भारत के प्रदर्शन में भी GEN-Z हुए एक्टिव... असम और लद्दाख में उठ रहे विरोध के सुर, जानें विवाद की जड़

नेपाल में हुए जनरेशन जेड (GEN-Z) आंदोलन ने दुनियाभर में अपनी छाप छोड़ी। 8 और 9 सितंबर को नेपाल में जेन-जी युवाओं में गहरा आक्रोश देखने को मिला। अब इसका असर भारत के असम और लद्दाख में देखने को मिल रहा है। हालांकि, यहां कारण कुछ और है।

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Dablu Kumar
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हाल ही में नेपाल में हुए जनरेशन जेड (GEN-Z) आंदोलन का असर पूरी दुनिया ने देखा। यहां 8 और 9 सितंबर को जबरदस्त तरीके से जेन-जी युवाओं में आक्रोश दिखा। जिसके चलते केपी शर्मा ओली ने 9 सितंबर को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से सार्वजनिक रूप से गायब हो गए। इधर, भारत में भी जेन-जी का असर देखने को मिला है। हाल ही में लद्दाख और असम में इसकी गूंज सुनाई दी। इन दोनों जगहों पर जेन-जी काफी एक्टिव दिखाई दे रहे हैं। वह रैली और प्रदर्शन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। यहां की सड़कों पर जेन-जी वर्ग के लोग उतरे हुए हैं। हालांकि, यहां के युवाओं की मांग कुछ और है। ऐसे में समझते हैं कि भारत में जेन-जी विरोध पर क्यों उतरे हुए हैं। साथ ही, उनकी मांग क्या है? 

सबसे पहले समझते हैं कि जेन-जी किसे कहते हैं? तो इसे आसान भाषा में समझिए कि जेन-जी वह हैं, जो 1997 से 2012 के बीच पैदा हुए हैं। ये लोग मिलेनियल्स के बाद और जनरेशन अल्फा से पहले आते हैं। जेन-जी की कुछ खास बातें यह है किडिजिटल एक्टिविटी में आगे रहते हैं। ये लोग इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के साथ बड़े हुए हैं, इसलिए टेक्नोलॉजी में बहुत माहिर होते हैं। इसके जरिए यह युवा तेजी से अपने बदलाव लाते हैं। किसी भी चीज पर प्रतिक्रिया देने भी देरी नहीं करते हैं। 

  1. जागरूकता में भी तेजी: ये समाजिक न्याय, पर्यावरण, और मानसिक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर जागरूक और सक्रिय रहते हैं।

  2. स्वतंत्र सोच वाले: ये लोग अपनी स्वतंत्र सोच रखते हैं और फ्रीलांसिंग या स्टार्टअप्स में रुचि रखते हैं।

  3. तेज और संक्षिप्त कंटेंट: इन्हें छोटे वीडियो और जल्दी से मिलने वाली जानकारी पसंद होती है।

भारत में जेन-जी: भारत में ये युवा दोनों, वैश्विक और स्थानीय संस्कृति को पसंद करते हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, सोशल मीडिया और स्टार्टअप्स में इनकी खास दिलचस्पी है।  

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लद्दाख में जेन-जी विरोध क्यों

लद्दाख में हाल ही में (24 सितंबर 2025 को) हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों का मुख्य कारण क्षेत्र को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठी अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्रों के लिए विशेष संरक्षण प्रदान करने की मांग है।

यह आंदोलन 2019 से चला आ रहा है, जब जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों (UT) में विभाजित किया गया था। लद्दाख को अलग UT का दर्जा मिला, लेकिन स्थानीय निवासियों को लगता है कि इससे उनकी स्वायत्तता कम हो गई है। युवा पीढ़ी (Gen Z) की निराशा के कारण हाल के प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसमें 4 लोगों की मौत हो गई। दर्जनों घायल हुए। इस दौरान पुलिस वाहन भी जलाए गए। 

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23 सितंबर को अनशनकारी पहुंचे अस्पताल

10 सितंबर को प्रसिद्ध शैक्षिक सुधारक सोनम वांगचुक और उनके 14 सहयोगियों ने 35 दिनों का अनशन शुरू किया, जिसके बाद लेह और उसके आसपास के क्षेत्रों में स्थिति तनावपूर्ण हो गई। यह आंदोलन सरकार से वार्ता में देरी के खिलाफ था, इससे युवाओं में गुस्सा बढ़ गया था।

23 सितंबर को अनशनकारी अस्पताल पहुंचे और इसके अगले दिन, 24 सितंबर को लेह एपेक्स बॉडी (LAB) के युवा विंग ने बंद का आह्वान किया। शांतिपूर्ण मार्च जल्द ही हिंसक रूप ले लिया, इसमें पथराव और आगजनी हुई। पुलिस ने स्थिति को काबू में करने के लिए आंसू गैस और गोलीबारी का सहारा लिया, जिसके परिणामस्वरूप 4 मौतें हुईं, जिनमें एक कारगिल युद्ध के पूर्व सैनिक भी शामिल था। साथ ही, 60 से अधिक लोग घायल हुए। इसके बाद प्रशासन ने कर्फ्यू लागू कर दिया और इंटरनेट सेवा को भी बंद कर दिया गया।

25-26 सितंबर को सरकार ने सोनम वांगचुक को गिरफ्तार कर जोधपुर जेल भेज दिया। उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत कार्रवाई की गई और एक प्रमुख एनजीओ का लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया। सरकार ने सोनम वांगचुक को उकसाने" का दोषी ठहराया। वर्तमान में लेह में कर्फ्यू जैसे प्रतिबंध जारी हैं। 


सोनम वांगचुक ने अपने बयान में जेन-Z का लिया नाम

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इस दौरान 24 सितंबर को सोनम वांगचुक ने कहा- मुझे यह बताते हुए बहुत दुख हो रहा है कि लेह शहर में व्यापक हिंसा और तोड़फोड़ हुई। कई कार्यालयों और पुलिस वाहनों में आग लगा दी गई। कल, यहां 35 दिनों से अनशन कर रहे दो लोगों को बहुत गंभीर हालत में अस्पताल ले जाना पड़ा। इससे व्यापक आक्रोश फैल गया और आज पूरे लेह में पूर्ण बंद की घोषणा कर दी गई। हजारों युवा बाहर निकल आए।

उन्होंने आगे कहा कि कुछ लोग सोचते हैं कि वे हमारे समर्थक हैं। पूरा लेह हमारा समर्थक है। लेकिन यह जेनरेशन Z की क्रांति थी। वे पिछले 5 सालों से बेरोजगार हैं... उन्हें नौकरियों से वंचित किया जा रहा है... मैंने हमेशा कहा है कि यही सामाजिक अशांति का नुस्खा है- युवाओं को बेरोज़गार रखना और उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनना। आज यहां कोई लोकतांत्रिक मंच नहीं है। छठी अनुसूची, जिसकी घोषणा और वादा किया गया था, उस पर ध्यान नहीं दिया गया।

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युवा पीढ़ी से की खास अपील

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सोनम वांगचुक ने कहा-  अभी के लिए, मैं लद्दाख की युवा पीढ़ी से अपील करता हूं कि वे हिंसा के इस रास्ते पर न चलें क्योंकि यह मेरे पांच साल की मेहनत। मैं इतने सालों से अनशन कर रहा हूं, शांतिपूर्वक मार्च निकाल रहा हूं, और फिर हिंसा का रास्ता अपना रहा हूं, यह हमारा रास्ता नहीं है। मैं युवा पीढ़ी से अनुरोध करता हूं कि वे शांति के रास्ते सरकार तक पहुंचें। मैं चाहता हूं कि सरकार शांति का संदेश सुने।

क्यों हो रहा लद्दाख में विरोध

लद्दाख में स्थानीय लोगों ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर सरकार से अपनी मांगें जोर-शोर से उठाई हैं। इनमें प्रमुख हैं-

राज्य का दर्जा: लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश (UT) के बजाय पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठ रही है। 2019 में केंद्र सरकार ने यह वादा किया था, लेकिन अब तक इसे पूरा नहीं किया गया है। इससे स्थानीय लोग केंद्र के सीधे नियंत्रण से असंतुष्ट हैं।

छठी अनुसूची का विस्तार: छठी अनुसूची के तहत आदिवासी क्षेत्रों को भूमि, कृषि और प्राकृतिक संसाधनों पर स्वायत्तता मिलती है। लद्दाख के बौद्ध और मुस्लिम समुदाय (जिनमें करीब 50% मुस्लिम और 40% बौद्ध हैं) इसे लागू करना चाहते हैं, ताकि बाहरी उद्योगपतियों द्वारा उनकी भूमि का अधिग्रहण रोका जा सके।

नौकरियां और आरक्षण: स्थानीय युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण और पब्लिक सर्विस कमीशन (PSC) की मांग तेज हो गई है। अब उन्हें ऑल इंडिया स्तर पर प्रतियोगिता करनी पड़ती है, जिससे बेरोजगारी की समस्या बढ़ रही है।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व: लद्दाख के लेह और कारगिल क्षेत्रों के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटें चाहिए, क्योंकि वर्तमान में लद्दाख की सिर्फ एक सीट है, जो दोनों क्षेत्रों के हितों को प्रभावित करती है।

प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण: लद्दाख में खनिज, पर्यावरण और सीमा क्षेत्रों (जैसे चीन और पाकिस्तान से सटे इलाकों) पर स्थानीय निर्णय लेने का अधिकार चाहिए। खासकर, हाल के चीन सीमा विवादों के बाद यह मांग और भी तेज हो गई है।

इन मुद्दों पर स्थानीय लोगों की आवाज को और अधिक मजबूती मिल रही है और सरकार से जल्द समाधान की उम्मीद जताई जा रही है।

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