बच्चों में बढ़ रही फैटी लीवर की समस्या, जानें बचाव के तरीके

बच्चों में बढ़ रही फैटी लीवर की समस्या का कारण उनकी बदली जीवनशैली और खानपान है। इसके लक्षणों की पहचान और संतुलित जीवनशैली अपनाकर इसे रोका जा सकता है। पढ़ें पूरी खबर इस लेख में...

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Dr Rameshwar Dayal
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LIVER FAT
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मोबाइल पर अधिकतर समय गेम्स खेलने वाले या टीवी आदि पर कार्टून देखने वाले बच्चों की समस्या यह है कि उनकी शारीरिक गतिविधियां कम हो रही हैं। इन आदतों ने बच्चों को कई तरह की मानसिक परेशानियों की ओर धकेला है। अब यह भी कहा जा रहा है कि इस तरह ही गतिविधियों में फंसे बच्चों में फैटी लीवर (लीवर में चर्बी का बढ़ना) की समस्या बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर इस तरह की समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती हैं। माना जा रहा है कि देश में बदलती जीवनशैली और खान-पान की आदतों के कारण यह समस्या बच्चों में भी बढ़ती जा रही है। 

क्या कहती हैं रिसर्च और उनकी रिपोर्ट 

नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के हालिया अध्ययन में पाया गया कि भारत में लगभग हर तीन में से एक (35 प्रतिशत) बच्चा मेटाबॉलिक डिसफंक्शन (पाचन संबंधी गड़बड़ी) से जुड़ी स्टीटोहेपेटाइटिस लीवर डिजीज (MASLD), आसान भाषा में कहे तो लीवर में चर्बी जमा होने और सूजन से पीड़ित है। यह एक नई शब्दावली है, जिसमें बताया गया है कि नॉन-अल्कोहलिक लोगों और बच्चों में भी Fatty Liver की समस्या पैदा हो रही है। माना जाता है कि जो लोग शराब पीते हैं, उनके लीवर में चर्बी बढ़ने की संभावना बहुत अधिक होती है। MASLD तब होता है जब लीवर की कोशिकाओं में अत्यधिक वसा (चर्बी) जमा हो जाती है। इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन मुख्य कारण अत्यधिक कैलोरी का सेवन और शारीरिक गतिविधि की कमी यानी शरीर के लिए एक्सरसाइज न करना है। भारत के अंतरराष्ट्रीय जर्नल का भी यही कहना है।

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जर्नल ऑफ क्लिनिकल ऐंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी (JCEH) ने भी इस मामले में एक अध्ययन रिपोर्ट प्रकाशित की है। यह भारत का एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल है और इसके इसे इंडियन नेशनल एसोसिएशन फॉर स्टडी ऑफ द लिवर (INASL) प्रकाशित करता है। उसका भी यही कहना है कि 35.4 प्रतिशत भारतीय बच्चों में MASLD है, जो वैश्विक औसत 25 प्रतिशत से कहीं ज्यादा है। उसका कहना है कि बच्चों के लीवर में पाई जाने वाली अधिक चर्बी से सीधे तौर पर कोशिकाओं को कोई नुकसान या सूजन नहीं होती। लेकिन कुछ मामलों में यह वसा लीवर को नुकसान पहुंचा सकती है। यदि इसका इलाज न किया जाए तो यह स्थिति लीवर में घाव (स्कारिंग) पैदा कर सकती है और भविष्य में लीवर कैंसर या फेलियर का खतरा बढ़ा सकती है। 

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लीवर में चर्बी बढ़ने के कारण 

लीवर को नुकसान न होने पर भी यह स्थिति स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होती है। फैटी लीवर कई गंभीर मेटाबॉलिक बीमारियों जैसे टाइप 2 डायबिटीज, हृदय रोग और उच्च रक्तचाप का शुरुआती संकेत है। क्या हैं लीवर में चर्बी बढ़ने के कारण लीवर से जुड़ी बीमारी के विशेषज्ञों (हेपेटोलॉजिस्ट) का कहना है कि मोटे तौर पर जंक फूड की ज्यादती और एक्सरसाइज की कमी इस बीमारी का कारण बनते हैं। उनका कहना है कि शहरों में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है, उसका कारण है कि जंक फूड, चीनी युक्त पेय पदार्थ (कोल्ड ड्रिंक) और तला-भुने खाने का ज्यादा सेवन करना। इसके अलावा मोबाइल फोन, टीवी और वीडियो गेम के कारण बच्चों का आउटडोर एक्टिविटी में कमी भी इस बीमारी का कारण बन रही है। बच्चों में मोटापे के कारण भी लीवर में चर्बी जमा होने लगती है। जिन परिवारों में यह बीमारी अनुवांशिक है, उनके बच्चों में इसका खतरा रहता है। 

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क्या है इसके समाधान?

डॉक्टरों का यह भी कहना है कि टाइप 2 डायबिटीज या प्री-डायबिटिक स्थिति से भी जोखिम बढ़ता है। कैसे लक्षण और क्या है समाधान जानेमाने हेपेटोलॉजिस्ट डॉ. एसके सरीन का कहना है कि कुछ लक्षणों सें इस बीमारी का पता चल जाता है, जैसे पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में हल्का दर्द, थकान या कमजोरी, वजन में अचानक बढ़ोतरी, भूख में कमी साथ ही लीवर इफंक्शन टेस्ट में असामान्यता। उन्होंने कहा कि फैटी लीवर की शुरुआती अवस्था को जीवनशैली में बदलाव से ठीक किया जा सकता है। इसके लिए संतुलित आहार जैसे बच्चों को फलों, सब्जियों और साबुत अनाज की ओर प्रोत्साहित करें।

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9 से 11 वर्ष की आयु में जांच 

बच्चों को नियमित रूप से खेलकूद और व्यायाम के लिए प्रेरित करें, चीनी युक्त पदार्थों और जंक फूड से परहेज कराएं। साथ ही लीवर की स्थिति की निगरानी के लिए समय-समय पर चिकित्सकीय परीक्षण कराएं। उन्होंने कहा कि जो बच्चे जिन गतिविधियों को पसंद करते हैं, उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इनमें खेल, नृत्य या परिवार के साथ टहलना आदि शामिल है। ध्यान रखें, एक्सपर्ट इसे मूक बीमारी मानते हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि यह एक मूक बीमारी है, जिसके लक्षण देर से दिखाई देते हैं। नॉर्थ अमेरिकन सोसायटी फॉर पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी, हेपेटोलॉजी और न्यूट्रीशन की सिफारिश है कि मोटे बच्चों की 9 से 11 वर्ष की आयु में जांच कराई जानी चाहिए। जिन बच्चों के परिवार में यह बीमारी हो, उनकी भी जांच होनी चाहिए। यह जांच आमतौर पर इमेजिंग तकनीकों के माध्यम से की जाती है, जो लीवर में वसा की मात्रा का सटीक पता लगा सकती हैं। उसका यह भी कहना है कि बच्चों को स्वस्थ आहार अपनाने में मदद करने का एक और तरीका यह है कि उन्हें समझाया जाए कि चिप्स, सॉफ्ट ड्रिंक और कैंडी जैसे खाद्य पदार्थ उनके स्वास्थ्य के लिए कैसे हानिकारक हैं। फल, सब्ज़ियां, और साबुत अनाज उनके लिए कैसे फायदेमंद हैं। बच्चों में स्वस्थ जीवनशैली की आदतें विकसित करने में जागरूकता और शिक्षा बेहद काम आती है।

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