अद्भुत सफलता : चरवाहे का बेटा बना IPS अफसर, पहले ही प्रयास में पास कर ली UPSC

महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले की कागल तहसील के यमगे गांव में जन्मे बिरुदेव सिद्धाप्पा ढोणे ने सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों में पले-बढ़े बिरुदेव ने पहले ही प्रयास में युपीएससी की परीक्षा पास कर 551वीं रैंक प्राप्त की।

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Reena Sharma Vijayvargiya
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महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के कागल तहसील के यमगे गांव से ताल्लुक रखने वाले बिरुदेव सिद्धाप्पा ढोणे ने वो कर दिखाया, जिसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। एक धनगर परिवार में जन्मे बिरुदेव ने संसाधनों की कमी के बावजूद पहले ही प्रयास में युपीेएससी की परीक्षा पास कर ली और 551वीं रैंक हासिल की।

जिसने कभी सिर पर गांधी टोपी, खंभे पर टंगा कंबल, हाथ में लकड़ी और पैरों में पारंपरिक धनगढ़ी चप्पल पहनकर बकरियां चराई थीं, वही अब भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) का अधिकारी बन गया है।

बिरुदेव की इस अद्भुत सफलता से सिर्फ कोल्हापुर ही नहीं, बल्कि पूरा महाराष्ट्र गर्वित है। उनके परिवार में माता-पिता, एक विवाहित बहन और एक भाई हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब मोबाइल चोरी होने पर एफआईआर दर्ज करवाने की जहमत तक नहीं उठाई, लेकिन अब वही बिरुदेव मेहनत और संकल्प की मिसाल बनकर उभरे हैं।

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देशभर में 551वीं रैंक हासिल

बिरुदेव के मामा के गांव में जैसे ही खबर आई कि वह यूपीएससी की प्रतिष्ठित परीक्षा में पास हो गया है, एक दोस्त दौड़ते हुए आया और जोर से चिल्लाया बिरुदेव, तुम अफसर बन गए हो! उस वक्त वहीं मौजूद अनपढ़ माता-पिता को बस इतना समझ में आया कि उनका बेटा अब 'साहब' बन गया है। यह सुनते ही पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। बिरुदेव ने 2024 में अपने पहले ही प्रयास में संघ लोक सेवा आयोग (युपीएससी) की परीक्षा पास कर ली और देशभर में 551वीं रैंक हासिल की। यह उपलब्धि कागल तहसील के इतिहास में एक मील का पत्थर है, क्योंकि बिरुदेव इस क्षेत्र से यूपीएससी पास करने वाले पहले छात्र बने हैं।

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सपने की शुरुआत एक चुनौती से

बिरुदेव के जीवन में यूपीएससी का सपना एक छोटी सी घटना से जन्मा था। एक बार उसका मोबाइल गुम हो गया और जब वह शिकायत दर्ज कराने पुलिस स्टेशन गया, तो उसे वहां मदद नहीं मिली। यही अनुभव उसके मन में गहरी छाप छोड़ गया। तभी उसने ठान लिया कि वह आईपीएस अधिकारी बनेगा, ताकि सिस्टम का हिस्सा बनकर लोगों की मदद कर सके।

इसके बाद बिरुदेव ने खुद को पूरी तरह से तैयारी में झोंक दिया। वह रोज़ 22 घंटे तक पढ़ाई करता, नींद और आराम की परवाह किए बिना सिर्फ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता गया। यूपीएससी की तैयारी के लिए उसने दिल्ली का रुख किया और तमाम संघर्षों के बीच मां-बाप का सपना साकार किया।

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शिक्षा की मजबूत नींव

बिरुदेव शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहा। उसने कक्षा 10वीं और 12वीं में मुरगुड केंद्र से टॉप किया। इसके बाद उसने पुणे के सीओईपी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया और वहां भी शानदार प्रदर्शन किया। बिरुदेव की यह सफलता न सिर्फ उसके परिवार बल्कि पूरे कागल तहसील के लिए गर्व का विषय है। उसकी कहानी आज के युवाओं के लिए प्रेरणा है कि कठिनाइयों के बीच भी अगर जुनून हो, तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है।

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गरीब है बिरुदेव का परिवार

बिरुदेव के पिता सिद्धापा ढ़ोने भी बारहवीं कक्षा तक पढ़े हैं लेकिन उसके बाद अपना बकरियों को चराने का पारंपरिक व्यवसाय करते हुए उन्होंने जिंदगी बसर कर दी। बिरुदेव को बड़ा ऑफिसर बनाने का सपना देखा। जब बिरुदेव दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी के लिए गया तो उसके पिता उसको बड़े कष्ट उठाकर 10 से 12 हजार रुपये भेजते। उतनी रकम में बिरुदेव गुजारा कर लेता। बिरुदेव ने कहा कि उसके पिता कई बार अलग नौकरी करने की सलाह देते रहे लेकिन वह जिद पर अड़ा रहा और आखिरकार वह आईपीएस ऑफिसर बन गया।

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