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cyber-fraud-banks Photograph: (the sootr)
भारत में साइबर ठगी के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पिछले तीन साल में 87.88 करोड़ रुपए की राशि बचाई गई थी, जिसमें से केवल 4.15 करोड़ रुपए (5%) ही उपभोक्ताओं को वापस मिल पाए हैं। बाकी रकम बैंकों में कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रही है।
साइबर ठगी की कुल रकम में से कम से कम 10% की रकम पकड़ ली जाती है, लेकिन यह राशि उपभोक्ताओं को वापस नहीं मिल पाती। इसके कारण कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, जिनमें बैंकों द्वारा रकम को फ्रीज करने की प्रक्रिया और फ्रॉड और वैध ट्रांजैक्शन के बीच भेद करने में मुश्किलें प्रमुख हैं।
साइबर ठगी में 243 फीसदी की बढ़ोतरी
साइबर फ्रॉड की घटनाओं में पिछले दो सालों में 128% की बढ़ोतरी हुई है। यह वृद्धि 2,296 करोड़ रुपये से बढ़कर 5,574 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है, जो कि 243% का इजाफा है। डिजिटल पेमेंट्स के बढ़ते उपयोग के साथ-साथ साइबर फ्रॉड के नए-नए तरीके सामने आ रहे हैं। यह वृद्धि बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के लिए एक चुनौती बन चुकी है, क्योंकि वे साइबर ठगी की बढ़ती घटनाओं के खिलाफ प्रभावी कदम उठाने में असमर्थ हैं।
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बैंकों की वर्चुअल अकाउंट्स में बढ़ती भूमिका
एक नई रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों के वर्चुअल अकाउंट्स का उपयोग साइबर फ्रॉड के लिए बढ़ रहा है। इन वर्चुअल अकाउंट्स के माध्यम से बड़े पैमाने पर ठगी की घटनाएं हो रही हैं। बैंकों के करंट अकाउंट्स और एस्क्रो अकाउंट्स का उपयोग करके कई वर्चुअल अकाउंट्स खोले जा रहे हैं। इन खातों का लेन-देन किसी को भी पता नहीं चलता। इसकी वजह से इन वर्चुअल अकाउंट्स में हुए लेन-देन का कोई हिसाब नहीं मिलता, जिससे जांच एजेंसियों के लिए मुश्किल हो जाती है।
वर्चुअल अकाउंट क्या है?
वर्चुअल अकाउंट एक प्रकार का खाता होता है जिसे एक सामान्य अकाउंट से कई बार क्रिएट किया जाता है। इसके माध्यम से बैंकों और फिनटेक कंपनियों द्वारा फंड ट्रांसफर किए जाते हैं, लेकिन किसी को भी इस बात का कोई स्पष्ट विवरण नहीं मिलता कि फंड कहां से आ रहे हैं और कहां जा रहे हैं। इन खातों पर निगरानी रखने की कोई व्यवस्था नहीं है, और ये अकाउंट्स ठगी के लिए बहुत उपयोगी साबित हो रहे हैं।
बायोमीट्रिक्स क्लोनिंग की समस्या
आधार आधारित पेमेंट सिस्टम में बायोमीट्रिक्स क्लोनिंग के जरिए भी साइबर ठगी हो रही है। ठगों द्वारा डमी फिंगरप्रिंट या रबड़ की अंगुलियों का इस्तेमाल करके आधार की सुरक्षा को धता बताया जा रहा है। यह साइबर ठगी का एक नया तरीका है, जो बैंकों के लिए और भी अधिक समस्याएं पैदा कर रहा है।
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बैंकों की जिम्मेदारी और सुधार की आवश्यकता...
- उपभोक्ताओं के अधिकार
साइबर ठगी के मामलों में उपभोक्ताओं का सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनकी मेहनत की कमाई वापस क्यों नहीं मिल रही। बैंकों की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपनी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाएं और ठगी की घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाएं। साथ ही, जो रकम फ्रीज कर दी गई है, वह उपभोक्ताओं को वापस लौटाई जानी चाहिए। - बैंकों द्वारा समस्या का समाधान
बैंकों के पास ठगी की रोकथाम के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। हालाँकि, कुछ बैंकों ने अपने सुरक्षा उपायों को बेहतर करने के लिए काम करना शुरू किया है, लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि बैंकों को फ्रॉड और वैध ट्रांजैक्शन के बीच अंतर करने में कठिनाई हो रही है, जिससे उपभोक्ताओं को परेशानी हो रही है।