बोल हरि बोल : संत बनने की राह पर एक अफसर और कप्तान साहब बाहरवाली के चंगुल में फंसे!

एक कप्तान मैडम अपने कप्तान साहब की हरकत से बुरा मान गई हैं। दरअसल, साहब ने बाहरवाली से प्यार करके भयंकर काम किया है। पढ़िए पूरा किस्सा 'द सूत्र' पर...

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Harish Divekar
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होली कब है, कब है होली...। हां भैया आ गई होली। अगले जुमे को अबीर, गुलाल और रंगे उड़ेंगे। इसी के बाद उड़ेंगे कुछ अफसरों के चेहरे के रंग तो कोई मुस्कुराएगा। माना जा रहा है कि बजट सत्र के बाद डॉक्टर साहब एक बार फिर प्रशासनिक सर्जरी करने वाले हैं। खाकी वालों की तो लिस्ट तक तैयार है। अब कहते हैं न कि बुरा न मानो होली है, पर यहां एक कप्तान मैडम अपने कप्तान साहब की हरकत से बुरा मान गई हैं। दरअसल, साहब ने बाहरवाली से प्यार करके भयंकर काम किया है। परिणाम यह है कि अब उनकी गृहस्थी डगमगा गई है। भोपाल में फ्रस्टेड अफसरों के चर्चे भी खूब हैं। इसका नतीजा यह है कि इस नैराश्य में वे मन लगाकर काम करने से ज्यादा अपनी पीड़ा सुनाने में बिजी रहते हैं। 

खैर, देश—प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए। 

नेताजी देखिए तो सही उल्टी गंगा बह रही है!

सूबे के पूर्व सरकार जब भाषण देते हैं तो लगता है मानो पूरे देश में महिला सशक्तिकरण की गंगा वही बहा रहे हो। अब देखिए, कह रहे हैं कि महिलाओं को चुनाव में 33 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। उधर, हकीकत यह है कि प्रदेश के 413 नगरीय निकायों में 220 की कमान महिलाओं के हाथ में है, लेकिन असल में इनमें से 57 निकायों की सरकार घर के माननीय यानी पति-बेटे चला रहे हैं। 105 जगह रिश्तेदारों की भी रहनुमाई चल रही है। सिर्फ 58 निकायों में ही महिलाएं खुद फैसले ले रही हैं। अब नेताजी को सब कुछ पता तो है, लेकिन महिला दिवस पर महिला हितैषी बनने का मौका कैसे छोड़ें? भाई, पहले जो महिलाएं चुनकर आई हैं, उन्हें तो सशक्त बनाइए। कम से कम उन्हें उनके पद का हकदार बना दीजिए, फिर चाहे 33 प्रतिशत दीजिए या 50 फीसदी, कोई ऐतराज नहीं...। 

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साहब की फटकार और प्रशस्ति पत्र  

डॉक्टर साहब के निर्देश के बाद बड़े साहब इन दिनों मिशन मोड में हैं। जमीनी स्तर पर जो अफसर काम नहीं कर रहे, उन्हें जमकर फटकार रहे हैं और जो बढ़िया काम कर रहे, उनकी पीठ थपथपा रहे हैं। ताजा किस्सा भोपाल संभाग के जिले का है, जहां कलेक्टर साहब ने केंद्र सरकार की योजनाओं में जिले का नाम रोशन कर दिया। बस, फिर क्या था। बड़े साहब ने प्रशस्ति पत्र देकर उनका हौसला बढ़ाया। उधर, सुस्त अफसरों की क्लास लगाई। असल में इस जिले के पहले वाले कलेक्टर साहब काफी चर्चित थे। ऐसे में नए साहब के सामने नई लकीर खींचने की चुनौती थी। उन्होंने बड़े साहब के मूड को भांपकर केंद्र सरकार की योजनाओं में जिले को चमका दिया। अब बड़े साहब दिल्ली से लौटे हैं, तो जाहिर है उनकी प्राथमिकताएं भी दिल्ली की नीतियों के हिसाब से हैं, इसीलिए उन्होंने कलेक्टर साहब को भूरी-भूरी प्रशंसा की। 

घरवाली से ज्यादा प्यारी बाहरवाली!

ये साहब यूं तो कानून के रखवाले हैं, पर दिल के मामले में नियम-कायदे कौन देखता है। किस्सा महाकौशल अंचल के एक जिले का है। यहां पदस्थ कप्तान साहब इन दिनों किसी अपराधी को पकड़ने से ज्यादा बाहरवाली को संभालने में व्यस्त हैं। इधर मैडम भी पुलिस में कप्तान हैं, पर वे दूसरे जिले में तैनात हैं। अब साहब अकेले क्या करें, अकेलापन खतरनाक होता है। बाहरवाली ने भी साहब की तन्हाई का ऐसा इलाज किया कि बेचारे फंस ही गए। अब तक मामला दबा-छिपा था, पर कहते हैं न, किसी को दूसरों की खुशियां रास नहीं आतीं। साहब की टीम के एक सदस्य ने रंगरलियों के फोटो-वीडियो सीधे कप्तान मैडम तक पहुंचा दिए। अब साहब की गृहस्थी डगमगा गई है। मैडम भी कप्तान हैं तो बाहरवाली भी खतरे में है। कभी भी कोई मुकदमा दर्ज हो सकता है। 

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कलेक्टर, कप्तान और नेताजी! 

नर्मदापुरम अंचल के एक जिले कप्तान साहब कानून-व्यवस्था संभालने में इतने मशगूल हो गए कि राजनीति के अघोषित नियम भूल बैठे। कांग्रेस विधायक की शिकायत आई और साहब ने बिना सोचे-समझे भाजपा के एक कार्यकर्ताओं पर मुकदमा ठोक दिया। अब ये भूल तो भारी पड़नी ही थी। देखते ही देखते भाजपा मंडल अध्यक्ष से लेकर जिला अध्यक्ष तक तिलमिलाए और थाने की घेराबंदी की तैयारी शुरू हो गई। मामले की गर्मी कलेक्टर तक पहुंची तो उन्होंने कप्तान और भाजपा नेताओं को बंगले पर बुला लिया। पहली ही बैठक में माहौल गरमाया गया, लेकिन कलेक्टर ने समझाइश, चाय-पानी और अनौपचारिक वार्ता से मामला ठंडा कर दिया। अब कप्तान साहब भी सीख गए कि कानून का पालन करना ठीक है, लेकिन राजनीति में संतुलन बनाए रखना उससे भी ज्यादा जरूरी है। आखिर, लॉ एंड ऑर्डर से ज्यादा पार्टी एंड ऑर्डर मायने रखता है।

संत बनना चाहते हैं साहब! 

मंत्रालय में पदस्थ एक प्रमुख सचिव अब मोह-माया त्यागने का मन बना चुके हैं। उनका कहना है कि नौकरी के तनाव ने उन्हें चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना दिया है। अब वो किसी फाइल पर साइन करने से ज्यादा ध्यान विपश्यना में लगाना चाहते हैं। वीआरएस लेने की बातें इस अंदाज में कर रहे हैं, जैसे कोई संन्यासी संन्यास की घोषणा कर रहा हो। असल में हाल ही में एक अपर मुख्य सचिव ने वीआरएस लिया है। अब इसके बाद इन साहब को भी वैराग्य सताने लगा। मंत्रालय में जब-तब बोल ही देते हैं पता नहीं कब तक इस नौकरी में हूं, जल्द ही वीआरएस ले लूंगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन दिनों ये साहब बड़े साहब के चहेते अफसरों में शुमार हैं। अभी महत्वूपर्ण विभाग की कमान संभाल रहे हैं।

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कुर्सी का खेल और फ्रस्टेड अफसर

कुर्सी बड़ी ही चमत्कारी चीज होती है। जब तक पास रहती है इंसान सरल, सहज और सौम्य बना रहता है, लेकिन ज्यों ही फिसली, सबका मिजाज आसमान पर पहुंच जाता है। अब देखिए न, अच्छी पोस्टिंग नहीं मिलने से कई आईएएस अफसर विंध्याचल भवन और सतपुड़ा भवन में निराश बैठे हैं। स्थिति ये है जो अधिकारी कल तक मीठी मुस्कान के साथ मिलते थे, वही अब किसी के आते ही भड़ास उड़ेलने में लग जाते हैं। बेचारे मिलने वाले सोचते हैं कि सरकारी दफ्तर आए हैं या फ्रस्टेशन थेरेपी सेंटर में घुस गए। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यूं तो अब इनके पास कोई जाता नहीं, लेकिन अगर चला जाए तो अधिकारियों के अंदर दबा गुस्सा दरवाजे से लेकर कुर्सी तक छलक जाता है। खैर, ऐसे अफसरों के लिए ताजा अपडेट यह है कि बजट के बाद डॉक्टर साहब एक बार फिर सर्जरी करने वाले हैं। मतलब, अगर कोई फिर से पावर वाली कुर्सी चाहता है तो मेहनत करें। 

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होली लाएगी खुशियां और गम?

जो आईपीएस अफसर अब तक कानून-व्यवस्था संभाल रहे थे, वे इस महीने अपनी नई जिम्मेदारियों की फाइल संभालने वाले हैं। जी हां, सरकार के दरबार में फाइल पहुंच चुकी है और अब बस उस पर दस्तखत होने की देरी है। मतलब, खाकी वाले अफसरों के लिए मार्च का महीना बसंत नहीं, तबादलों की चिट्ठी लेकर आ रहा है। खबरों की मानें तो जिलों के कप्तान से लेकर रेंज के एडीजी, आईजी तक इस फेरबदल में शामिल होंगे। कुछ एडीजी और स्पेशल डीजी के विभाग भी बदल सकते हैं, यानी साहब लोग होली का रंग खेलने की बजाय फाइलों के रंग बदलने में व्यस्त रहेंगे। वैसे, जिनके नाम पीएचक्यू की सूची में अहम जिम्मेदारी के लिए दर्ज हैं, वे पहले से ही ख्वाबों में सेल्फी खींच रहे हैं। ...तो इंतजार कीजिए, होली के रंगों से पहले ये आदेश आ जाए तो कुछ अफसर गुलाल उड़ाएं और कुछ सिर पकड़कर बैठ जाएं।

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