BHOPAL. चैत्र नवरात्रि ( Chaitra Navratri ) इस साल 9 अप्रैल से शुरू होगी और 17 अप्रैल को रामनवमी ( Ram Navami ) के साथ ही महापर्व का समापन होगा। इस वर्ष चैत्र का प्रतिपदा 8 अप्रैल की देर रात शुरू हो रहा है। इसलिए अगले दिन उदयातिथि को नवरात्रि के पहला दिन मानकर घट ( कलश ) की स्थापना होगी। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक चैत्र प्रतिपदा मंगलवार 9 अप्रैल रात 9 बजकर 44 मिनट तक है। पहले दिन कलश स्थापना की जाती है और 9वें दिन कन्या भोज के साथ मां दुर्गा की विदाई कर दी जाती है।
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इतने बजे कर सकेंगे घट स्थापना
घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 05.46 बजे से सुबह 9.08 बजे तक किया जा सकता है। इसके बाद सुबह 11.36 बजे से 12.24 दोपहर तक अभिजीत मुहूर्त में भी घट स्थापित करना भक्तों के लिए लाभकारी होगा। ज्योतिषाचार्य के मुताबिक अभिजीत मुहूर्त में किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं किया जा सकता है। इस वर्ष मां भगवती घोड़े पर सवार होकर नवरात्रि में आ रही हैं। घोड़े पर सवार मां को कल्याणकारी नहीं माना जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। मां की विदाई नर वाहन पर हो रही है। इसे अच्छा माना जाता है।
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कलश स्थापना की विधि
कलश की स्थापना मंदिर के उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए और मां की चौकी लगा कर कलश को स्थापित करना चाहिए। सबसे पहले उस जगह को गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर लें। फिर लकड़ी की चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश को स्थापित करें। कलश में आम का पत्ता रखें और इसे जल या गंगाजल भर दें। साथ में एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ कलश में डालें। कलश के मुख पर एक नारियल लाल वस्त्र से लपेट कर रखें। चावल यानी अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रखें। इन्हें लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ा दें। कलश स्थापना के साथ अखंड दीपक की स्थापना भी की जाती है। कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें। हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके मंत्र जाप करें और फूल और चावल मां के चरणों में अर्पित करें। मां शैलपुत्री के लिए जो भोग बनाएं, गाय के घी से बने होने चाहिए। या सिर्फ गाय के घी चढ़ाने से भी बीमारी व संकट से छुटकारा मिलता है।
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मां का पसंदीदा रंग
ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक मां शैलपुत्री को पीले रंग के परिधान, माता ब्रह्मचारिणी को हरा रंग, मां चंद्रघंटा को पीला या हरा, कुष्मांडा को नारंगी, स्कंदमाता को सफेद, कात्यायनी को लाल रंग, मां कालरात्रि को नीला, महागौरी को गुलाबी और मां के नौवे रूप मां सिद्धिदात्री को बैंगनी रंग के परिधान पहनाया जाता है। मां के रूप के अनुरूप परिधान और भोग लगाकर मां का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है।
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नवरात्रि के नौ दिन, मां दुर्गा का रूप और भोग प्रसाद
पहले दिन- मां शैलपुत्री- दूध, शहद, घी, फल और नारियल
दूसरे दिन- मां ब्रह्मचारिणी- मिश्री, दूध और पंचामृत
तीसरा दिन- मां चंद्रघंटा- खीर, दही आदि
चौथा दिन- मां कुष्मांडा- हरा फल, अंकुरित अनाज, मालपुआ, इलाइची
पांचवा दिन- स्कंदमाता- अनार, छुहारा व किशमिश
छठा दिन- मां कात्यायिनी- शहद और उससे निर्मित खाद्य पदार्थ
सांतवां दिन- मां काली- गुड़ और गुड़ से बने पकवान
आठवां दिन- मां महागौरी- नारियल, लक्ष्मी वृद्धि के लिए अनार
नौवां दिन- मां सिद्धिदात्री (मां दुर्गा )- हलुआ, पूड़ी, गुलगुला, मालपुआ
चैती छठ भी पड़ता है नवरात्रि में
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि चैत्र नवरात्रि के दौरान चैती छठ भी पड़ता है। चैती छठ करने वाले श्रद्धालु चैत्र शुक्ल चतुर्थी 12 अप्रैल को नहाय-खाय से चार दिवसीय निर्जला छठ व्रत का अनुष्ठान शुरू करेंगे। 13 अप्रैल को खरना होगा। चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि 14 अप्रैल को अस्ताचलगामी सूर्य को श्रद्धालु अर्घ्य देंगे और सप्तमी तिथि 15 अप्रैल को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देकर महापर्व चैती छठ का समापन होगा।