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यूं कहें तो राजनीति और अफसरशाही की दुनिया में होली तो सालभर चलती है, बस फर्क इतना है कि यहां रंगों की जगह नोटशीटें उड़ती हैं और गुलाल की जगह आरोपों की बारिश होती है। मध्यप्रदेश की सत्ता में इस बार कुछ ऐसे ही रंगीन नज़ारे देखने को मिल रहे हैं। कहीं नेताजी की नोटशीट पर अफसर कुंडली मारकर बैठ गए हैं तो कहीं विपक्ष के लोगों का मंच से ही भरोसा उठ गया है।
राजनीति की होली में मामा अबीर की तरह इस बार भी घुले-मिले हुए हैं। उधर, एक साहब मानो बचत योजना के नए ब्रांड एंबेसडर बन गए हैं, दो-दो रुपए जोड़कर नया ट्रेंड सेट कर रहे हैं। पुलिस कप्तानों की होली भी दिलचस्प हो गई है। कुछ प्रेम में रंगे हैं तो कुछ माल कमाने के नए फॉर्मूले खोज चुके हैं।
...तो आइए, इस होली पर बोल हरि बोल में राजनीति और अफसरशाही के इन किरदारों के किस्सों का आनंद लीजिए, क्योंकि यहां हर दिन कोई न कोई नया रंग जरूर उड़ता है और इस बार के रंग ज्यादा गहरे हैं।
नोटशीट का नोटंकी नाटक
स्कूल वाले नेताजी इन दिनों बड़े चिंतित हैं। अफसर-कर्मचारी उन्हें ऐसे तंग कर रहे हैं मानो वे किसी परीक्षा में फेल होने वाले छात्र हों और ये सब उनके सख्त टीचर। अब देखिए, एक अफसर को हटाना था तो नेताजी को बाकायदा नोटशीट लिखनी पड़ी, लेकिन अफसरों की चालाकी देखिए कि उन्होंने नोटशीट ही दबा ली। आपको बता दें कि नेताजी ने पिछले महीने की तीन तारीख को सात में दिन में कार्रवाई के निर्देश दिए थे, लेकिन एक महीने बाद तक कुछ नहीं हो सका है। उलटा संचालक ने सफाई में एक चिट्ठी विभाग के सचिव को लिखी है। अब नेताजी को सूझ ही नहीं रहा कि इस अफसरशाही से निपटा कैसे जाए? हम तो यहीं कहेंगे भैया, होली की इस बेला में सब रंग एक हों और छींटाकसी से पूरा जनता की भलाई के काम हों।
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लड़ाई-लड़ाई बंद करो...
विपक्ष की लीला अपरंपार ही है। नेता तो छोड़िए मंच तक नहीं संभल रहे। विधानसभा सत्र के बीच यह दूसरा मौका है, जब नेताओं की भीड़ से मंच टूट गया। बस फिर क्या था...मंच गिरते ही आरोपों की बाढ़ आ गई। किसी ने कहा, मंच कमजोर था। कोई बोला, मंच ही नहीं, रणनीति कमजोर है। फिर सुझाव आया कि नेताओं को मंच की ऊंचाई से नहीं, बल्कि जनता के बीच जमीन पर बैठकर उनकी समस्याएं सुननी चाहिए। इन सबके बीच अब राजा साहब ने नसीहत दी है कि मंच की लड़ाई छोड़ो, महंगाई-बेरोजगारी पर बोलो। उधर, जनता भी कंफ्यूज है कि विपक्ष को समस्याएं बताएं या मजबूत मंच बनाने की अपील करें। तो मित्रो! आज भाईदूज पर विपक्ष के सभी भाई एक-दूजे से वादा करें कि संगठन को मजबूत बनाएंगे, ना कि एक-दूजे पर आरोप-प्रत्यारोप करेंगे।
मामा की राजनीति, दर्शक दीर्घा से दिल तक...
मध्यप्रदेश की राजनीति में मामा का जलवा ऐसा है कि वे सिंहासन पर रहें या न रहें, चर्चा में बने रहते हैं। अब देखिए न, बजट सत्र के बीच जब सब वित्त मंत्री का भाषण सुन रहे थे, तब मामा अचानक विधानसभा पहुंचे और दर्शक दीर्घा में जा बैठे। जैसे ही डॉक्टर साहब ने ऐलान किया कि हमारे बीच कृषि मंत्री जी हैं तो सबका ध्यान घूम गया। फिर वही हुआ, जो होता है...तालियां बजीं, स्वागत हुआ और कैमरे की किसिक—किसिक हुई। अब जिनका मन मामा विरोध में धड़कता है, वे कह रहे हैं कि मेल मुलाकात बंगलों पर भी हो सकती थी। अब आप तो जानते हैं कि मामा ठहरे राजनीति के माहिर खिलाड़ी। उन्हें पता है कि जहां भीड़ होती है, वहीं सुर्खियां बनती हैं।
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नौशाद, जावेद और फरहान कौन हैं ये?
बीजेपी सरकार का नाम आते ही आपके मन में सबसे पहले हिंदुत्व और सनातन आता होगा। सही भी है, देश को इस राह पर ले जाने का श्रेय बीजेपी को ही जाना चाहिए। लेकिन आज हम आपको चौंकाने वाली बात बताने जा रहे हैं। दरअसल, बीजेपी सरकार में अल्पसंख्यक नेता और अफसरों का भला भले ही ना हो, पर दलालों की बात करें तो सबसे ज्यादा भरोसा इन्हीं पर किया जाता है। ये हम नहीं कह रहे, आंकड़े ही बता रहे हैं। अब देखिए न, पिछली सरकार में इब्राहिम ने पूरा जनसंपर्क चलाया। फरहान ने बड़ी डील करवाईं। अब नई सरकार में नौशाद, जावेद और फरहान खेल कर रहे हैं। ये बड़े दलाल बने बैठे हैं। हां, भाई, बड़े मतलब 50 करोड़ से ऊपर की डील वाले। सीधा सा मतलब है कि माल के आगे सब कुछ जायज है भाई...और बुरा न मानो होली है!
साहब की जिद ने कराई किरकिरी
मध्यप्रदेश कैडर के एक आईएएस जिद में खुद की ही फजीहत करवा ली है। अब देखिए, डेपुटेशन पर मजे कर रहे थे, पॉवर डिपार्टमेंट के गेस्ट हाउस में टिके थे, लेकिन मसला दो-दो रुपए जोड़ने का था। साहब की गिनती वैसे तो ऊंचे अफसरों में होती है, लेकिन खर्चे के मामले में मिडिल क्लास वाली सतर्कता दिखा रहे थे। केन्द्र सरकार से पूरा किराया लिया, मगर गेस्ट हाउस में आधा ही भरा। शुरुआत में उन्हें कहा भी गया कि पूरा किराया दीजिए, पर साहब अपनी बचत नीति पर अड़े रहे। आखिरकार, गेस्ट हाउस वालों ने वसूली की चिट्ठी जारी कर दी। और अब ये चिट्ठी सोशल मीडिया में घूम रही है, लोग साहब की इस बचत योजना के किस्से चटखारे लेकर पढ़ रहे हैं।
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रंगीन मिजाज कप्तानों का हटना तय
महिला प्रेम में उलझे कप्तानों की पुलिस मुख्यायल में वापसी होना तय हो गई है। जल्द ही पुलिस अफसरों की भारी भरकम लिस्ट आने वाली है, इनमें इन कप्तानों का नाम शामिल है। प्यार मोहब्बत के मामले में दो पुलिस कप्तानों के नाम सार्वजनिक होने के बाद दूसरे जिलों के कप्तानों ने अपनी प्रेमिकाओं से दूरी बना ली है, उन्हें डर है कि कहीं तबादलों के मौसम में सोशल मीडिया पर कहीं कोई बात लीक न हो जाए। हमें तो उनके नाम पता है, लेकिन भाई राजी राजी होने वाला इश्क बुरा नहीं है। सिर्फ पद की गरिमा को बचाकर रखिए।
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माल कमाने का नया फंडा
कप्तान अब स्मार्ट हो गए हैं, यानी हवन की आंच हाथ पर न आए, इसलिए अब बड़े चम्मच से हवन करने लगे हैं। नहीं समझे, बताते हैं। पहले पुलिस कप्तानों के खिलाफ शिकायत आती थी कि वो माल के फेर में जुआ और सट्टा चलवा रहे हैं। इससे लॉ एंड ऑर्डर तो खराब होता ही था और सरकार की छवि पर भी असर पड़ रहा था। लिहाजा, नए कप्तानों ने नया फंडा सीख लिया है। अब वे बड़ी मछलियों को पकड़ रहे हैं। इसके तहत बड़ी जमीनों की डील में मांडवाली कराई जा रही है। इसमें न तो अपराधियों को संरक्षण देना होता है ना ही कानून व्यवस्था बिगड़ती है। इस तरह बड़े शहरों में विवादित जमीनों के काम अब कप्तान ही निपटा रहे हैं।
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