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BHOPAL. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश की पांच विभूतियों को भारत रत्न ( Bharat Ratna ) से सम्मानित किया। यह समारोह राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया। पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को छोड़कर अन्य चार विभूतियों (पूर्व पीएम चौघरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव, पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर और कृषि वैज्ञानिक डॉ.एमएस स्वामीनाथन) को मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान से नवाजा गया। इसमें मेडल और प्रशस्ति पत्र सम्मानित विभूतियों के परिवारजनों को सौंपा गया। गौरतलब है, 2020 से 2023 तक किसी को भी भारत रत्न नहीं दिया गया था। राष्ट्रपति भवन में होने वाले समारोह में इन विभूतियों को सम्मानित किया गया।
चौधरी चरण सिंहः
- किसानों के मसीहा कहलाए
पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह को भारत रत्न देने का एलान किया गया है। चरण सिंह का जन्म किसान परिवार में हुआ था। चरण सिंह सबसे पहले 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। 1946, 1952, 1962 और 1967 में विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी 1970 में दूसरी बार वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि राज्य में 2 अक्टूबर 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की सेवा की एवं उनकी ख्याति एक ऐसे कड़क नेता के रूप में हो गई थी जो प्रशासन में अक्षमता, भाई-भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे। - ऋणमुक्ति विधेयक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका
उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखी जिसमें ‘जमींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑ डिवीन ऑ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रेड’ आदि प्रमुख हैं।
लालकृष्ण आडवाणीः
- बीजेपी के के संस्थापक चेहरों में से एक
वरिष्ठ नेता और देश के सातवें उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म पाकिस्तान के कराची में 8 नवंबर, 1927 को एक हिंदू सिंधी परिवार में हुआ था। आडवाणी 2002 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भारत के सातवें उप प्रधानमंत्री का पद संभाल चुके हैं। आडवाणी का जीवन जमीनी स्तर पर काम करने से शुरू होकर देश के उप-प्रधानमंत्री के तौर पर काम करते हुए चला। शुरुआती शिक्षा उन्होंने कराची के सेंट पैट्रिक हाई स्कूल से ग्रहण की थी। इसके बाद वह हैदराबाद, सिंध के डीजी नेशनल स्कूल में दाखिला लिया। विभाजन के समय उनका परिवार पाकिस्तान छोड़कर मुंबई आकर बस गया। यहां उन्होंने लॉ कॉलेज ऑफ द बॉम्बे यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की। उनकी पत्नी का नाम कमला आडवाणी है। उनके बेटे का नाम जयंत आडवाणी और बेटी का नाम प्रतिभा आडवाणी है। - पद्म विभूषण से सम्मानित हो चुके हैं आडवाणी
आडवाणी 2002 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भारत के सातवें उप प्रधानमंत्री का पद संभाल चुके हैं। इससे पहले वह 1998 से 2004 के बीच बीजेपी के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) में गृहमंत्री रह चुके हैं। वह उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी थी। 10वीं और 14वीं लोकसभा के दौरान उन्होंने विपक्ष के नेता की भूमिका बखूबी निभाई है। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जरिए अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। 2015 नें उन्हें भारत के दूसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। लालकृष्ण आडवाणी की अगुआई में राम मंदिर आंदोलन हुआ था। इसके लिए गुजरात के सोमनाथ से रथयात्रा निकाली थी। आडवाणी ने ही मंदिर वहीं बनाएंगे नारा घर-घर तक पहुंचाया था।
पीवी नरसिम्हा रावः
- देश को आर्थिक संकट से निकालने का श्रेय
केंद्र सरकार ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने का एलान किया है। पीवी नरसिंह राव का जन्म 28 जून 1921 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर में हुआ था। उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय व नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई की थी। नरसिम्हा राव लगातार आठ बार चुनाव जीते और कांग्रेस पार्टी में 50 साल से ज्यादा समय गुजारने के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने। राव को भारत की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। वे भारत में आर्थिक उदारीकरण के जनक माने जाते हैं। वो आठ बच्चों के पिता थे, 10 भाषाओं में बात कर सकते थे और अनुवाद के भी उस्ताद थे। नरसिम्हा राव 20 जून, 1991 से 16 मई, 1996 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। जब उन्होंने पहली बार विदेश की यात्रा की तो उनकी उम्र 53 साल थी। - देश में लाइसेंस-परमिट राज खत्म करने का श्रेय राव को
उन्होंने दो कंप्यूटर लैंग्वेज सीखकर 60 साल की उम्र पार करने के बाद कंप्यूटर कोड बनाया था। वे आंध्र प्रदेश सरकार में 1962 से 64 तक कानून व सूचना मंत्री, 1964 से 67 तक कानून व विधि मंत्री, 1967 में स्वास्थ्य व चिकित्सा मंत्री और 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे। वे 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। 24 जुलाई 1991 को नरसिम्हा राव की सरकार के पहले बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने तथाकथित 'लाइसेंस-परमिट राज' के अंत का एलान किया गया था। नरसिम्हा राव सरकार के सबसे महत्त्वपूर्ण सुधार जुलाई 1991 से मार्च 1992 के बीच हुए। जब राव की सरकार का विरोध शुरू हो गया था और यह विरोध विपक्ष नहीं बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में ही था। कांग्रेस पार्टी में अर्जुन सिंह और वयलार रवि आंतरिक विरोध के प्रतीक पुरुष बन गए थे।
कर्पूरी ठाकुरः
- बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय की अलख जगाई
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सम्मान देने का एलान किया गया है। कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था। कर्पूरी ठाकुर साधारण नाई परिवार में जन्मे थे। कहा जाता है कि पूरी जिंदगी उन्होंने कांग्रेस विरोधी राजनीति की और अपना सियासी मुकाम हासिल किया। यहां तक कि आपातकाल के दौरान तमाम कोशिशों के बावजूद इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार नहीं करवा सकी थीं। कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 22 दिसंबर 1970 को उन्होंने पहली बार राज्य की कमान संभाली थी। उनका पहला कार्यकाल महज 163 दिन का रहा था। 1977 की जनता लहर में जब जनता पार्टी को भारी जीत मिली तब भी कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। अपना यह कार्यकाल भी वह पूरा नहीं कर सके। बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की दी। वहीं, राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया। - कर्पूरी ठाकुर के शागिर्द हैं लालू-नीतीश
बिहार में समाजवाद की राजनीति कर रहे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर के ही शागिर्द हैं। जनता पार्टी के दौर में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के गुर सीखे। ऐसे में जब लालू यादव बिहार की सत्ता में आए तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाया। वहीं, नीतीश कुमार ने भी अति पिछड़े समुदाय के हक में कई काम किए। चुनावी विश्लेषकों की मानें तो कर्पूरी ठाकुर को बिहार की राजनीति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 1988 में कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था, लेकिन इतने साल बाद भी वो बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। गौरतलब है कि बिहार में पिछड़ों और अतिपिछड़ों की आबादी करीब 52 प्रतिशत है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी पकड़ बनाने के मकसद से कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते हैं। यही वजह है कि 2020 में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ‘कर्पूरी ठाकुर सुविधा केंद्र’ खोलने का ऐलान किया था।
एमएस स्वामीनाथन:
- भारत में कृषि क्रांति के जनक, बदली किसानों की हालत
प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न सम्मान देने का एलान किया गया है। प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी में साल 1925 में हुआ था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1943 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा जिसने स्वामीनाथन को झकझोर कर रख दिया। 1944 में उन्होंने मद्रास एग्रीकल्चरल कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। स्वामीनाथन पहले जूलॉजी की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन अकाल को देख कृषि के साथ सफर बढ़ाने का निर्णय किया। 1947 में वह आनुवंशिकी और पादप प्रजनन की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) आ गए। उन्होंने 1949 में साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अपना शोध आलू पर किया। - पुलिस सेवा में चयन, हरित क्रांति के अगुआ बने
समाज और परिवार का दवाब पड़ा कि उन्हें सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए। आखिरकार वह सिविल सेवाओं की परीक्षाओं में शामिल हुए और भारतीय पुलिस सेवा में उनका चयन हुआ। उसी समय उनके लिए नीदरलैंड में आनुवंशिकी में यूनेस्को फेलोशिप के रूप में कृषि क्षेत्र में एक मौका मिला। स्वामीनाथन ने पुलिस सेवा को छोड़कर नीदरलैंड जाना सही समझा। 1954 में वह भारत आ गए और यहीं कृषि के लिए काम करना शुरू कर दिया। एमएस स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का अगुआ माना जाता है। वह पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म की पहचान की। इसके कारण भारत में गेहूं उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। स्वामीनाथन को उनके काम के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें पद्मश्री (1967), पद्मभूषण (1972), पद्मविभूषण (1989), मैग्सेसे पुरस्कार (1971) और विश्व खाद्य पुरस्कार (1987) महत्वपूर्ण हैं।