/sootr/media/media_files/2025/09/14/sept-15-2025-09-14-18-04-49.jpg)
15 सितंबर को भारत में इंजीनियर्स डे (Engineers' Day) मनाया जाता है। यह दिन हर साल इंजीनियरों के योगदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है, ताकि उनके काम की अहमियत को सभी लोग समझ सकें। इस दिन को विशेष रूप से सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया (Sir Mokshagundam Visvesvaraya) की जन्म जयंती के रूप में मनाया जाता है। साल 1955 में उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया।
सर विश्वेश्वरैया एक महान इंजीनियर और देशभक्त थे, जिन्होंने भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस दिन का उद्देश्य यह है कि इंजीनियरिंग के क्षेत्र में जो लोग काम कर रहे हैं, उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की जाए और नई पीढ़ी को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित किया जाए।
भारत में कैसे हुई इंजीनियर्स डे की शुरुआत?
सर विश्वेश्वरैया भारत के पहले प्रमुख सिविल इंजीनियरों में से एक थे। उनका जन्म 15 सितंबर 1861 को कर्नाटक के मुद्देनहल्ली गांव में हुआ था और वे 14 अप्रैल 1962 को बेंगलुरु में निधन हो गए। भारत सरकार ने 1968 में उनके योगदान को मान्यता देते हुए 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे घोषित किया। इस दिन का उद्देश्य सर विश्वेश्वरैया और अन्य इंजीनियरों के कार्यों को सम्मानित करना है।
इंजीनियर्स डे सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि श्रीलंका और तंजानिया में भी 15 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन हम सर विश्वेश्वरैया के जीवन उनकी उपलब्धियों और उनके योगदान को याद करते हैं। उन्होंने देश के विकास में बड़ी भूमिका निभाई, खासकर जल प्रबंधन और निर्माण के क्षेत्र में। इस दिन का महत्व यह है कि हम इंजीनियरिंग के क्षेत्र में किए गए कार्यों को सराहें और नई पीढ़ी को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।
इंजीनियर्स दिवस का इतिहास
इंजीनियर्स डे का इतिहास सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जीवन से बहुत गहरा जुड़ा हुआ है। 19वीं सदी में, जब भारत ब्रिटिश उपनिवेश था, तब यहां इंजीनियरिंग का औपचारिक विकास शुरू हुआ। लेकिन सर विश्वेश्वरैया ने इंजीनियरिंग को एक नया और आधुनिक रूप दिया। उनका जन्म 1861 में हुआ था और उन्होंने इसे सिर्फ एक तकनीकी क्षेत्र नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का एक अहम हिस्सा बनाया।
भारत सरकार ने 1968 में आधिकारिक रूप से 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे घोषित किया। यह फैसला इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) की सिफारिश पर लिया गया था, ताकि विश्वेश्वरैया के योगदान को सम्मानित किया जा सके। पहले, 1967 में इसे मनाया गया था, लेकिन 1968 से यह राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाने लगा।
इस दिन को श्रीलंका और तंजानिया में भी मनाया जाता है क्योंकि सर विश्वेश्वरैया के डिजाइन और सलाह ने इन देशों के बुनियादी ढांचे को प्रभावित किया।
कई देशों में इंजीनियर्स डे अलग-अलग तारीखों पर
दुनिया के कई देशों में इंजीनियर्स डे अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाता है। उदाहरण के लिए,संयुक्त राष्ट्र ने 4 मार्च को विश्व इंजीनियर्स डे घोषित किया है, जो इंजीनियरिंग के वैश्विक महत्व को मान्यता देता है। लेकिन भारत में, यह दिन खासतौर पर विश्वेश्वरैया को समर्पित है।
2025 में इस दिन की थीम "Deep Tech and Engineering Excellence: Driving India’s Techade" है, जो डीप टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग उत्कृष्टता पर जोर देती है। इसका उद्देश्य भारत के तकनीकी दशक को और भी मजबूत बनाना है।
सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जीवन ब्रिटिश काल की कठिनाइयों से भरा हुआ था। उन्होंने कई महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग परियोजनाएं की, जिनमें से एक 1908 में हैदराबाद की बाढ़ से निपटने के लिए डिजाइन किया गया ड्रेनेज सिस्टम था, जो मुसी नदी की बाढ़ को नियंत्रित करने में सफल रहा। इसी तरह 1906 में उन्होंनेएडेन (यमन)में जल आपूर्ति प्रणाली बनाई। इन परियोजनाओं ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तरपर पहचान दिलाई। 1955 में उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। उनकी 100वीं जयंती पर, 15 सितंबर 1960 को, भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1861 को कर्नाटक के मुद्देनहल्ली गांव में हुआ था। उनका परिवार तेलुगु था और उनके पिता मोक्षगुंडम श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। उनकी माता का नामवेंकटलक्ष्मी था, जो गृहिणी थीं। उनके बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया, जिससे परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद, विश्वेश्वरैया ने अपनी पढ़ाई को जारी रखा।
उन्होंने चिक्काबल्लापुर और बेंगलुरु में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में, उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय (अब आंध्र विश्वविद्यालय) से कला स्नातक (बीए) की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने पुणे के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा (DCE) प्राप्त किया। 1881 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने 1885 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी के पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में काम करना शुरू किया।
पुणे में पढ़ाई करते समय वे डेक्कन क्लब के पहले सचिव बने और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे प्रगतिशील नेताओं से प्रभावित हुए। सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की शिक्षा का एक खास पहलू यह था कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी, चाहे उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो। उन्होंने स्कॉलरशिप पर निर्भर रहते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी। उनकी बुद्धिमत्ता इतनी थी कि 1883 में उन्होंने LCE और FCE (जो आज के बीई के बराबर थे) परीक्षाओं में पहला स्थान प्राप्त किया। इसके बाद, उन्होंने नासिक, खानदेश (धुले) और पुणे में काम किया। 1894 में उन्होंने सिंध के सुक्कुर नगर निगम के लिए वाटर वर्क्स डिजाइन किए।
विश्वेश्वरैया की उपलब्धियां
स्वचालित स्लुइस गेट्स का आविष्कार
1903 में उन्होंने पुणे के पास खडकवासला जलाशय में ऑटोमैटिक वीयर वाटर फ्लडगेट्स डिजाइन किए। यह एक नया आविष्कार था, जो बांधों को बिना नुकसान पहुंचाए जल स्तर को नियंत्रित करता था। इस तकनीक को बाद में ग्वालियर के टिग्रा बांध और मैसूर के कृष्ण राज सागर (KRS) बांध में इस्तेमाल किया गया। KRS बांध, जो 1932 में पूरा हुआ, उस समय एशिया का सबसे बड़ा जलाशय था और इससे मैसूर की कृषि में बड़ा बदलाव आया।
बाढ़ नियंत्रण और जल प्रबंधन
1908 में हैदराबाद की बाढ़ के बाद, उन्होंने मुसी नदी के लिए एक ड्रेनेज सिस्टम डिज़ाइन किया, जो हैदराबाद शहर को बाढ़ से बचाने में सफल रहा। इसके अलावा, उन्होंने विशाखापत्तनम बंदरगाह को समुद्री कटाव से बचाने के लिए भी एक प्रणाली बनाई। 1906-07 में, एडेन (यमन) में जल आपूर्ति और ड्रेनेज सिस्टम डिजाइन किया, जो ब्रिटिश कॉलोनी के लिए मॉडल बना।
मैसूर राज्य के दीवान के रूप में योगदान
1912 से 1918 तक वे मैसूर के दीवान (प्रधानमंत्री) रहे। इस दौरान उन्होंने मैसूर राज्य को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर सोप फैक्ट्री, बैंगलोर एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर और गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज (अब विश्वेश्वरैया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग) की स्थापना की। साथ ही, उन्होंने तिरुमाला-तिरुपति के बीच सड़क निर्माण और रेलवे लाइनों का विस्तार भी किया।
अन्य परियोजनाएं
उन्होंने टुंगभद्रा बांध के बोर्ड ऑफ इंजीनियर्स के चेयरमैन के रूप में काम किया। 1927 से 1955 तक वे टाटा स्टील के बोर्ड सदस्य रहे। 90 वर्ष की उम्र में, उन्होंने बिहार के मोकामा ब्रिज (जो गंगा नदी पर है) के लिए तकनीकी सलाह दी। उन्होंने ब्लॉक सिस्टम सिंचाई तकनीक भी विकसित की, जिससे जल की बर्बादी कम हुई।
औद्योगीकरण और शिक्षा पर जोर
विश्वेश्वरैया ने औद्योगीकरण और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने मैसूर चैंबर ऑफ कॉमर्स, सेंचुरी क्लब, और कर्नाटक बैंक की स्थापना में भी योगदान दिया। उनके प्रयासों से मैसूर राज्य में कृषि, वाणिज्य और सार्वजनिक कार्यों में क्रांति आई। उन्हें "मॉडर्न मैसूर का पिता" कहा जाता है।
इंजीनियर्स दिवस का महत्व इस बात में है कि यह इंजीनियरों के योगदान को समाज के विकास से जोड़ता है। इंजीनियर सिर्फ पुल, सड़कें और बांध ही नहीं बनाते, बल्कि वे सतत विकास, पर्यावरण संरक्षण और नई तकनीकों के विकास में भी अहम भूमिका निभाते हैं। विश्वेश्वरैया के समय में इंजीनियरिंग मुख्य रूप से जल प्रबंधन पर केंद्रित थी, लेकिन आज के समय में यह AI, रिन्यूएबल एनर्जी और स्मार्ट सिटीज जैसी नई तकनीकों तक फैल चुकी है।
यह दिवस युवा इंजीनियरों को प्रेरित करने का काम करता है, खासकर भारत जैसे विकासशील देशों में, जहां इंजीनियर बुनियादी ढांचे (जैसे हाई-स्पीड रेल, मेट्रो) के माध्यम से आर्थिक विकास में योगदान दे रहे हैं।
विश्वेश्वरैया का देश के लिए योगदान
राष्ट्र निर्माण
विश्वेश्वरैया ने यह साबित किया कि इंजीनियरिंग ही स्वतंत्रता और विकास का आधार है। आज, भारत के मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रम इंजीनियरों पर निर्भर हैं।
शिक्षा और जागरूकता
इस दिन को इंजीनियरिंग शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। कॉलेजों में सेमिनार, वर्कशॉप और पुरस्कार वितरण जैसे कार्यक्रम होते हैं।
सामाजिक प्रभाव
इंजीनियर ऐसे पर्यावरणीय चुनौतियों (जैसे जलवायु परिवर्तन) का समाधान खोजते हैं। विश्वेश्वरैया द्वारा बनाई गई बाढ़ नियंत्रण तकनीकें आज भी प्रासंगिक हैं।
वैश्विक संदर्भ
भारत में 1.5 मिलियन से अधिक इंजीनियर हैं, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इस दिन को लिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए भी मनाया जाता है, क्योंकि अब महिलाओं की भी इंजीनियरिंग क्षेत्र में बढ़ती भागीदारी है।
2025 में इस दिन की थीम "Deep Tech and Engineering Excellence" है, जो भारत के टेकेड (Techade) को और मजबूत करने पर जोर देती है, जैसे AI और बायोटेक में योगदान।
कैसे मनाया जाता है इंजीनियर्स दिवस का उत्सव?
इंजीनियर्स दिवस पूरे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) इस आयोजन का मुख्य आयोजक है। इस दिन के उत्सव में निम्नलिखित गतिविधियां होती हैं:
सेमिनार और व्याख्यान: विश्वविद्यालयों में विश्वेश्वरैया के जीवन और उनके योगदान पर चर्चा की जाती है। 2025 में, ऑनलाइन वेबिनार में डीप टेक पर फोकस किया जाएगा।
पुरस्कार वितरण: युवा इंजीनियरों को पुरस्कार दिए जाते हैं, जैसे IEI युवा इंजीनियर अवॉर्ड।
प्रदर्शनियां: मॉडल, प्रोजेक्ट और डॉक्यूमेंट्री प्रस्तुत की जाती हैं। 2023 में, JNCT भोपाल में एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई थी।
सामाजिक गतिविधियां: इस दिन पर ब्लड डोनेशन, ट्री प्लांटेशन और इंजीनियरिंग वर्कशॉप जैसी सामाजिक गतिविधियाँ होती हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर: इस दिन पर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री संदेश देते हैं। 2024 में, केंद्रीय मंत्री ने इंजीनियरों की भूमिका पर जोर दिया।
श्रीलंका और तंजानिया में उत्सव:
श्रीलंका में यह दिन इंजीनियरिंग सोसाइटी द्वारा मनाया जाता है।
तंजानिया में जल प्रबंधन पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
विश्वेश्वरैया की विरासत
विश्वेश्वरैया की विरासत आज भी जीवित है। उन्होंने 100 साल तक जीवन जीकर यह दिखाया कि समर्पण से कुछ भी संभव है। उनके उद्धरण, जैसे "सिस्टमेटिक प्लानिंग और प्रयासों का संगठित रूप", आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने "Reconstructing India" (1920) जैसी किताबें लिखीं, जो औद्योगीकरण पर आधारित थीं। उनके सम्मान में मुद्देनहल्ली में एक म्यूजियम है।
आज, उनके नाम पर विश्वेश्वरैया टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी है। उनकी प्रेरणा से भारत के इंजीनियर ISRO (स्पेस), इंफोसिस (IT) और NHAI (इंफ्रास्ट्रक्चर) जैसे क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं।
15 सितंबर का इंजीनियर्स दिवस सर विश्वेश्वरैया की जयंती पर मनाया जाता है और यह इंजीनियरिंग के महत्व को दर्शाता है। उनका जीवन संघर्ष, नवाचार और सेवा का प्रतीक है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य यह याद दिलाना है कि इंजीनियर राष्ट्र के वास्तुकार यानी निर्माता होते हैं। 2025 में, इस दिन का उद्देश्य भारत के तकनीकी भविष्य को और बेहतर बनाना है। आइए, हम उनके योगदान को सम्मानित करें और आने वाली पीढ़ी के इंजीनियरों को प्रेरित करें।
15 सितंबर का इतिहास
हर दिन का अपना एक अलग महत्व होता है और 15 सितंबर का दिन भी इतिहास (आज की यादगार घटनाएं) में कई महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए दर्ज है।
इस दिन दुनिया में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने इतिहास की दिशा बदल दी। आइए जानते हैं 15 सितंबर को भारत और विश्व में घटी कुछ प्रमुख घटनाओं के बारे में, जो आपके सामान्य ज्ञान को बढ़ा सकती हैं।
15 सितंबर: विश्व में महत्वपूर्ण घटनाएं
2014: इवा कोपाक्ज़ पोलैंड की नई प्रधानमंत्री बनीं।
2014: माइक्रोसॉफ्ट ने स्वीडिश गेम कंपनी मोजंग को 2.5 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदने का सौदा किया, जो 'माइनक्राफ्ट' गेम की निर्माता है।
2013: जापान ने अपने आखिरी चालू परमाणु रिएक्टर को एक तय निरीक्षण के लिए बंद कर दिया।
2012: 'आयरिश डेली स्टार' अखबार ने केट मिडलटन की बिना कपड़ों वाली तस्वीरें छापीं।
2010: मिस्र से चुराई गई एक प्राचीन कब्रगाह का हिस्सा स्पेन में एक दुकान में मिला।
2009: संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया कि गाजा युद्ध के दौरान इज़राइल और फ़िलिस्तीनी दोनों सेनाओं ने युद्ध अपराध किए हैं।
2008: अमेरिका के सबसे बड़े बैंकों में से एक, लेहमन ब्रदर्स, ने खुद को दिवालिया घोषित किया।
2004: तूफान इवान ने अलबामा और फ्लोरिडा में भारी तबाही मचाई।
2004: ब्रिटिश नागरिक गुरिंदर चड्ढा को 'वूमन ऑफ द ईयर' का सम्मान मिला।
1998: इंटरनेट की दुनिया में https://www.google.com/search?q=Google.com डोमेन नेम के रूप में रजिस्टर हुआ।
1991: यूरोप का एक देश, मेसोडोनिया, यूगोस्लाविया से अलग होकर स्वतंत्र हुआ।
1982: लेबनान के चुने हुए राष्ट्रपति बशीर गेमायेल की, पदभार संभालने से पहले ही, बम धमाके में हत्या कर दी गई।
1963: अमेरिका के बर्मिंघम, अलबामा में एक चर्च में बम धमाका हुआ, जिसमें चार बच्चे मारे गए और 22 से ज़्यादा घायल हो गए।
1958: खतरनाक बीमारी 'ट्रेकोमा' के वायरस की पहली बार पहचान की गई।
1951: चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने तिब्बत की राजधानी पर नियंत्रण कर लिया।
1944: दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई सेनाएं जापान के कब्जे वाले मोरोटाई द्वीप पर उतरीं।
1935: नाज़ी जर्मनी ने 'नूरमबर्ग कानून' लागू किए, जिससे यहूदियों से नागरिकता छीन ली गई और उन्हें सार्वजनिक पदों और व्यवसायों से हटा दिया गया।
1935: स्वास्तिक के निशान वाला झंडा जर्मनी का आधिकारिक राष्ट्रीय ध्वज बना।
1916: प्रथम विश्व युद्ध में पहली बार 'टैंकों' का इस्तेमाल हुआ। अंग्रेजों ने फ्रांस के सोम्मे में जर्मन सेना पर हमला किया।
1896: टेक्सास में एक रेल दुर्घटना का स्टंट हुआ, जिसमें दो ट्रेनें जानबूझकर टकराई गईं।
1894: जापान ने प्योंगयांग की लड़ाई में चीन को हराया।
1883: ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय छात्रों के लिए खोला गया।
1862: अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान, विद्रोही सेना ने वर्जीनिया के हार्पर्स फेरी में 12,000 से ज़्यादा सैनिकों को बंदी बना लिया।
1851: फिलाडेल्फिया में सेंट जोसेफ विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
1846: नेपाल पर जंग बहादुर राणा ने कब्जा कर लिया।
1831: 'जॉन बुल' नामक दुनिया का सबसे पुराना चालू स्टीम लोकोमोटिव, न्यू जर्सी में अपनी पहली यात्रा पर चला।
1830: इंग्लैंड के विलियम हुस्कीसोन दुनिया के पहले रेल यात्री बने, जिनकी रेल दुर्घटना में मृत्यु हुई।
1830: लिवरपूल और मैनचेस्टर को जोड़ने वाली पहली यात्री रेल लाइन शुरू हुई।
1821: मध्य अमेरिका के पांच देश - कोस्टारिका, अल सल्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडुरास और निकारागुआ - स्वतंत्र हुए।
1762: सिग्नल हिल की लड़ाई में, ब्रिटिश सैनिकों ने फ्रांसीसी को हराया।
1718: डिजंगर खानाते ने साल्विन नदी की लड़ाई में एक राजा की सेना को हरा दिया।
1707: ट्रांसिल्वेनिया के राजकुमार फेरेंस रकोक्ज़ी द्वितीय और रूस के जार पीटर ने सामाजिक सुरक्षा पर एक समझौता किया।
1440: फ्रेंच नाइट गिल्स डे रईस, जो इतिहास के शुरुआती ज्ञात सीरियल किलर्स में से एक थे, को हिरासत में लिया गया।
15 सितंबर: भारत की प्रमुख घटनाएं
1959: भारत में पहली बार दूरदर्शन (राष्ट्रीय प्रसारण सेवा) की शुरुआत दिल्ली में हुई।
1948: स्वतंत्र भारत का पहला ध्वजपोत आईएनएस-दिल्ली, मुंबई बंदरगाह पर पहुंचा।
आज के इतिहास से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें...
आज का इतिहास: गुब्बारों से हुए पहले हवाई हमले ने बदल दिए युद्ध के नियम
आज का इतिहास: वो रात जिसने कंप्यूटर को घर-घर पहुंचाया, जानें क्या है आज के दिन की कहानी
आज का इतिहासः चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच इसरो ने दुनिया को दिखाई भारत की ताकत
आज की तारीख का इतिहास