देश दुनिया न्यूज: कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास का 1 मई 2025 को निधन हो गया। 79 वर्षीय व्यास पिछले कई दिनों से अहमदाबाद के निजी अस्पताल में भर्ती थीं। वे 31 मार्च को उदयपुर स्थित अपने घर में गणगौर पूजा के दौरान आग की चपेट में आ गई थीं, जिससे वे 90 प्रतिशत तक झुलस गई थीं। साथ ही उन्हें ब्रेन हेमरेज भी हो गया था। लगातार इलाज के बावजूद उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ और उन्होंने आज यानी 1 मई को अंतिम सांस ली।
गणगौर पूजा के दौरान हुआ हादसा
डॉ. गिरिजा व्यास 31 मार्च को अपने उदयपुर स्थित निवास पर पारंपरिक गणगौर पूजा कर रही थीं। पूजा के दौरान उनकी चुनरी आग की लौ से सुलग गई और वे बुरी तरह झुलस गईं थीं। इस हादसे में वे 90% तक जल गईं और इलाज के दौरान उन्हें ब्रेन हेमरेज भी हुआ, जो उनकी स्थिति को और नाजुक बना गया।
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उनका राजनीतिक जीवन प्रेरणादायक रहा
25 वर्ष की उम्र में विधायक बनने से लेकर लोकसभा की चार बार सदस्य रहने तक। पीवी नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह सरकारों में वे केंद्रीय मंत्री रहीं। उन्होंने महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर गहरा प्रभाव छोड़ा। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में भी उनका कार्यकाल उल्लेखनीय रहा।
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कांग्रेस ने खोया एक सशक्त स्तंभ
लंबे समय से अस्पताल में भर्ती डॉ. व्यास ने 1 मई को अहमदाबाद के जायडस अस्पताल में अंतिम सांस ली। कांग्रेस पार्टी ने उन्हें एक शिक्षित, विचारशील और समर्पित नेता बताते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की है। उनके निधन से न केवल राजस्थान, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति को भी गहरा आघात लगा है।
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25 वर्ष में विधायक बनीं
राजनीतिक करियर की शुरुआत मात्र 25 वर्ष की उम्र में राजस्थान विधानसभा से विधायक के रूप में हुई। इसके बाद वे 1991, 1996, 1999 और 2009 में लोकसभा सांसद चुनी गईं। उन्होंने संसद में महिला अधिकारों और सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाया।
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केंद्रीय मंत्री और महिला आयोग की मुखिया रहीं
डॉ. व्यास को नरसिम्हा राव सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और यूपीए-2 में शहरी आवास एवं गरीबी उन्मूलन मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। वे 2005 से 2011 तक राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रहीं, जहां उन्होंने महिला अधिकारों की रक्षा के लिए उल्लेखनीय पहल की।
शिक्षा और साहित्य में भी रही गहरी पैठ
नाथद्वारा में जन्मीं व्यास ने दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट किया और अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर व उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। उन्होंने आठ पुस्तकें लिखीं, जिनमें 'एहसास के पार' और 'नॉस्टैल्जिया' विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।