NEW DELHI: संयुक्त अरब अमीरात (UAE) समेत चार खाड़ी देशों ने अपने वतन के लोगों को तेज गर्मी से राहत देने के लिए आसमान से नकली या कृत्रिम बारिश (cloud seading) करवाई, लेकिन मामला ऐसा बिगड़ा कि इस बारिश के चलते वहां गंभीर बाढ़ (flood) के हालात बन गए और सड़कों से लेकर हवाई अड्डों (airport) तक की गतिविधियां रुक गईं। मौसम विभाग का कहना है कि इस बारिश के चलते जितना पानी आसमान से गिरा उतना तो वहां दो साल में गिरता है। वैसे ऐसी आर्टिफिशियल बारिश का उपयोग कई देश करते रहते हैं और युद्ध जीतने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। आज इस बारिश का ए-टू-जेड आपको बताते हैं।
क्या हुआ था इन खाड़ी देशों में
मिली जानकारी के अनुसार 15 अप्रैल, सोमवार की रात संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, बहरीन और ओमान में भारी बारिश की शुरुआत हुई। कुछ ही देर बाद यह बारिश तूफान में बदल गई और हालात इतने ज्यादा बिगड़ गए कि अगले दिन अधिक बारिश के कारण इन देशों के कई शहरों में बाढ़े जैसे हालात पैदा हो गए। खाड़ी देश के नखलिस्तान शहर दुबई में बारिश की भयावहता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां के इंटनेशनल एयरपोर्ट पर बीते 24 घंटे में 6.26 इंच से अधिक बारिश हो गई और वहां उड़ान सेवाएं बुरी तरह बाधित हो गईं। मौसम के बारे में जानकारी देने वाली एक इंटरनेशनल वेबसाइट का कहना है कि वहां 24 घंटे में जितनी बारिश हुई वह तो वहां दो साल में होती है। लेकिन एकसाथ हुई इतनी अधिक बारिश ने वहां का सिस्टम ही गड़बड़ा दिया।
क्या आर्टिफिशियल बारिश ने बिगाड़ दिए वहां के हालात
हैरानी की बात यह है कि जिन देशों में बाढ़ जैसे हालात बने, वे रेगिस्तान के बीच बसे हुए हैं और वहां कभी-कभार ही अच्छी बारिश का मौसम बनता है, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि अचानक की वहां इतनी अधिक बारिश हो गई और बाढ़ तक आ गई। अब मौसम से जुड़े विशेषज्ञ कह रहे हैं कि असल में वहां लोगों को गर्मी से राहत देने के लिए कृत्रिम बारिश (cloud seading) करवाई गई, लेकिन इसको इस्तेमाल करते हुए ‘केमिकल लोचा’ हो गया और बारिश ने अगले-पिछले सारे रिकार्ड तोड़ डाले। एक न्यूज एजेंसी का दावा है कि सोमवार को दुबई प्रशासन ने नकली बारिश के लिए एक विमान को उड़ाया था, लेकिन कुछ तकनीकी गड़बड़ी के चलते ज्यादा बारिश हो गई।
ऐसी बारिश तो आम है, लेकिन क्यों बिगड़े हालात
पहले यह समझें कि क्लाउड सीडिंग यानि नकली बारिश कैसे करवाई जाती है। असल में जब विभिन्न कारणों के चलते बारिश की जरूरत होती है तो वैज्ञानिक तरीके से बादलों को बारिश में बदलने की तकनीक अपनाई जाती है, इसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है। ऐसी बारिश करवाने के लिए सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड और ड्राई आइस (सॉलिड कॉबर्न डाइऑक्साइड) जैसे रसायनों को हेलिकॉप्टर या विमान के द्वारा आसमान में जाकर वहां मौजूद बादलों में बिखेरा जाता है। ये सघन कण हवा में भाप को आकर्षित करते हैं, जिससे तूफानी बादल बनते हैं और बारिश हो जाती है। लेकिन ज्यादा बारिश इसलिए हो जाती है, क्योंकि जब बादलों में भाप का अनुपात बहुत अधिक होता है और जब इन रसायनों को उन पर छिड़का जाता है तो वहां बहुत अधिक पानी वाले बादल बन जाते हैं। नतीजा, वे फट जाते हैं और जमीन पर इतनी अधिक बारिश गिरती है कि बाढ़ आ जाती है। एक्सपर्ट मान रहे हैं कि इन देशों में इसी गड़गड़ी के चलते बहुत अधिक बारिश हो गई।
कई देश इस तकनीक से सामान्य बारिश करवाते हैं
असल में कई देश अपने यहां सूखे आदि से निपटने के लिए क्लाउड सीलिंग के जरिए ऐसी बारिश जब-तब करवाते रहते हैं। इसी तकनीक के जरिए संयुक्त अरब अमीरात ने 1990 के दशक में बारिश करवाई। जुलाई 2021 में तापमान बढ़ने पर दुबई प्रशासन ने सफल बारिश करवाई गई थी। भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, चीन समेत 60 देशों के पास आर्टिफिशियल बारिश की तकनीक मौजूद है। बारिश के अलावा इस तकनीक का इस्तेमाल भारी कोहरे को भी हटाने के लिए किया जाता है। वर्ष 2008 के बीजिंग ओलिंपिक में छाए कोहरे को हटाने के लिए ऐसी बारिश करवाई गई थी। इसका एक बड़ा उदाहरण है, जहां चीन ने बीजिंग में क्लाउड सीडिंग के जरिए बादलों को बारिश में बदलते हुए एक दिन पहले ही बारिश करवा ली थी। भारत स्थित नई दिल्ली में प्रदूषण हटाने के लिए एक बार इस तकनीक से बारिश करवाने पर विचार किया गया था।
युद्ध में इन कारणों से हुआ इस बारिश का प्रयोग
सूत्र बताते हैं कि अमेरिका ने विएतनाम युद्ध जीतने के लिए इस तरह की बारिश का इस्तेमाल किया था। तब साल 1967 से 1972 के बीच अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के दौरान विरोधी देश के चि मिन्ह शहर पर क्लाउड सीडिंग के जरिए बादल फटने की घटनाएं करवाई थी, जिसके चलते वहां तेज बारिश, बाढ़ और पहाड़ धंसक गए थे, जिस कारण वियतनामी सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। अपने इस एक्शन को अमेरिका ने ऑपरेशन पोपोय नाम दिया था। भारत में कृत्रिम बारिश की तकनीक से कई दशकों से इस प्रकार की बारिश करवाई जाती रही है। महाराष्ट्र और लखनऊ के कुछ हिस्सों में पहले ही परखी जा चुकी है। लेकिन प्रदूषण से निपटने के लिए किसी बड़े भूभाग में इसका प्रयोग नहीं किया गया है। इसे लेकर आईआईटी कानपुर से संबद्ध द रैन एंड क्लाउड फिजिक्स रिसर्च ने मदद की है। उम्मीद है कि भारत के किसी शहर में अगर गंभीर प्रदूषण के हालात बनेंगे तो इस तकनीक का बड़े तौर पर प्रयोग किया जाएगा।
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