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रमेश शर्मा
विचार मंथन: विश्व का सबसे विशाल सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी यात्रा के सौ वर्ष पूर्ण करने जा रहा है। यह यात्रा बहुत संघर्ष से भरी है। लेकिन संघ ने विषमताओं पर विजय पाकर न केवल शताब्दी यात्रा पूर्ण की अपितु विस्तार भी किया। यह कहानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भोपाल में आकार लेने और विस्तार करने में है। स्वतंत्रता से पहले मध्यप्रदेश राज्य ने वर्तमान भौगोलिक आकार ग्रहण नहीं किया था।
कुछ क्षेत्र छोटी बड़ी रियासतों में विभाजित थे और कुछ क्षेत्र अंग्रेजों के सीधे आधीन थे। यदि हम मध्यप्रदेश के वर्तमान स्वरूप के अनुसार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा को समझे तो मध्यप्रदेश में सबसे पहले संघ का अंकुरण सबसे पहले मालवा क्षेत्र में हुआ। और फिर अन्य क्षेत्रों में विस्तार हुआ।
1934 में RSS का भोपाल से संपर्क
भोपाल क्षेत्र उन दिनों "नबाबी रियासत" के रूप में जाना जाता था। यह रियासत वर्तमान भोपाल, रायसेन और सीहोर जिले के क्षेत्रफल में फैली हुई थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भोपाल का संपर्क 1934 में हो गया था। मालवा क्षेत्र से संघ के अधिकारियों की भी भोपाल यात्राएं आरंभ हुईं। लेकिन संघ की विधिवत शाखा बसंत पंचमी 1940 से आरंभ हो सकी। यह शाखा मंदिर कमाली प्रांगण में आरंभ हुई थी। इस शाखा के संचालन का दायित्व महादेव प्रसाद जी आचार्य को सौंपा गया जबकि भोपाल राज्य में संघ के विस्तार का दायित्व भाई उद्धव दास जी मेहता ने संभाला।
नबाबी रियासत के रुप में जाना जाता था भोपाल
भोपाल क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा आरंभ करना सरल नहीं था। इसके दो कारण थे। एक तो भारत के सार्वजनिक वातावरण में एक ऐसी अंर्तप्रभावाहित मानसिक धारा रही है जो भारत राष्ट्र के सांस्कृतिक स्वरूप का विषय आते ही भड़क उठती है। और उसे दबाने के लिए पूरी शक्ति लगा देती है। यह भोपाल में भी थी। दूसरी बात भोपाल का "नबाबी रियासत" होना था। भोपाल नबाब परिवार की शब्द शैली चाहे जो हो उनकी कार्यशैली का आंतरिक कट्टरपन से भरी थी। जिसमें सनातन हिन्दुओं को अपनी सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का आयोजन सार्वजनिक रूप से करने पर प्रतिबंध था।
भोपाल रियासत के दो शक्ति केंद्र
भोपाल रियासत के दो शक्ति केंद्र थे। अपनी सुरक्षा सेना के साथ नबाब परिवार भोपाल में रहता था। यह नगर नबाब प्रशासन का मुख्य केन्द्र था। जबकि अंग्रेज पोलिटिकल एजेन्ट सीहोर नगर में रहता था। सैन्य छावनी भी सीहोर में थी। उन दिनों भोपाल रियासत क्षेत्र में "हिन्दु सेवा संघ" नामक एक सामाजिक संगठन सनातन हिन्दुओं के नागरिक अधिकार और सम्मान केलिये संघर्ष कर रहा था। अपनी अन्य सामाजिक गतिविधियों के साथ यह संगठन मंदिर कमाली परिसर में एक अखाड़ा भी संचालित करता था।
प्रतिनिधिमंडल नासिक दौरे पर
1934 में इस संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल नासिक महाराष्ट्र की यात्रा पर गया। वहां हिन्दु महासभा का राष्ट्रीय अधिवेशन होने वाला था। भोपाल हिन्दु सेवा संघ भोपाल में हिन्दु महासभा की विधिवत इकाई गठित करना चाहता था। जंगल सत्याग्रह के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम और इसके संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार जी भी चर्चा में आ गये थे। यह प्रतिनिधिमंडल लौटते में नागपुर रुककर डॉक्टर से भी भेंट करके संघ को भी समझना चाहता था। जो समूह नासिक गया था उनमें भाई उद्धवदास मेहता, मास्टर भैरों प्रसाद सक्सेना, ठाकुर लालसिंह सहित कुल छै लोग थे। यह समूह जब नासिक पहुंचा तो वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वर्ग चल रहा था और संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार भी नासिक में ही थे।
भाई उद्धवदास मेहता भोपाल लौटे
हिन्दू महासभा के अधिवेशन से निवृत्त होकर भोपाल हिन्दू सेवा संघ का यह समूह डॉक्टर से भी मिला। संघ की गतिविधि और शाखा का संचालन समझा। अपनी यात्रा के दोनों उद्देश्य पूरे कर यह दल भोपाल लौट आया। भोपाल आकर भाई उद्धवदास मेहता ने कमाली मंदिर में संचालित अखाड़े में कुछ परिवर्तन किए और अखाड़े को व्यायाम शाला का स्वरूप दिया। व्यायाम शाला में कुश्ती अभ्यास तो यथावत रहा लेकिन प्रातःकालीन गतिविधि का स्वरूप बिल्कुल शाखा की भांति किया। इसके संचालन का कार्य महादेव प्रसाद आचार्य को सौंपा।
नबाब भोपाल से पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग
प्रतिदिन सुबह व्यायाम अभ्यास के बाद सामाजिक, सांस्कृतिक एवं सामयिक विषयों पर चर्चाएं होने लगीं। इसी शैली पर आधारित एक व्यायाम शाला सीहोर में भी आरंभ की गई। इसका संचालन रामचरणदास जी को सौंपा गया। रामचरण दास जी आर्यसमाज से संबंधित थे। सीहोर की इस व्यायाम शाला की गतिविधि अंग्रेज पोलिटिकल एजेन्ट से छिपी न रह सकी। पोलिटिकल एजेन्ट ने इस व्यायाम शाला को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधि माना और नबाब भोपाल को पत्र लिखकर कार्रवाई करने को कहा। नबाब प्रशासन ने दोनों व्यायाम शालाओं पर छापे मारे और दोनों पर प्रतिबंध लग गया।
व्यायाम शाला शुरू करने का प्रयास
भाई उद्धवदास मेहता ने दो तीन बार ये व्यायाम शाला आरंभ करने के प्रयास किया। मंदिर कमाली में बंद कमरे भी व्यायाम अभ्यास करने का प्रयास हुआ। सफलता और असफलता के इस दौर में नबाब प्रशासन से बातचीत का क्रम भी चला। कयी दौर की बातचीत के बाद अंत में समझौता हुआ। नबाब प्रशासन से हिन्दु समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव सार्वजनिक रूप से मनाने की अनुमति मिल गई। इसके साथ 1938 से ये दोनों व्यायाम शालाएं नए उत्साह के साथ पुनः प्रारंभ हो गईं। भोपाल के मंदिर कमाली में संचालित इसी व्यायाम शाला ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विधिवत शाखा का स्वरूप ग्रहण किया।
व्यायाम शाला में संघ की विधिवत शाखा
यह बसंत पंचमी 1940 का दिन था। व्यायाम शाला में संघ की विधिवत शाखा आरंभ करने केलिये बसंतोत्सव का आयोजन किया गया था। इसमें नगर सभी गणमान्य आमंत्रित किये गये। इस आयोजन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक दिगंबरराव जी तिजारे भोपाल आए थे। तिजारे का केन्द्र उज्जैन था। इससे पहले वे भोपाल, सीहोर एवं बरेली आदि स्थानों की यात्रा कर चुके थे। उस समय की पीढ़ी का मानना था कि भोपाल से पहले 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विधिवत शाखा सीहोर में आरंभ हो गई। पचास के दशक में स्वयंसेवक से प्रचारक बनने वालों की संख्या भोपाल नगर की तुलना में सीहोर से अधिक रही।
तिजारे दो दिन पहले भोपाल आ गए
1940 की अपनी इस यात्रा में तिजारे दो दिन पहले भोपाल आ गए थे। उनके निर्देशन में ही यह बसंतोत्सव का आयोजन हुआ इसमें संघ के गीत गाये गये। नगर के कुछ प्रबुद्ध जनों का संवोधन हुआ। मुख्य संबोधन तिजारे जी का हुआ। इस प्रथम शाखा के संचालन का दायित्व महादेव प्रसाद आचार्य को सौंपा गया। वे ही शाखा से पहले यहां संचालित होने वाली व्यायाम शाला के संचालक थे। तिजारे ने भोपाल राज्य संघ चालक का दायित्व भाई उद्धवदासजी मेहता को सौंपा। भोपाल में इस पहली शाखा में जिन नवयुवकों ने स्वयंसेवक के रूप में सहभागिता की उनमें शंकरलाल शर्मा, नूतन दुबे, नारायण प्रसाद गुप्ता जैसे नाम थे। इनमें नारायण प्रसाद गुप्ता और शंकरलाल शर्मा आगे चलकर प्रचारक बने।
महादेव प्रसाद के बेटे थे शंकरलाल
शंकरलाल शाखा संचालक महादेव प्रसाद के बेटे थे। इसी कालखंड में बरेली, उदयपुरा और बैरसिया में संघ की शाखाएं आरंभ हुईं। इसके साथ भोपाल राज्य में संघ का तेजी से विस्तार हुआ। 1946 तक भोपाल राज्य क्षेत्र के अंतर्गत बीस स्थानों में संघ की शाखाएं आरंभ हो गई थीं। इनमें भोपाल, सीहोर, बैरसिया, रायसेन, बरेली, शाहगंज, इछावर, आष्टा, बेगमगंज, उदयपुरा आदि स्थान थे। इनमें भोपाल एवं सीहोर में दो दो स्थानों पर शाखाएं आरंभ हुईं। मंदिर कमाली के बाद भोपाल नगर में संघ की दूसरी शाखा बड़वाले महादेव मंदिर परिसर में आरंभ हुई। सीहोर की प्रारंभिक शाखाओं में जो नवयुवक स्वयंसेवक बने उनमें नेमीचंद कक्कड़, कन्हैयालाल त्रिवेदी, लक्ष्मीचंद्र जैन प्रमुख नाम थे।
1942 में सीहोर के लक्ष्मीचंद जैन, कन्हैयालाल द्विवेदी और नेमीचंद कक्कड़ ने प्रथम वर्ष किया जबकि 1943 में भोपाल के शंकर लाल शर्मा ने प्रथम वर्ष किया। इनमें कन्हैया लाल द्विवेदी ऐसे स्वयंसेवक थे जिन्होंने 1942 प्रथम वर्ष, 1943 में द्वितीय वर्ष और 1944 में तृतीय वर्ष किया। प्रथम वर्ष के बाद ही भोपाल के शंकरलाल शर्मा ने पूर्णकालिक के रूप में संघकार्य करने की इच्छा व्यक्त की। उन्हें सीहोर में संघ कार्य विस्तार का दायित्व सौंपा गया। वे 1946 तक सीहोर में रहे। उन्होंने सलकनपुर से लेकर फंदा तक समूचे क्षेत्र की यात्रा की और नौजवानों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़ा।
अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन
भोपाल राज्य क्षेत्र में संघ कार्य का विस्तार 1942 में वाधित हुआ। इस वर्ष पूरे देश में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन आरंभ हुआ था। भोपाल राज्य के अंतर्गत सीहोर नगर में यह आँदोलन हुआ। इसका कारण अंग्रेज पोलिटिकल एजेन्ट का मुख्यालय सीहोर में होना था। भोपाल राज्य के अंतर्गत आने वाले विभिन्न स्थानों से कार्यकर्ता सीहोर पहुँचे। वहाँ प्रदर्शन हुआ। इस प्रदर्शन में संघ कार्यकर्ताओं ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। उनकी गिरफ्तारियाँ भी हुई। इन गिरफ्तारियों से अन्य स्थानों पर तो उतना प्रभाव नहीं पड़ा जितना सीहोर और भोपाल में हुआ। इन दोनों नगरों में संघ की शाखा के संचालन में गतिरोध आया। संघ की शाखाएँ कुछ माह वाधित रहीं। 1943 के आरंभ से ये शाखाएँ पुनः नियमित हो गई।
दिल्ली में गांधी की हत्या
भोपाल राज्य क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधि पर दूसरा आघात फरवरी 1948 में आया। इसकी पृष्ठभूमि गांधी हत्या थी। उनकी हत्या दिल्ली में हुई लेकिन किसी अदृश्य कुचक्र के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर देश व्यापी प्रतिबंध लगा दिया गया। भोपाल में नबाब प्रशासन मानों इसी की प्रतीक्षा कर रहा था। इसका कारण विलीनीकरण आंदोलन था।
15 अगस्त 1947 को भले अंग्रेजी सत्ता की विदाई हो गई थी लेकिन भोपाल नबाब हमीदुल्लाह खान ने पहले पाकिस्तान से मिलने की घोषणा की फिर स्वतंत्र रहने का प्रयास किया। तब भोपाल में विलीनीकरण आंदोलन आरंभ हुआ। जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता बढ़ चढ़ कर भाग ले रहे थे। हालांकि अपनी नीति के अंतर्गत संघ ने अपना बैनर का उपयोग नहीं किया था। लेकिन पूरी रियासत में ऐसा कोई प्रदर्शन या प्रभातफेरी ऐसी नहीं होती थी जिसमें संघ के कार्यकर्ता सहभागी न बनें।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध की घोषणा
फरवरी 1948 में दिल्ली से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध की घोषणा होते ही नबाब प्रशासन और पुलिस हिन्दू महासभा और संघ से जुड़े कार्यकर्ताओं के घरों पर टूट पड़ी। महिलाओं तक को प्रताड़ित किया। घरों में तोड़ फोड़ हुई, सामान जला दिया गया। कुछ परिवारों में बच्चों के पढ़ने तक की कापी किताब आदि जला दिये गये। जेलों में जगह ही नहीं बची तब मीलों दूर जंगल में ले जाकर छोड़ दिया गया। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि भूखे प्यासे किस प्रकार लोग अपने घरों को लौटे होगे। कुछ कार्यकर्ता तो लौट ही नहीं सके। उन्हें "गुमनाम" घोषित कर दिया गया। भोपाल में पन्द्रह दिनों तक दमन का यह वातावरण रहा। इसके बाद दमन तो रुका लेकिन भय और आतंक चार माह तक यथावत रहा। मई 1948 से गिरफ्तार कार्यकर्ताओं की रिहाई आरंभ हुई। तब राहत मिली।
अधिकांश स्वयंसेवक रिहा हुए
दमन के यह दौर संघ के किसी स्वयंसेवक का मनोबल नहीं तोड़ सका। जून 1948 तक अधिकांश स्वयंसेवक रिहा हो गये थे। और इसके साथ ही भोपाल राज्य को भारतीय संघ में विलीनीकरण आँदोलन पुनः तेज हुआ। संघ के स्वयंसेवक ने यह परवाह नहीं कि आँदोलन का नेतृत्व कौन कर रहा है, आँदोलन का श्रेय किसको मिल रहा है। वह बस आँदोलन की सफलता में जुट गया। अंत में 1 जून 1949 को नबाबी सत्ता से मुक्ति मिली। संघ को पुनः व्यवस्थित होने में कुछ समय लगा। भोपाल में संघ की शाखा को पुनः पटरी पर लाने की पहल शंकरलाल जी शर्मा ने की जो बाद में शंकर लाल दद्दा के नाम से जाने गये।
हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी
भोपाल में संघ कार्य की एक विशेषता और थी। यहां आर्यसमाज, हिन्दू महासभा और नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्त्ता परस्पर बहुत गहराई से जुड़े थे। भोपाल रियासत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रथम संघ चालक भाई उद्धवदास मेहता हिन्दु महासभा के भी अध्यक्ष थे तो सीहोर में प्रथम संघ शाखा संचालक रामचरणदास आर्यसमाज से जुड़े थे। यही कारण था कि फरवरी 1948 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियों से विलीनीकरण में गतिरोध आ गया था।
कार्यकर्ताओं के घरों पर पड़े छापे
आंदोलन की पूर्णता के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता पुनः समाज एवं सांस्कृतिक जागरण अभियान में लौट गये। भोपाल रियासत के भारतीय संघ का अंग बनने का बाद संघ ने कभी अपनी सहभागिता स्थापित करने का कभी प्रयास नहीं किया। यही संघ की अपनी कार्यशैली है। जिसमें व्यक्ति पीछे रहता है और काम आगे। संघ कार्यकर्ता और प्रचारक काम तो करते हैं लेकिन अपने द्वारा किए गए काम का उल्लेख कभी नहीं करते। इसलिए भोपाल राज्य में संघ की स्थापना और आरंभिक कार्यों का दस्तावेजी करण कभी हुआ ही नहीं। यदि किसी ने व्यक्तिगत और पर कुछ विवरण अंकित किया था तो वह महात्मा गांधी की हत्या के बाद कार्यकर्ताओं के घरों पर पड़े "छापे और जब्ती" में नष्ट हो गया। बाद के वर्षों में जो कुछ भी संकलित हुआ वह संघ से जुड़े लोगों की स्मृति के आधार पर ही एकत्र हो सका। इस आलेख का आधार भी वरिष्ठों के वे संस्मरण हैं जो समय समय पर सुनने को मिले।
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