GST Reforms: बिना बिके स्टॉक का बदलेगा MRP, कंपनियों को मिली 31 दिसंबर 2025 तक की मोहलत

भारत में जीएसटी परिषद के हालिया फैसले के तहत एफएमसीजी उत्पादों पर जीएसटी दर 12% और 18% से घटाकर 5% कर दी गई है। इससे उपभोक्ताओं को सस्ते उत्पाद मिलेंगे, कंपनियों को पुरानी पैकेजिंग पर नए दाम अपडेट करने में परेशानी होगी, इसके लिए सरकार ने बड़ी राहत दी है।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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भारत में जीएसटी परिषद(GST Council Decisions) के हालिया फैसले के बाद एफएमसीजी सेक्टर में एक बड़ी हलचल मच गई है। रोज़मर्रा इस्तेमाल के ज्यादातर उत्पाद—जैसे साबुन, शैम्पू, बिस्किट और पैक्ड फूड्स—पर टैक्स घटा दिया गया है। पहले 12% और 18% जीएसटी चुकाने वाले ये प्रोडक्ट अब 22 सितंबर से सिर्फ 5% जीएसटी के दायरे में आ चुके हैं।

खुशी की बात उपभोक्ताओं के लिए है कि दाम घटेंगे, लेकिन कंपनियों के लिए यह लॉजिस्टिक और पैकेजिंग का बड़ा सिरदर्द बन गया है। वजह—पुराना स्टॉक पहले ही छपकर बाजार में या गोदामों में पड़ा है, जिस पर पुराना MRP लिख हुआ है। इसी दुविधा को सुलझाने के लिए सरकार ने एक अहम कदम उठाया है।

सरकार ने दी राहत: पुराना स्टॉक भी बदलेगा दाम

उपभोक्ता मामलों के विभाग की अधिसूचना के मुताबिक अब कंपनियां अपने अनबिके स्टॉक का MRP दोबारा घोषित कर पाएंगी। यानी पहले से पैक किए गए उत्पादों पर नया GST लागू करते वक्त(अनबिके स्टॉक MRP) कीमत नई दिखाई जा सकेगी।

सरकार ने कंपनियों को 31 दिसंबर 2025 तक की राहत दी है। इस अवधि में:

पुरानी पैकेजिंग पर स्टिकर, मुहर या ऑनलाइन प्रिंटिंग से संशोधित कीमत बताई जाएगी।

यह जरूरी होगा कि पुराना MRP भी दिखाई दे, और उसके साथ नई कीमत दर्ज की जाए, ताकि उपभोक्ता को पारदर्शिता मिले।

कीमत में फर्क सिर्फ और सिर्फ जीएसटी रेट में बदलाव की वजह से होना चाहिए, न कि किसी अन्य लागत या लाभ के कारण।

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कंपनियों की जिम्मेदारी

अधिसूचना में साफ कहा गया है कि कंपनियों को इस बदलाव की जानकारी सिर्फ प्रोडक्ट पर दिखाना ही नहीं, बल्कि औपचारिक रूप से जनता और सरकार को भी देनी होगी। इसके लिए:

कम-से-कम दो राष्ट्रीय या क्षेत्रीय अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करने होंगे।

सभी डीलरों और वितरकों को जानकारी देनी होगी।

विधिक माप विज्ञान विभाग (Legal Metrology Department) और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के नियंत्रकों को भी यह सूचना देनी होगी।

साथ ही, जिन कंपनियों के पास पुरानी पैकेजिंग मैटीरियल या रैपर पहले से छपकर पड़े हैं, वे उन्हें भी 31 दिसंबर, 2025 तक इस्तेमाल कर सकते हैं—बस यह शर्त होगी कि उसपर नई कीमत स्टिकर/प्रिंटिंग से साफ-साफ दिखनी चाहिए।

यह नियम क्यों जरूरी है?

पुराने रैपर और पैकेजिंग मैटीरियल की बर्बादी FMCG से लेकर फ़ार्मा कंपनियों तक के लिए करोड़ों रुपये का नुक़सान कर सकती थी।

पैकेजिंग मैटीरियल का स्टॉक अक्सर 2-3 महीने पहले से छापकर तैयार रखा जाता है।

अगर जीएसटी बदलाव को तुरंत लागू करना पड़ता और पुरानी पैकेजिंग न चलती, तो लाखों पैकेज और बॉक्स बेकार हो जाते।

सरकार का यह फैसला कंपनियों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए win-win माना जा रहा है—उद्योगों को राहत और उपभोक्ताओं को कम कीमत पर पारदर्शी जानकारी।  

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GST Reforms 2025 और कंपनियों पर इसके असर को ऐसे समझें 

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जीएसटी में बदलाव: 22 सितंबर से FMCG उत्पादों जैसे साबुन, शैम्पू, बिस्किट और पैक्ड फूड्स पर 12% और 18% से घटाकर 5% जीएसटी लागू किया जाएगा।

पुराना स्टॉक और MRP में बदलाव: कंपनियां अपने पुराने स्टॉक(Unsold Stock MRP Change) पर नई जीएसटी दर के अनुसार FMCG MRP Update कर सकेंगी, और यह बदलाव 31 दिसंबर 2025 तक लागू रहेगा।

पैकेजिंग पर स्टिकर/मुहर: पुरानी पैकेजिंग पर स्टिकर, मुहर या प्रिंटिंग के माध्यम से नई कीमत दिखाने की अनुमति दी गई है, ताकि उपभोक्ता को पारदर्शी जानकारी मिल सके।

कंपनियों की जिम्मेदारी: कंपनियों को इस बदलाव की जानकारी अखबारों, डीलरों और नियंत्रकों को देना होगा, और पुरानी पैकेजिंग का इस्तेमाल जारी रखने की छूट भी दी गई है।

उपभोक्ताओं को फायदा:GST दरों में बदलाव से उपभोक्ताओं को कम कीमत पर उत्पाद मिलेंगे, और उन्हें यह सुनिश्चित होगा कि पुराने दाम पर कोई अतिरिक्त राशि नहीं ली जा रही है।

एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

ईवाई (EY) में टैक्स पार्टनर सौरभ अग्रवाल ने इस फैसले को समय पर और व्यावहारिक बताया। उन्होंने कहा,

“स्टिकर या मुहर के जरिए कीमतें अपडेट करने की अनुमति एक बड़ा कदम है। इससे ग्राहकों को भी पारदर्शी जानकारी मिलेगी और कंपनियों को पुरानी पैकेजिंग फेंकने की मजबूरी से बचाया जा सकेगा।”

अग्रवाल ने यह भी कहा कि यह राहत खासतौर से:

एफएमसीजी कंपनियों,

फार्मास्युटिकल सेक्टर और

बड़े पैकेजिंग इन्वेंट्री रखने वाले उद्योगों के लिए जीवनदान जैसी है।

उपभोक्ताओं को क्या फायदा?

सीधी भाषा में समझें तो, अगर किसी साबुन या बिस्किट का रैपर पहले से छपकर पुरानी कीमत ₹25 दिखा रहा है, लेकिन अब उस पर लागू जीएसटी घटने से कीमत ₹23.50 हो रही है, तो कंपनी यह नई कीमत स्टिकर या मुहर से जोड़कर स्पष्ट दिखा पाएगी।

इससे उपभोक्ताओं को यह भरोसा मिलेगा कि उन्हें घटे हुए टैक्स का सीधा लाभ दिया जा रहा है और कोई कंपनी अपने फायदे के लिए पुराने दाम वसूल नहीं रही है।

चुनौतियां भी हैं

हालांकि इस पूरी प्रक्रिया को लागू करना FMCG इंडस्ट्री के लिए आसान नहीं होगा।

देशभर में लाखों खुदरा दुकानों और सुपरमार्केट्स तक नई MRP की जानकारी पहुंचाना लंबा काम है।

डीलरों और सप्लाई चेन पार्टनर्स को अपडेटेड कीमत पर प्रोडक्ट उठाना और बेचना होगा।

कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि स्टिकर गुणवत्ता में खराब न हों और सही-सही पढ़े जा सकें।

फिर भी, “कर राहत” को देखते हुए उद्योग जगत इसे बड़ी राहत मान रहा है।

अब आगे क्या?

22 सितंबर से लागू हुए इस बदलाव के बाद FMCG कंपनियां अब तेजी से अपने स्टॉक पर नए दाम दर्ज करने में जुट जाएंगी। 31 दिसंबर 2025 तक की समयसीमा उन्हें कम-से-कम 3 महीने का समय देती है ताकि बाजार में किसी भी तरह का भ्रम या कमी न रहे।

उद्योग जगत की राय है कि यह मॉडल भविष्य के लिए भी एक मिसाल हो सकता है—जहां टैक्स बदलाव का लाभ सीधे उपभोक्ताओं को पहुंचाने के लिए स्टिकर या डिजिटल प्रिंटिंग का रास्ता सहज बना है।

संदर्भ (Sources):
उपभोक्ता मामले मंत्रालय की अधिसूचना (सितंबर 2025)

जीएसटी परिषद का निर्णय (सितंबर 2025 बैठक)

बिजनेस स्टैंडर्ड, सितंबर 09, 2025

EY Tax Expert Analysis

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