/sootr/media/media_files/2025/10/09/jp-11-oct-2025-10-09-16-48-04.jpg)
जयप्रकाश नारायण, जिन्हें लोग प्यार से जेपी और लोकनायक कहते हैं। भारत के उन महान नेताओं में से एक हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी देश की आजादी और लोकतंत्र की मजबूती के लिए समर्पित कर दी। उन्होंने आपातकाल के दौरान भारतीय लोकतंत्र की नींव रखने का काम किया। साथ ही, इंदिरा गांधी की सरकार गिराने में भी अहम भूमिका निभाई। 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण की जयंती मनाई जाती है। ऐसे में आइए हम उनकी जयंती पर उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करते हैं। साथ ही, यह भी जानने की कोशिश करते हैं कि वह बिहार के छोटे से गांव से निकलकर कैसे विदेश में पढ़ाई की और वह भारतीय लोकतंत्र में कैसे आए।
बिहार में जेपी का हुआ था जन्म
जयप्रकाश नारायण (जेपी) का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सिताब दियारा में हुआ था। यह गांव बिहार के सारण जिले में गंगा नदी के किनारे स्थित है। यह इलाका अक्सर बाढ़ की चपेट में रहता था, जिसके कारण जेपी का परिवार कई बार इधर-उधर स्थानांतरित हुआ। जेपी का परिवार कायस्थ समुदाय से था और उनके पिता हरसु दयाल नहर विभाग में एक छोटे अधिकारी थे। उनकी मां फूल रानी देवी घर संभालती थीं। जेपी अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। बचपन से ही उनमें नेतृत्व की खासियत दिखती थी। गांव में बच्चों के बीच वे हमेशा आगे रहते, चाहे खेल हो या कोई छोटी-मोटी गतिविधि।
शुरुआती पढ़ाई गांव में
जेपी की शुरुआती पढ़ाई उनके गांव में ही हुई। नौ साल की उम्र में 1911 में वे पटना चले गए और वहां सातवीं कक्षा में दाखिला लिया। पटना में वे सरस्वती भवन छात्रावास में रहे, जहां उनकी मुलाकात कई बड़े छात्रों से हुई। इनमें बिहार के पहले मुख्यमंत्री कृष्ण सिंह और उपमुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिन्हा जैसे लोग शामिल थे। यहीं से जेपी के मन में देश के लिए कुछ करने की भावना जागी। 1918 में जब वे केवल 16 साल के थे, उनका विवाह प्रभावती देवी से हो गया। प्रभावती बिहार के मशहूर स्वतंत्रता सेनानी बृज किशोर प्रसाद की बेटी थीं। शादी के बाद प्रभावती महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम चली गईं, जहां वे गांधीजी के विचारों से प्रभावित हुईं और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुईं। प्रभावती का देहांत 1973 में कैंसर के कारण हुआ, जो जेपी के लिए बहुत बड़ा दुख था।
अबुल कलाम आजाद के एक भाषण से हुए प्रभावित
1919 में, जब जेपी पटना के बिहार नेशनल कॉलेज में पढ़ रहे थे, तब वे मौलाना अबुल कलाम आजाद के एक भाषण से बहुत प्रभावित हुए। उस भाषण में गांधीजी के असहयोग आंदोलन और रॉलेट एक्ट के विरोध की बात थी। इसने जेपी को इतना प्रेरित किया कि उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और बिहार विद्यापीठ में दाखिल हो गए, जो डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने शुरू किया था। यहां उन्होंने गांधीजी के विचारों को गहराई से समझा। लेकिन जेपी की पढ़ाई की चाहत यहीं रुकी नहीं।
1922 में अमेरिका चले गए
1922 में वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। वहां उन्होंने कैलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान की पढ़ाई शुरू की। लेकिन जब फीस बढ़ गई, तो वे पहले आयोवा विश्वविद्यालय, फिर विस्कॉन्सिन और ओहियो स्टेट विश्वविद्यालय गए। पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने कई तरह के काम किए, जैसे अंगूर तोड़ना, फल पैक करना, बर्तन धोना और मैकेनिक का काम। इन अनुभवों ने उन्हें गरीब और मेहनतकश लोगों की जिंदगी को करीब से समझने का मौका दिया।
विस्कॉन्सिन में कार्ल मार्क्स की किताब दास कैपिटल पढ़कर वे समाजवाद की ओर आकर्षित हुए। भारतीय विचारक एम.एन. रॉय के लेखों ने भी उन्हें प्रभावित किया। जेपी ने समाजशास्त्र में एम.ए. और व्यवहार विज्ञान में बी.ए. किया, लेकिन माँ की बीमारी के कारण पीएच.डी. अधूरी छोड़कर 1929 में भारत लौट आए। रास्ते में लंदन में उनकी मुलाकात क्रांतिकारी राजानी पाल्मे दत्त से हुई। अमेरिका की यह यात्रा उनके विचारों को नया आकार देने वाली थी – गांधीजी की अहिंसा और मार्क्स का समाजवाद उनके दिमाग में एक साथ बस गए।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
भारत लौटने के बाद जेपी ने स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह से हिस्सा लिया। 1929 में जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने का न्योता दिया। जेपी ने इसे स्वीकार किया और गांधीजी को अपना गुरु माना। 1930 में गांधीजी के नमक सत्याग्रह में हिस्सा लेते हुए वे नासिक जेल में बंद हुए। वहाँ उनकी मुलाकात राममनोहर लोहिया, मीनू मसानी और अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादी नेताओं से हुई। जेल से रिहा होने के बाद 1934 में उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सीएसपी) की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। इस पार्टी के अध्यक्ष आचार्य नरेंद्र देव बने, और जेपी इसके महासचिव।
1939 में जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो ब्रिटिश वायसराय ने भारत को बिना सहमति के युद्ध में शामिल कर लिया। इसके विरोध में जेपी ने हड़तालें और राजस्व रोकने का आंदोलन चलाया। इसके चलते उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया। लेकिन उनका सबसे बड़ा योगदान 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में देखने को मिला। हजारीबाग जेल में बंद होने के बाद, उन्होंने दीवाली की रात योगेंद्र शुक्ला और सूरज नारायण सिंह जैसे क्रांतिकारियों के साथ जेल की दीवार फांदकर भाग निकले।
नेपाल जाकर उन्होंने आजाद दस्ता बनाया, जो गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग देता था। इस दस्ते ने ब्रिटिश मशीनरी को तोड़ने और ब्रिटिश सेना के भगोड़ों को भर्ती करने का काम किया। 1943 में उन्हें लाहौर किले में बंद किया गया, जहाँ उन्हें भयानक यातनाएँ दी गईं। गांधीजी ने उनकी रिहाई को ब्रिटिश सरकार के साथ समझौते की शर्त बनाया, और 1946 में जेपी रिहा हुए। इस आंदोलन ने उन्हें 'क्रांतिकारी' का दर्जा दिलाया।
स्वतंत्रता के बाद का सफर
1947 में भारत को आजादी मिली, लेकिन जेपी का सफर यहीं नहीं रुका। वे 1947 में ऑल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन के अध्यक्ष बने, जो रेलवे मजदूरों का सबसे बड़ा संगठन था। लेकिन कांग्रेस की दलीय राजनीति से वे खुश नहीं थे। 1948 में उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी छोड़ दी। 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनी, लेकिन 1954 में जेपी ने पूरी तरह से सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया। इसके बाद वे विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में शामिल हो गए। इस आंदोलन में जमींदारों से जमीन लेकर भूमिहीनों को बाँटी जाती थी। जेपी ने अपनी सारी संपत्ति दान कर दी और हजारीबाग में एक आश्रम शुरू किया।
जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल होने का न्योता दिया, लेकिन जेपी ने ठुकरा दिया। 1957 में उन्होंने सोशलिज्म टू सर्वोदय नाम की किताब लिखी, जिसमें समाजवाद से गांधीवादी सर्वोदय की ओर बढ़ने की बात थी। 1959 में इंडियन पॉलिटी का पुनर्निर्माण में उन्होंने चार स्तरों – गांव, जिला, राज्य और केंद्र – पर आधारित विकेंद्रीकृत शासन की बात की, जिसे 'चौखंबा राज' कहा। 1960 के दशक में वे शांति के लिए काम करते रहे, जैसे 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय 'सर्वोदय चाइनीज आक्रामकता का जवाब'। 1965 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला, जो एशिया का नोबेल पुरस्कार माना जाता है।
आपातकाल में निभाई अहम भूमिका
1970 के दशक में देश में भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी चरम पर थी। इससे दुखी होकर जेपी फिर से सक्रिय हुए। 1974 में बिहार के छात्रों ने इन समस्याओं के खिलाफ आंदोलन शुरू किया, जिसे बिहार आंदोलन या जेपी आंदोलन कहा गया। जेपी ने इस आंदोलन का नेतृत्व लिया, लेकिन शर्त रखी कि यह अहिंसक और पूरे देश का आंदोलन होगा। 5 जून 1974 को पटना के गांधी मैदान में 5 लाख लोगों की भीड़ के सामने उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया। इस क्रांति में सात लक्ष्य थे: राजनीतिक (भ्रष्टाचार मुक्त शासन), आर्थिक (सबके लिए समानता), सामाजिक (जातिवाद का अंत), सांस्कृतिक (भारतीय मूल्यों की रक्षा), बौद्धिक (लोगों में जागरूकता), शैक्षणिक (शिक्षा में सुधार) और आध्यात्मिक (नैतिकता का विकास)।
जब इंदिरा गांधी से मांगा इस्तीफा
उन्होंने मशहूर कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता सिंहासन खाली करो कि जनता आती है... पढ़कर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से इस्तीफा मांगा। यह आंदोलन बिहार से गुजरात तक फैला, जहाँ जनता मोर्चा ने कांग्रेस को हराया। 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी ठहराया। जेपी ने सेना और पुलिस से कहा कि वे असंवैधानिक आदेश न मानें। इसके जवाब में 25 जून 1975 को इंदिरा ने आपातकाल लागू कर दिया।
जेपी सहित मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सैकड़ों नेता जेल में डाल दिए गए। चंडीगढ़ जेल में जेपी की किडनी खराब हो गई और उन्हें डायलिसिस पर रहना पड़ा। ब्रिटेन में फ्री जेपी अभियान चला, जिसे नोबेल विजेता फिलिप नोएल-बेकर ने समर्थन दिया। 12 नवंबर 1975 को जेपी रिहा हुए। जेल में उन्होंने प्रिजन डायरी लिखी, जिसमें लोकतंत्र की रक्षा का संदेश था।
77वें जन्मदिन से तीन दिन पहले लोकनायक ने कहा अलविदा
आपातकाल के खिलाफ जेपी का संघर्ष ऐतिहासिक था। 18 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा की। जेपी के नेतृत्व में जनता पार्टी बनी, जिसमें समाजवादी, जनसंघ और कांग्रेस (ओ) जैसे दल शामिल हुए। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी, और मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। जेपी को राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव मिला, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। दुर्भाग्यवश, उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया। मार्च 1979 में उनकी मृत्यु की गलत खबर फैली, जिससे देश शोक में डूब गया। असल में, 8 अक्टूबर 1979 को, अपने 77वें जन्मदिन से ठीक तीन दिन पहले, मधुमेह और हृदय रोग के कारण पटना में उनका निधन हो गया। उनकी शवयात्रा में लाखों लोग शामिल हुए। तत्कालीन सरकार ने सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया।
जेपी को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले
जेपी को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले। 1965 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला, जिसे एशिया का नोबेल पुरस्कार कहा जाता है। 1999 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनके नाम पर पटना का हवाई अड्डा जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा और दिल्ली में लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल है। 2004 में लोकनायक नाम की फिल्म बनी, जिसमें उनके जीवन को दिखाया गया। आगामी फिल्म इमरजेंसी में अभिनेता अनुपम खेर ने उनका किरदार निभाया है। उनकी किताबें, जैसे प्रिजन डायरी और टुवर्ड्स टोटल रेवोल्यूशन, आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। जेपी ने गांधीजी की अहिंसा और मार्क्स के समाजवाद को मिलाकर भारतीय समाजवाद का एक नया रूप दिया। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई और 1977 में लोकतंत्र की रक्षा की। उनके आंदोलन से लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जैसे नेता उभरे। सम्पूर्ण क्रांति का नारा आज भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलनों में गूंजता है। जेपी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा नेता वही है जो सत्ता की लालच न करे और अपना सब कुछ देश के लिए समर्पित कर दे।
11 अक्टूबर की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएं
हर दिन का अपना एक अलग महत्व होता है और 11 अक्टूबर का दिन भी इतिहास (आज की यादगार घटनाएं) में कई महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए दर्ज है।
इस दिन दुनिया में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने इतिहास की दिशा बदल दी। आइए जानते हैं 11 अक्टूबर को भारत और विश्व में घटी कुछ प्रमुख घटनाओं के बारे में, जो आपके सामान्य ज्ञान को बढ़ा सकती हैं।
विश्व में महत्वपूर्ण घटनाएं
2012: अमेरिकी अदालत ने सैमसंग गैलेक्सी नेक्सस की बिक्री पर लगा प्रतिबंध हटा दिया, जिससे यह मामला एप्पल के खिलाफ गूगल के एंड्रॉयड के पक्ष में गया।
2011: न्यूजीलैंड के तट पर एक जहाज एमवी रेन से हुए बड़े तेल रिसाव ने देश की सबसे भयानक पर्यावरण आपदा का रूप ले लिया।
2008: बेल्जियम के एक नेत्रहीन ड्राइवर ने जमीन पर सबसे तेज गति से गाड़ी चलाने का नया विश्व रिकॉर्ड बनाया।
2007: ऑस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री जॉन हॉवर्ड ने कहा कि ऑस्ट्रेलियाई संविधान में मूल ऑस्ट्रेलियाई लोगों की पहचान को तभी शामिल किया जाएगा जब जनमत संग्रह मान्य होगा।
2006: संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में बच्चों का दुरुपयोग "व्यापक और सहनीय" है।
2006: 'सेव द चिल्ड्रन' की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में दस लाख से अधिक बच्चों को कैद किया जा रहा है।
2002: फिनलैंड के वांटा शहर के एक शॉपिंग मॉल में हुए बम हमले में सात लोग मारे गए।
2000: केंटुकी के इंगेज के पास मिसिसिपी नदी में 300 गैलन से अधिक काली कीचड़ बह गई। एक ऊर्जा कंपनी के बांध के ढहने से हुई इस बड़ी पर्यावरण आपदा में लाखों मछलियां मर गईं और सफाई पर लगभग 7.8 करोड़ डॉलर खर्च हुए।
1998: एक सप्ताह की मुद्रा अटकलों के बाद, डॉलर जापानी येन के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर ($116) पर आकर स्थिर हुआ।
1994: अमेरिका के कोलोराडो सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में समलैंगिक विरोधी अधिकारों को असंवैधानिक घोषित किया।
1984:अमेरिकी अंतरिक्ष वैज्ञानिक कैथरीन डी. सुलिवन स्पेस शटल चैलेंजर (मिशन एसटीएस-41-जी) पर अंतरिक्ष में चलने वाली पहली अमेरिकी महिला बनीं। उन्होंने कक्षीय ईंधन भरने के परीक्षण के दौरान यह उपलब्धि हासिल की।
1975: अमेरिकी साप्ताहिक स्केच कॉमेडी शो 'सैटरडे नाइट लाइव' का पहला प्रसारण हुआ।
1968: नासा का पहला तीन-व्यक्ति वाला अंतरिक्ष मिशन 'अपोलो 7' केप कैनावेरल से लॉन्च हुआ। यह अपोलो कार्यक्रम का पहला मानवयुक्त मिशन और पहला अमेरिकी तीन-पुरुष मिशन था। कक्षा से इसका पहली बार टेलीविजन प्रसारण किया गया।
1962: पोप जॉन XXIII ने दूसरा वेटिकन काउंसिल बुलाया, जो 92 साल में पहली रोमन कैथोलिक पारिस्थितिक परिषद थी।
1957: इंग्लैंड के चेशायर में जोडरेल बैंक रेडियो दूरबीन को खोला गया।
1950: पीटर गोल्डमार्क द्वारा विकसित एक रंगीन टेलीविजन प्रणाली (क्षेत्र-अनुक्रमिक रंग प्रणाली) व्यावसायिक उपयोग के लिए अमेरिका की पहली रंगीन टीवी प्रणाली बनी, लेकिन इसे एक साल बाद ही बंद कर दिया गया।
1942: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, केप एग्रॉसेंस की लड़ाई में अमेरिकी जहाजों ने गुआडलकैनल के उत्तर-पश्चिमी तट पर जापानी बेड़े को रोककर हरा दिया। यह बेड़ा हेंडरसन फील्ड को नष्ट करने जा रहा था।
1941: मैसेडोनिया की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सशस्त्र विद्रोहियों ने प्रिलेप शहर में एक्सिस के कब्जे वाले क्षेत्रों पर हमला किया, जिससे मैसिडोनिया के राष्ट्रीय मुक्ति युद्ध की शुरुआत हुई।
1930: जवाहरलाल नेहरू को नैनी सेंट्रल जेल से रिहा किया गया।
1921: एक नींद की बीमारी (प्लेग), जिसकी चिकित्सा विज्ञान व्याख्या नहीं कर पा रहा था, हर साल कई लोगों की जान ले रही थी, जिससे युवा, बूढ़े, अमीर और गरीब सभी प्रभावित हो रहे थे।
1915: इलिनोइस शहर में मेटामोरा टाउनशिप हाई स्कूल सार्वजनिक छात्रों के लिए खोला गया।
1899: दक्षिण अफ्रीका के बोअर लोगों ने ग्रेट ब्रिटेन पर हमले की घोषणा की।
1881: अमेरिकी आविष्कारक डेविड हेंडरसन हॉस्टन ने कैमरों के लिए पहले रोल फिल्म का पेटेंट कराया। इससे फिल्म रोल का निर्माण हुआ।
1869: अमेरिकी आविष्कारक थॉमस एडीसन ने अपने पहले आविष्कार, एक इलेक्ट्रिक मशीन के लिए पेटेंट के लिए आवेदन किया, जिसका उपयोग वोटों की गिनती के लिए किया जाता था। कनाडा में ब्रिटिश सेना के खिलाफ लाल नदी विद्रोह शुरू हुआ।
1862: वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन ने अपनी पहली खोज, इलेक्ट्रिक वॉइस मशीन, का पेटेंट हासिल किया।
1852: ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के पहले विश्वविद्यालय, सिडनी यूनिवर्सिटी, की स्थापना हुई। सिडनी विश्वविद्यालय का उद्घाटन हुआ।
1809: अमेरिकी खोजकर्ता मेरीवर्थ लेविस की मौत नाचेज़ ट्रेसीन, टेनेसी के पास हुई, जिसे स्पष्ट आत्महत्या माना गया।
1776: अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध के दौरान, ब्रिटिश रॉयल नेवी ने लेक चंपलेन पर वालकौर द्वीप के युद्ध में अमेरिकी जहाजों को हरा दिया, लेकिन इस लड़ाई ने अमेरिकी सेना को शार्लोगा अभियान के लिए अपनी सुरक्षा तैयार करने के लिए पर्याप्त समय दे दिया।
1767: चार्ल्स मेसन और जेरेमिया डिक्सन किसी भी तरह से आगे बढ़ने में असमर्थ थे, इसलिए उन्होंने अपनी अंतिम टिप्पणियाँ कीं, जिसे बाद में मेसन-डिक्सन लाइन के रूप में जाना गया।
1634: उत्तरी फ्रिसिया के तट पर एक तूफान के ज्वार ने बड़े पैमाने पर बाढ़ ला दी, जिससे कम से कम 8,000 लोग मारे गए और स्ट्रैंड द्वीप छोटे-छोटे द्वीपों में विभाजित हो गया।
1531: स्विस सुधारवादी नेता हल्ल्ड्रीच ज़िंगली की लड़ाई में मृत्यु हो गई, जब कैथोलिक केंटन ने उनके गठबंधन द्वारा लागू की जा रही खाद्य नाकाबंदी के जवाब में हमला किया था।
1521: पोप लियो दशम ने इंग्लैंड के राजा हेनरी अष्टम को 'आस्था के रक्षक' की उपाधि दी।
1492: क्रिस्टोफर कोलंबस की पहली यात्रा के सदस्यों ने गुयानी के रास्ते में अज्ञात प्रकाश देखे जाने की सूचना दी।
1142: शॉक्सिंग की संधि, जिसने सॉन्ग राजवंश के खिलाफ जुरकेन अभियानों को समाप्त कर दिया था, को औपचारिक रूप से तब पुष्टि मिली जब एक जिन दूत ने दक्षिणी सांग कोर्ट का दौरा किया।
भारत में महत्वपूर्ण घटनाएं
2013:चक्रवात फैलिन से निपटने की तैयारी में, भारत के ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों से लगभग 500,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर निकाला गया था।
1987:श्रीलंकाई गृहयुद्ध के दौरान, भारतीय शांति सेना ने ऑपरेशन पवन की शुरुआत की।
1737: एक भूकंप के कारण भारत के कलकत्ता (अब कोलकाता) शहर का लगभग आधा हिस्सा नष्ट हो गया और इसमें 300,000 (तीन लाख) से अधिक लोग मारे गए।
आज का इतिहास से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें...