मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है और दुष्कर्म पीड़िता को नवजात बच्चे की कस्टडी देने की अनुमति प्रदान की है। पिछले महीने, कोर्ट ने पीड़िता की मांग पर गर्भपात की अनुमति दी थी, और ऑपरेशन के बाद स्वस्थ बच्चे का जन्म हुआ। इसके बाद पीड़िता और उसके परिजनों ने आवेदन किया था कि वे बच्चे को पालना चाहते हैं। कोर्ट ने शनिवार को विशेष बेंच गठित कर इस मामले की सुनवाई की।
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विशेष बेंच का गठन और कोर्ट का आदेश
जस्टिस एके सिंह की विशेष एकलपीठ ने दुष्कर्म पीड़िता को नवजात शिशु की कस्टडी देने का आदेश दिया। कोर्ट ने राज्य शासन को निर्देश दिए कि वह पीड़िता और उसके परिवार को हर संभव मदद प्रदान करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शिशु की मां से बेहतर कोई और उसे नहीं देख सकता, और यदि वह बच्चे की देखभाल करना चाहती है तो यह दोनों के हित में है।
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मां-बच्चे की देखभाल पर कोर्ट का विचार
कोर्ट ने कहा कि नवजात शिशु के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति उसकी मां ही है, और यदि वह बच्चे को पालने के लिए सक्षम है तो यह शिशु के भले के लिए होगा। इस दौरान, कोर्ट ने वीडियो कॉल के जरिए पीड़िता और डॉक्टर से भी बातचीत की।
पीड़िता के साथ हुआ था दुष्कर्म
यह मामला सागर जिले का है, जहां पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया गया था। इस घटना की एफआईआर भी दर्ज की गई थी। पिछले दिसंबर में हुई सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कहा था कि अगर बच्चा जीवित जन्म लेता है, तो उसे पालने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी। अब पीड़िता ने बच्चे की कस्टडी की अनुमति मांगी, जिसे कोर्ट ने मंजूरी दी।
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कोर्ट की संवेदनशीलता और दिशा-निर्देश
कोर्ट ने इस मामले में संवेदनशीलता दिखाई और मां के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए आदेश दिया कि यदि वह अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए सक्षम है, तो उसे यह अधिकार दिया जाए। इसके अलावा, राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि पीड़िता और उसके परिवार को पूरी सहायता मिल सके।
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