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Photograph: (TheSootr)
भारत सरकार ने हाल ही में स्कूली शिक्षा को सस्ता बनाने का एक बड़ा निर्णय लिया। जीएसटी काउंसिल (GST Council) ने बच्चों की पढ़ाई से जुड़ी सामग्रियों को टैक्स से मुक्त कर दिया। इसमें नोटबुक (Notebooks) भी शामिल हैं, जिन पर अब कोई टैक्स नहीं लगेगा। पहले इन पर 12 प्रतिशत जीएसटी (GST) लागू था, जिसे अब पूरी तरह हटा दिया गया है। इसे बच्चों के लिए सस्ती कॉपी उपलब्ध कराने का कदम माना जा रहा था, लेकिन इसकी वास्तविकता बिल्कुल उलट है।
इस निर्णय को लेकर व्यापक बहस चल रही है, क्योंकि सरकार ने जहां नोटबुक को टैक्स मुक्त किया है, वहीं कागज (Paper) पर टैक्स बढ़ा दिया है। अब कागज पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाएगा, जबकि पहले यह 12 प्रतिशत था। कागज की कीमत में वृद्धि का असर नोटबुक के निर्माण पर पड़ेगा, जिससे अंततः स्कूली बच्चों को महंगी कॉपी खरीदनी पड़ेगी।
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सरकार का यह कदम बच्चों के हित में नहीं
राजस्थान के कागज कारोबारी और नोटबुक निर्माता गिरधारी मंगल ने इस सरकार के निर्णय पर कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि सरकार ने नोटबुक पर जीएसटी मुक्त कर दिया है, लेकिन कागज पर जीएसटी बढ़ा दिया है, जिससे नोटबुक की कीमत में लगभग 6 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इसका असर पाठ्य पुस्तकों (Textbooks) पर भी पड़ेगा, क्योंकि ये किताबें भी इसी कागज से बनती हैं। गिरधारी मंगल ने यह भी कहा कि इस निर्णय से स्कूली बच्चों को महंगी किताबें मिलेंगी, जो पहले से ही महंगी हो चुकी थीं। ऐसे में सरकार के इस फैसले से बच्चों और अभिभावकों को केवल परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
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कागज पर 18% जीएसटी क्यों बढ़ाया गया?
केंद्र सरकार ने इस निर्णय को लागू करते समय कागज के उत्पादन में होने वाली लागत को ध्यान में नहीं रखा। कागज की कीमत में वृद्धि सीधे तौर पर नोटबुक और पाठ्य पुस्तकों की उत्पादन लागत को प्रभावित करती है। जब कागज पर 18% जीएसटी लगाया जाता है, तो यह लागत में वृद्धि का कारण बनता है। इसका असर न केवल कागज निर्माताओं पर पड़ेगा, बल्कि इसका अंतिम प्रभाव बच्चों की पढ़ाई पर भी दिखेगा, क्योंकि महंगी किताबों और नोटबुक की खरीदारी करना अभिभावकों के लिए एक अतिरिक्त बोझ बन जाएगा।
जीएसटी क्या है?
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सरकारी फैसले पर सवाल
इस फैसले पर सवाल उठाते हुए, चार्टर्ड अकाउंटेंट शैलेन्द्र सक्सेना ने कहा कि सरकार के वित्त विभाग में बैठे अधिकारियों को जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। उनका मानना है कि इस प्रकार के विरोधाभासी निर्णयों से स्कूलों और अभिभावकों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। शैलेन्द्र सक्सेना का कहना है कि सरकार को इस निर्णय पर तत्काल स्थिति साफ करनी चाहिए। अगर नोटबुक टैक्स मुक्त हैं, तो कागज पर 18% जीएसटी लगाने का निर्णय समझ से बाहर है। इस प्रकार के निर्णय से न केवल छात्रों और अभिभावकों को कठिनाई होगी, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा।
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टैक्स मुक्त नोटबुक का सही अर्थ
सरकार का यह निर्णय पहली नजर में बच्चों के लिए राहत देने जैसा लग सकता है, लेकिन जब इसे समझा जाता है, तो इसका उल्टा असर दिखाई देता है। जब कागज पर टैक्स बढ़ाया जाएगा, तो नोटबुक बनाने की लागत भी बढ़ेगी। हालांकि नोटबुक टैक्स मुक्त हैं, लेकिन कागज पर बढ़े हुए टैक्स का बोझ अंततः छात्रों और उनके अभिभावकों पर ही पड़ेगा। इससे यह सवाल उठता है कि सरकार के इस फैसले से क्या वास्तव में बच्चों की पढ़ाई को सस्ता किया जा रहा है या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक कदम है?
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कागज पर जीएसटी बढ़ाने का शिक्षा पर असर क्या होगा?
स्कूली शिक्षा को सस्ता बनाने के नाम पर सरकार का यह कदम पहले तो आकर्षक लगता है, लेकिन जब इसकी गहराई में जाकर देखा जाता है, तो यह स्कूली बच्चों और उनके अभिभावकों के लिए एक अतिरिक्त बोझ बन जाता है। कागज पर बढ़े हुए जीएसटी के कारण नोटबुक और पाठ्य पुस्तकें महंगी हो जाएंगी, और इससे स्कूलों के लिए भी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
इससे जुड़ी एक और चिंता यह है कि इस बढ़ी हुई कीमत का असर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों पर पड़ेगा। ऐसे में सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए और एक ऐसा समाधान खोजने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे शिक्षा की लागत में कमी आए, न कि बढ़े।
डीजीजीआई क्या है?
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कागज पर जीएसटी बढ़ाने के फैसले से शिक्षा प्रणाली पर क्या असर पड़ेगा?
शिक्षा प्रणाली (Education System) पर इस निर्णय का दीर्घकालिक असर हो सकता है। जहां एक ओर सरकार का उद्देश्य शिक्षा को सस्ता करना था, वहीं दूसरी ओर इस फैसले से विद्यार्थियों की पढ़ाई की लागत बढ़ सकती है। कागज पर जीएसटी बढ़ाने से जो अतिरिक्त लागत आएगी, वह सीधे तौर पर बच्चों की पढ़ाई को महंगा बना सकती है।
यह निर्णय शिक्षण संस्थाओं, विशेष रूप से सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की पहुंच को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि यहां पढ़ने वाले बच्चे पहले से ही वित्तीय दबाव का सामना कर रहे हैं। ऐसे में इस निर्णय पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
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