विशेषज्ञों के मुताबिक, इसके पीछे कई सामाजिक-आर्थिक और जीवनशैली कारण हैं:

  • फास्ट फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की आसान उपलब्धता।

  • शक्कर युक्त पेय और वसा-नमक से भरपूर स्नैक्स का बढ़ता सेवन।

  • जंक फूड विज्ञापन जिन्हें बच्चे टीवी, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर देख रहे हैं।

  • शारीरिक गतिविधि घटने और स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों की दिनचर्या बिगड़ना।

  • मातृ पोषण की कमी, स्तनपान की कमी और लैंगिक-सामाजिक असमानताएं, जहां महिलाएं और लड़कियां अक्सर पोषण से वंचित रह जाती हैं।

आंकड़े जो डराते हैं

यूनिसेफ के एक पोल के अनुसार, 75% युवा हर सप्ताह अस्वास्थ्यकर खाद्य विज्ञापनों के संपर्क में आते हैं।

पांच में से तीन युवाओं ने माना कि इन विज्ञापनों के बाद उनमें उत्पाद खाने की इच्छा बढ़ती है।

भारत का अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड बाजार 2006 में 900 मिलियन डॉलर से छलांग लगाकर 2019 में 37.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।

स्पष्ट है कि अस्वास्थ्यकर आहार आज बच्चों और युवाओं की भोजन की आदतों को गहराई से प्रभावित कर रहा है।

मोटापे की आर्थिक और सामाजिक कीमत

वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन का अनुमान है कि 2019 में मोटापे से जुड़ी लागत करीब 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, यानी भारत की जीडीपी का 1%।

अगर नीतिगत कदम नहीं उठाए गए, तो 2060 तक यह लागत 839 बिलियन डॉलर यानी 2.5% जीडीपी तक पहुंच सकती है।

मोटापे से जुड़ी बीमारियां (डायबिटीज, हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर, कैंसर) न केवल पारिवारिक बचत को खत्म करती हैं बल्कि बच्चों के आत्मसम्मान, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिति को भी प्रभावित करती हैं।

सरकार की कोशिशें और पहल

भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई कदम उठाए हैं:

  • फिट इंडिया मूवमेंट और ईट राइट इंडिया कैम्पेन

  • पोषण अभियान 2.0

  • स्कूल आधारित स्वास्थ्य एवं वेलनेस कार्यक्रम

  • दफ्टरों और स्कूलों में चीनी और तेल की खपत घटाने के लिए गाइडलाइन

  • WHO की अनुशंसा पर ट्रांस-फैट सीमित करने वाली नीति अपनाने वाला भारत पहला निम्न-मध्यम आय वाला देश बना।

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में तेल की खपत 10% घटाने की अपील भी की थी।

मोटापे पर क्या सोचते हैं विशेषज्ञ

भारत में मोटापा की चुनौती अब केवल शहरी वर्ग तक सीमित नहीं है। गांव और छोटे कस्बों के बच्चे भी अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और विज्ञापित खाद्य उत्पादों की चपेट में आ रहे हैं। इसे रोकने के लिए न्यूट्रिशन एजुकेशन को प्राथमिक कक्षाओं में अनिवार्य करना होगा।
- डॉ. आर. हेमलता, डायरेक्टर (ICMR-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन)

बच्चों में मोटापे को गंभीरता से लिए बिना हम भविष्य की स्वस्थ पीढ़ी की कल्पना नहीं कर सकते। बच्चों का मोटापा अब केवल स्वास्थ्य संकट नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक संकट है, जिस पर सरकार और समाज दोनों को तुरंत कदम उठाने होंगे।
- मारी-क्लॉड देजीलेट्स, यूनिसेफ इंडिया की चीफ न्यूट्रिशन

मोटापा एक लाइफस्टाइल डिजीज है और इसकी जड़ें बच्चों की दिनचर्या में हैं। माता-पिता को बच्चों की दिनचर्या में हेल्दी होम-कुक्ड फूड और आउटडोर ऐक्टिविटी को बढ़ावा देना होगा। सरकारें नीतियाँ लाती हैं, लेकिन असली बदलाव परिवार की प्लेट और बच्चे की दिनचर्चा में दिखना चाहिए।
- डॉ. शिखा शर्मा, न्यूट्रिशन एक्सपर्ट और वेलनेस कंसल्टेंट

विशेषज्ञों की सिफारिशें: क्या करना चाहिए?

यूनिसेफ और ICMR-राष्ट्रीय पोषण संस्थान (NIN) सहित कई संस्थानों ने लेट्स फिक्स आवर फूड समूह के अंतर्गत सरकार से मजबूत कदम उठाने की सिफारिश की है:

  • जंक फूड और शक्करयुक्त पेय पर हेल्थ टैक्स लगाया जाए।

  • फ्रंट-ऑफ-पैक पोषण लेबलिंग अनिवार्य की जाए।

  • बच्चों और किशोरों के लिए जंक फूड विज्ञापनों पर नियंत्रण हो।

  • ICDS और PM-POSHAN जैसे कार्यक्रमों में कुपोषण के साथ मोटापे की चुनौती को भी शामिल किया जाए।

  • पोषण साक्षरता और स्किल डेवलपमेंट स्कूल स्तर से बढ़ावा मिले।

निष्कर्ष: अभी कार्रवाई का समय है

यूनिसेफ इंडिया की चीफ न्यूट्रिशन मारी-क्लॉड देजीलेट्स ने स्पष्ट कहा -

भारत में आज अगर सही कदम उठाए गए तो आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य को बचाया जा सकता है।

यह स्पष्ट है कि मोटापा केवल स्वास्थ्य संकट नहीं बल्कि आर्थिक, सामाजिक और भविष्य से जुड़ा सवाल है। बच्चों और युवाओं के लिए सही पोषण और स्वस्थ जीवनशैली सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज, परिवार और बाजार सभी को इसमें अपनी भूमिका निभानी होगी।

स्रोत (References)

  • यूनिसेफ : Child Nutrition Global Report 2025

  • भारत का आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25

  • वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन रिपोर्ट्स

  • इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ, दिल्ली

FAQ

यूनिसेफ की रिपोर्ट में क्या बताया गया है?
यूनिसेफ की चाइल्ड न्यूट्रिशन ग्लोबल रिपोर्ट 2025 के अनुसार, दुनियाभर में हर 10 में से 1 बच्चा (करीब 18.8 करोड़ बच्चे) मोटापे से पीड़ित है। पहली बार मोटापा बच्चों में अल्पपोषण को पीछे छोड़ चुका है और भारत भी इस बढ़ते संकट का हिस्सा है।
भारत में बच्चों और किशोरों में मोटापा किस दर से बढ़ रहा है?
पाँच साल से छोटे बच्चों में 127% तक वृद्धि (2006 में 1.5% से 2021 में 3.4%) किशोर लड़कियों में 125% और किशोर लड़कों में 288% वृद्धि महिलाओं में 91% और पुरुषों में 146% तक मोटापा बढ़ा है। अनुमान है कि 2030 तक भारत में 2.7 करोड़ से ज़्यादा बच्चे और किशोर मोटापे से जूझेंगे।
बच्चों और किशोरों में मोटापा बढ़ने के मुख्य कारण क्या हैं?
फास्ट फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का बढ़ता सेवन शक्करयुक्त पेय और स्नैक्स टीवी, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर जंक फूड विज्ञापन शारीरिक गतिविधियों की कमी और लंबे समय तक स्क्रीन टाइम माताओं और बच्चों में पोषण की कमी और सामाजिक असमानताएँ
भारत का जंक फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड बाजार कितना बढ़ा है?
भारत का अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड बाजार 2006 में 900 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2019 में 37.9 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया। 2011-2021 के बीच इस सेक्टर की औसत वृद्धि दर 13.7% रही।
मोटापे का आर्थिक असर कितना गंभीर है?
वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन के अनुसार, 2019 में मोटापे की आर्थिक लागत भारत की जीडीपी का 1% यानी 29 बिलियन डॉलर थी। यदि तुरंत कदम नहीं उठाए गए तो 2060 तक यह लागत 839 बिलियन डॉलर यानी जीडीपी का 2.5% तक पहुँच सकती है।

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