यौन उत्पीड़न पर अब कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला, नाबालिग के ब्रेस्ट छूना रेप नहीं

कलकत्ता हाईकोर्ट ने नाबालिग के ब्रेस्ट छूने को रेप की कोशिश नहीं माना, इसे गंभीर यौन उत्पीड़न की कोशिश माना। सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे पर संवेदनशील टिप्पणी की थी।

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Jitendra Shrivastava
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कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मामले में फैसला सुनाया है, जिसमें नाबालिग के ब्रेस्ट छूने के मामले को रेप की कोशिश नहीं माना गया। कोर्ट ने कहा कि यह एक गंभीर यौन उत्पीड़न की कोशिश हो सकती है, लेकिन इसे रेप की कोशिश के तहत नहीं डाला जा सकता। इस फैसले के बाद आरोपी को जमानत दे दी गई है। हालांकि, कोर्ट ने इस मामले को बेहद गंभीर बताया है।

मामला क्या था?

यह मामला तब सामने आया जब एक महिला ने 12 साल की नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट छूने की कोशिश की। महिला का यह कृत्य POCSO एक्ट और IPC की धाराओं के तहत दायर किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को 12 साल जेल की सजा सुनाई थी, इसके साथ ही जुर्माना भी लगाया गया था।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी 

इससे पहले, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग के ब्रेस्ट पकड़ने और पायजामे का नाड़ा तोड़ने जैसी घटनाओं को रेप नहीं माना था। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए इसे असंवेदनशील बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह बहुत गंभीर मामला है और इस मामले में संवेदनशीलता की कमी थी।

आरोपी की जमानत और कानून की दृष्टि 

कलकत्ता हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत पर भी विचार किया। आरोपी का कहना था कि वह पहले से ही 2 साल से जेल में है और यह मामला जल्दी निपटने की संभावना नहीं है। इसके अलावा, आरोपी के वकील ने यह भी तर्क दिया कि पेनिट्रेशन के बिना IPC की धारा 376 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता, इसलिए यह POCSO एक्ट की धारा 10 के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न का मामला हो सकता है, जिसकी सजा 5 से 7 साल के बीच होती है।

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संवेदनशीलता और कानूनी दृष्टिकोण

इस फैसले ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या समाज और न्यायालय को नाबालिग के यौन उत्पीड़न के मामलों में अधिक संवेदनशीलता अपनानी चाहिए। यह मामला सीधे तौर पर यौन उत्पीड़न और कानूनी प्रक्रिया के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को उजागर करता है।

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