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कहते हैं, सत्ता और अफसरशाही की कुर्सी पर बने रहने के लिए मैनेजमेंट मजबूत होना चाहिए। अब एक कलेक्टर साहब को ही देख लीजिए। जिले में हुकूमत भले ही उनकी हो, पर असली बॉस तो मैडम हैं। पूरी डीलिंग वे ही करती हैं। इधर, एक और मैडम अपनी गुप्त विदेश यात्रा को लेकर परेशान हैं। बिना सरकार को बताए सिंगापुर घूम आई थीं, अब यह यात्रा गले की फांस बन गई है। अब मैनेजमेंट में लगी हैं। वहीं, एक आईएएस साहब डेपुटेशन से तंग आकर दिल्ली-मध्यप्रदेश के बीच सेटिंग में व्यस्त हैं। बड़े साहब से मैनेजमेंट करने में लगे हैं। उधर, विपक्ष के नेताजी का मैनेजमेंट गड़बड़ा गया है और डॉक्टर साहब ने पूरा मैनेजमेंट कर लिया है।
खैर, देश-प्रदेश में खबरें और भी हैं, आप सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों और मैनेजमेंट की कहानियां पढ़िए...।
चिंता की बात नहीं, मैडम हैं ना!
ग्वालियर-चंबल के एक जिले में कलेक्टर साहब यूं तो बस नाम के कलेक्टर हैं, असली बॉस तो उनकी मैडम हैं। जी हां, कलेक्टर साहब दफ्तर में फाइलों में बिजी रहते हैं और मैडम बाहर की पूरी डीलिंग संभालती हैं। पत्रकार हों या नेता, सबका मैनेजमेंट मैडम के हाथ में है। वैसे भी कहते हैं कि कलेक्टरी में टिके रहने के लिए प्रशासनिक समझ से ज्यादा 'गृह-प्रशासन' मजबूत होना चाहिए। साहब को इस कला में महारत हासिल नहीं थी, लेकिन सौभाग्य से मैडम ने मोर्चा संभाल रखा है। राजधानी भोपाल तक उनकी पहुंच है। लिहाजा, साहब बेफिक्र होकर कलेक्टरी कर रहे हैं। उन्हें पता है कि जब तक मैडम मैनेजमेंट देख रही हैं, तब तक उनकी कलेक्टरी पर आंच नहीं आ सकती। यही वजह है कि ये साहब लंबे समय से मैदान में तैनात हैं।
हाय राम! विदेश यात्रा बनी गले की फांस...
कुछ काम ऐसे होते हैं, जिन्हें करने के बाद बड़ा पछतावा होता है। गुस्सा आता है और हर पल डर सताए रहता है। अब इसी मामले को देख लीजिए। मैडम जब हेल्थ डिपार्टमेंट में थीं, तब सरकार को बिना बताए गुपचुप सिंगापुर की यात्रा कर आईं। जब तक मामला दबा रहा, तब तक सब ठीक था, लेकिन अब मामला जनता के सामने आ गया है। दरअसल, मैडम अब कलेक्टर बन गई हैं। उन्हें हर पल यह डर सता रहा है कि कहीं सिंगापुर यात्रा की सुनहरी यादें जांच की फाइलों में न सिमट जाएं, क्योंकि सिंगापुर यात्रा की जांच बैठ गई तो उनकी कलेक्टरी पर भी आंच आएगी। अब स्थिति यह है कि मैडम आए दिन अपना जिला छोड़कर मंत्रालय में कार्मिक अफसरों के चक्कर काट रही हैं। उन्हें मैनेज करने की कोशिश में लगी हैं।
साहब का डेपुटेशन पर नहीं लग रहा मन
मध्यप्रदेश कैडर के एक आईएएस अफसर का डेपुटेशन पर मन नहीं लग रहा है। वे प्रदेश में वापसी की जुगाड़ लगा रहे हैं। हालांकि साहब की मंशा कुछ अलग है। वे चाहते हैं कि न तो मध्यप्रदेश छोड़ना पड़े और ना ही दिल्ली की चमक-दमक गंवानी पड़े। लिहाजा, वे इसी सेटिंग में लगे हैं। अपनी प्लानिंग के मुताबिक वे बड़े साहब से सेटिंग जमा रहे हैं कि केंद्र से वापसी के बाद उनकी पोस्टिंग दिल्ली में ही मध्यप्रदेश भवन में आवासीय आयुक्त के पद पर हो जाए। आपको बता दें कि ये साहब लंबे समय से केंद्र में पदस्थ हैं। कुछ समय के लिए कूलिंग पीरियड में ये मध्यप्रदेश आए थे, फिर केंद्र में चले गए। साहब का हिसाब—किताब सही न होने के कारण उनका एडिशनल सेक्रेटरी में इम्पैनलमेंट भी देरी से हुआ है, जबकि उनसे जूनियर अफसर सेक्रेटरी में इम्पैनल हो चुके हैं।
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दशा सुधारने नवग्रह मनाएंगे 'मंत्रीजी'
कभी सूबे के मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में रहे और फिर विधायकी भी गंवा बैठे भाई साब के सितारे लंबे समय से गर्दिश में हैं। वो दिन हवा हुए जब पसीना गुलाब हुआ करता था, अब तो भोपाल वाले बंगले की तरफ भी लोग बमुश्किल ही जाते हैं। फिर क्या, पूर्व मंत्रीजी को चाहने वालों ने सलाह दे डाली “भाई साहब- कुछ कीजिए, लगता है अपने ग्रह- नक्षत्र ही ठीक नहीं चल रहे हैं”... भोपाल से लेकर दिल्ली तक अपने घट गए रुतबे के चलते भाई साहब तो टेंशन में हैं ही, लिहाजा बड़े पंडितों को दिखाया गया। कुछ समय पहले पर्ची देखकर भविष्य बताने वाले बाबा से भी भेंट की गई। लंबे सलाह- मशविरे के बाद जो उपाय निकला उस दिशा में काम शुरू करवा दिया गया है। भाई साहब अब नवग्रह के मंदिर की स्थापना करवा रहे हैं। काम जोरों से जारी है। उम्मीद करते हैं देवी रूठ गई हैं तो शायद कुछ सहायता देव ही कर दें और रुतबा फिर कायम हो सके…
पुलिस मुखिया के सामने बड़ी चुनौती
प्रदेश में हाल ही में हुई घटनाओं से पुलिसवालों का मूड खराब हो गया है। आरक्षक से लेकर एसपी तक हर कोई गुस्से में है। खाकी वाले सोशल मीडिया पर 'ब्लैक डीपी' लगाकर अपना आक्रोश जता चुके हैं। अब ऐसे में खाकी के मुखिया के सामने बड़ी चुनौती है कि वे अपने पुलिसकर्मियों का उत्साह तो बढ़ाएं ही, साथ में खाकी की धमक फिर से कायम करें। पुलिस के मुखिया की ईमानदार अफसरों में तो गिनती होती है, लेकिन उनकी सरलता और सहजता की छवि से पूरा मामला गड़बड़ा रहा है। ऐसे में उन्हें पुलिसिया रौब दिखाकर बताना होगा कि वे सज्जनों के लिए सरल और दुर्जनों के लिए सख्त मिजाज रखते हैं, जल्द ऐसा नहीं हुआ तो मामला बिगड़ जाएगा और फिर वही बात होगी कि जब अब पछताए होत का...जब चिड़िया...!
इस कुर्सी में करंट और कनेक्शन का खेल?
ब्यूरोक्रेसी के गलियारों में इन दिनों सबसे बड़ा सवाल यही है कि विद्युत नियामक आयोग का अध्यक्ष कौन बनेगा? अब मामला यह है कि संघ की सिफारिश चलेगी या मुख्यमंत्री की पसंद? उधर, मुख्य सचिव के करीबी भी पूरी वायरिंग फिट कर रहे हैं। इस पद के लिए 31 आवेदन आ चुके हैं। इनमें 6 रिटायर्ड आईएएस और बाकी टेक्नोक्रेट हैं, सबके चेहरे पर करंट से तेज चमक है। अंदरखानों की मानें तो अपर मुख्य सचिव से रिटायर हुए एक शांत और सहज साहब की किस्मत खुल सकती है। ये कई बड़े विभागों की जिम्मेदारी उठा चुके हैं, अब बिजली विभाग का लोड भी झेलने को तैयार हैं। देखना दिलचस्प होगा कि ये कुर्सी ब्यूरोक्रेटिक फेज से गुजरती है या टेक्नोक्रेटिक सर्किट में जाएगी। फिलहाल, सारा खेल कनेक्शन और करंट का है।
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दिल्ली तक पहुंचेगा विक्रमोत्सव
अपने डॉक्टर साहब इन दिनों फुल फॉर्म में हैं। गति ऐसी कि राजनीति की पिच पर चौके-छक्के मार रहे हैं। विरोधियों को चित कर रहे हैं। उनकी गाड़ी हार्ड हिंदुत्व के हाईवे पर बिना ब्रेक लगाए दौड़ रही है। इसी रफ्तार में उन्होंने अब विक्रमोत्सव को दिल्ली तक ले जाने का मन बना लिया है। 12, 13 और 14 अप्रैल को दिल्ली में भव्य आयोजन की तैयारी है। डॉक्टर साहब हाल ही में दिल्ली गए थे। अब जब मौका मिला तो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को विक्रमोत्सव का न्योता दे दिया। आखिर, बड़ा आयोजन हो तो मेहमान भी बड़े होने चाहिए।
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फिर मुश्किल में पड़े नेताजी
विपक्ष के बड़े नेताजी की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं। अब तक जो लड़ाई सियासी मंचों पर लड़ी जा रही थी, वो अब घर की चौखट तक आ पहुंची है। ताजा मामला पटियाला हाउस कोर्ट का है, जहां नेताजी की पत्नी ने घरेलू हिंसा का केस ठोक दिया है। कोर्ट ने भी बिना देर किए नेताजी को समन जारी कर दिया है। यानी नेताजी को अब जनता से ज्यादा जज साहब के सवालों का जवाब देना होगा। दिलचस्प ये है कि नेताजी की पत्नी ने अदालत में जान का खतरा भी बताया है। वैसे, नेताजी अपनी शादियों को लेकर पहले ही विरोधियों के निशाने पर थे, अब घर का मामला खुद उनके सिर पर तलवार बनकर लटक रहा है। सियासत में विरोधी तो संभाले जा सकते हैं, पर जब घर से हल्ला बोल हो जाए तो बड़े-बड़ों का संतुलन बिगड़ जाता है। अब देखना ये है कि नेताजी इस संकट से बचाव कैसे करते हैं।
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