जनरल ह्यूरोज ने 14 जनवरी 1858 को शवों को लटकाया था पेड़ों पर

अंग्रेज जनरल ह्यूरोज ने 356 सैनिकों को पहले गोली से उड़ाया फिर शवों को पेड़ पर लटकाने का आदेश दिया था ताकि क्षेत्र के लोगों में भय पैदा हो सके। बलिदानी क्रांतिकारियों के ये शव दो दिनों तक पेड़ों पर लटक रहे थे।

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14 1858 British General

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अंग्रेजी राज से भारत की मुक्ति के लिए 1857 की क्रांति भारत के हर क्षेत्र में हुई, असंख्य बलिदान हुए। बलिदानों की इस श्रृंखला में मध्यप्रदेश का सीहोर नगर भी है जहां अंग्रेज जनरल ह्यूरोज ने 356 सैनिकों को पहले गोली से उड़ाया फिर शवों को पेड़ पर लटकाने का आदेश दिया था ताकि क्षेत्र के लोगों में भय पैदा हो सके। बलिदानी क्रांतिकारियों के ये शव दो दिनों तक पेड़ों पर लटक रहे थे।

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1857 की क्रांति का उद्घोष मंगल पांडे ने किया

1857 की इस क्रांति का उद्घोष क्रांतिकारी मंगल पांडे ने 29 मार्च को बंगाल इन्फेंट्री से किया था। लेकिन व्यापक रूप से इसकी शुरुआत मेरठ से हुई।10 मई को मेरठ छावनी से अंग्रेजों का यूनियन जैक उतार दिया गया था। दिल्ली कूच कर दिया था। भोपाल रियासत में यह क्रांति जून 1857 में आरंभ हुई। भोपाल रियासत के अंतर्गत अंग्रेजों की सैन्य छावनी सीहोर में थी। उन दिनों रियासत में नवाब बेगम सिकन्दर कहां का शासक था। वे अंग्रेजों की समर्थक और उनके अधीन ही अपना राजकाज चला रही थीं। रियासत की राजधानी तो भोपाल थी। अंग्रेजी सेना का मुख्यालय सीहोर में था। क्रांति के समय सीहोर की अंग्रेज बटालियन में कुल 1113 सैनिक थे। इनमें 737 पैदल, 363 घुड़सवार और 113 तोपखाने में तैनात थे। अंग्रेज पोलिटिकल एजेंट विलियम फ्रेडरिक का केन्द्र भोपाल था। सीहोर छावनी के "कॉन्टिजेन्ट कैंप" नाम दिया गया था। इसकी कमान रॉबर्ट हैमिल्टन के हाथ में थी। उनके साथ सीहोर सैन्य छावनी में एक मेजर भी रहते थे।

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अंग्रेज सतर्क हुए और सेना में नई भर्ती

बंगाल इन्फेंट्री के विद्रोह और अंग्रेजों के दमन के समाचार देश की अन्य छावनियों में जैसे जैसे पहुंच रहे थे। वैसे-वैसे क्रांति की सरगर्मी बढ़ने लगी थी। अंग्रेज सतर्क हुए और सेना में नई भर्ती आरंभ की। इस भर्ती की शुरुआत पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हुई। सभी छावनियों में ये अतिरिक्त सैनिक भेजे गए और बेरिकों में तैनात अंग्रेज अधिकारियों को सुरक्षित स्थान पर भेजा जाने लगा।

सीहोर छावनी में क्रांति की शुरुआत करने वाले महावीर कोठ, रामजीलाल और वली मोहम्मद थे। महावीर कोठ मूलतः राजस्थान के रहने वाले थे। वे महू छावनी में भर्ती हुए और पदोन्नत होकर प्रशिक्षण हो गए। प्रशिक्षण के नाते उनका संपर्क आसपास की छावनियों के सैनिकों से हो गया था। उनका स्थानांतरण सीहोर में हुआ था। रामजीलाल और वली मोहम्मद से उनका परिचय यहीं हुआ। वली मोहम्मद यूं तो नबाब खानदान से ही संबंधित थे लेकिन अंग्रेज मेजर के आधीन सीहोर छावनी में तैनात थे। मेरठ से क्रांति का समाचार पहले महू छावनी आया और महू से सीहोर। इस समाचार के साथ सीहोर छावनी में हलचल बढ़ी। 

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दो ध्वज फहराए गए

क्रांति के लिए एक बैठक इंदौर में हुई जिसमें नीमच और महू आदि आसपास की विभिन्न छावनियों से सैनिक पहुंचे थे। सीहोर से भी 6 सैनिकों की टोली इंदौर गई। इस टोली का नेतृत्व महावीर कोठ कर रहे थे। इस टोली ने लौटते ही क्रांति की तैयारी आरंभ हुई। भावी रणनीति के लिये क्रांतिकारियों की पहली बड़ी बैठक 13 जून 1857 को  हुई। सीहोर में अंग्रेज सैनिक और परिवार मिलाकर कुल बीस लोग थे । यह गतिविधियां देखकर सभी अंग्रेज परिवारों ने छावनी छोड़कर  भोपाल आने की तैयारी की। क्रांतिकारी सैनिकों ने उन्हें सुरक्षित भोपाल रवाना कर दिया। ये अंग्रेज परिवार भोपाल आए और नबाब बेगम ने सुरक्षा देकर मुम्बई रवाना कर दिया। अंग्रेज परिवारों का सीहोर से जाते ही छावनी से अंग्रेजी ध्वज उतार दिया गया। एक लंबे विचार विमर्श के बाद दो ध्वज फहराए गए। एक भगवा रंग का "निशान महावीरी" और दूसरा हरे रंग का निशाने मोहम्मद। इसके साथ विधिवत सिपाही बहादुर सरकार का गठन कर लिया गया। इसकी मुनादी करा दी गई। जो लोग नवाब बेगम या अंग्रेज अधिकारियों को टैक्स देते थे उनके इस नई सरकार को टैक्स देने का आदेश दिया गया। यह आठ जुलाई 1857 का दिन था। जब सिपाही बहादुर सरकार स्थापित हुई। इस सिपाही बहादुर सरकार की कमान महावीर कोठे पर वाली मोहम्मद के हाथ में थी। 17 जुलाई को बैरसिया में क्रांति हुई और नवाब बेगम सहित अंग्रेजी ध्वज उतार दिया गया। इसके बाद गढ़ी अंबापानी, बाड़ी, बरेली और छीपानेर तक क्रांति का विस्तार हो गया।

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नवाब बेगम का शासन केवल भोपाल नगर तक

जुलाई माह पूरा होते-होते अंग्रेजों के आधीन नवाब बेगम का शासन केवल भोपाल नगर तक सीमित रह गया था। इसका एक कारण ऐसा था कि क्रांतिकारी सैनिकों में एक बड़ा समूह ऐसा था जो अंग्रेजों से तो मुक्ति चाहता था पर उसका स्वभाव नबाब बेगम के प्रति था। इसलिए क्रांति का यह अभियान भोपाल नगर को छोड़कर आसपास फैला। क्रांति का दमन करने अंग्रेज को तो पंजाब और रुहेलखंड में सैनिकों की नई भर्ती कर ही रहे थे इधर भोपाल बेगम ने भी दो काम किए। एक और मुस्लिम धर्मगुरु सक्रिय किए और दूसरी ओर सैनिकों की भर्ती आरंभ की। मुस्लिम धर्मगुरुओं के प्रभाव से पठान सैनिक क्रांति से अलग हो गए। इससे क्रांतिकारियों की संख्या घटने लगी। दूसरा कारण धन का अभाव था। क्रांतिकारी सैनिक अगस्त के अलावा वसूली नहीं कर पाए। नबाब बेगम और अंग्रेजों ने आरंभ टकराव का रास्ता नहीं अपनाया। केवल जमावट की। अक्टूबर तक पूरी रियासत में अंग्रेज और नवाब बेगम के नये सैनिक तैनात हो गए थे। यह जमावट इतनी तगड़ी थी कि क्रांतिकारी केवल अपने केन्द्रों तक सिमट गए थे। शेष पूरे रियासत में अपना प्रभाव स्थापित कर लिया था। इन कारणों से सीहोर छावनी के सैनिक भी समर्पण करने लगे। वे माफी मांग कर अंग्रेजी कैंप में जाने लगे। तैयारी पूरी करके अक्टूबर माह में सीहोर छावनी के सभी क्रांतिकारी सैनिकों से हथियार ले लिए गए। और उन्हें उनकी ही बैंकों में नजरबंद कर दिया गया।

अंग्रेजों का नया आदेश आया

11 नवंबर 1857 को अंग्रेजों का नया आदेश आया। इस आदेश पर सभी नजरबंद सैनिकों को बंदी बना लिया गया। इनकी संख्या 356 थी। सीहोर छावनी पर नबाब बेगम के सैनिकों का पूरा अधिकार हो गया था, नये अंग्रेज अधिकारी भी आ गये थे। सिपाही बहादुर सरकार का ध्वज उतार कर अंग्रेजी ध्वज के साथ रियासत का ध्वज फहरा दिया गया। लेकिन क्रांति के दमन की विधिवत घोषणा नहीं की गई। इसके लिए अंग्रेज अधिकारी की प्रतीक्षा थी। अंत में क्रांति के दमन के लिये इस क्षेत्र में अंग्रेज जनरल ह्यूरोज की तैनाती हुई। जनरल ह्यूरोज दिसम्बर 1857 के अंतिम सप्ताह महू पहुंचा। महू में भी क्रांतिकारी सैनिकों को बंदी बनाया हुआ था। सभी बंदी क्रांतिकारी सैनिकों का बलिदान हुआ। जनरल ह्यूरोज महू से इंदौर आया। इंदौर में भी क्रांतिकारियों का बलिदान हुआ।

356 क्रांतिकारियों को गोलियों से मारा गया

इंदौर से 11 जनवरी वह सीहोर पहुंचा। जनरल ह्यूरोज के आदेश पर 14 जनवरी 1858 को प्रातः सूर्योदय के साथ सभी बंदी 356 क्रांतिकारियों को जेल से निकाला गया। हथकड़ी और बेड़ियों में जकड़े इन क्रांतिकारी सैनिकों को सीवन नदी किनारे सैकड़ाखेड़ी चांदमारी मैदान में लाया गया। इस मैदान पर सेना का शस्त्राभ्यास होता था। क्रांतिकारियों को बीस बीस की पंक्ति में खड़ा किया गया और गोलियों से भून दिया गया। जनरल ह्यूरोज क्रांतिकारियों के शवों को पेड़ पर लटकाने का आदेश दिया। ताकि आसपास अंग्रेजों का भय व्याप्त हो। दो दिन तक ये शव पेड़ों से लटके रहे। बाद में आसपास फेक दिया गया। ग्राम वासियों ने इसी मैदान में उनका अंतिम संस्कार किया। इस स्थल पर इन क्रांतिकारियों की समाधि बनी हुई है।14 जनवरी मकर संक्रांति का दिन होता है। मकर संक्रांति के दिन इस स्थल पर बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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